SRI CHHATH PUJA (श्री छठ पूजा)
#श्री छठ पूजा #
इस महापर्व के सर्वाधिक लोकप्रिय होने का मूल कारन है कि यह आडम्बर और मंत्रो आदि के जटिलता से दूर है .यह महापर्व भावना और श्रधा प्रधान है .
छठ पूजा भारत के बिहार राज्य में प्रमुखता से मनाया जाता है .यह पूजा वर्ष में दो बार मनाया जाता है .एक चैत्र माह में और दूसरा कार्तिक महीने में ..व्रत के कठिनता के हिसाब से कार्तिक महीने का छठ थोडा सुगम होता है क्यूंकि मौसम अपेक्षाकृत ज्यादा अनुकूल होता है .इसीलिए शायद कार्तिकी छठ बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है और बिहार से बाहर के लोग इसी छठ के बारे में ज्यादा जानते है .
छठ चार दिन का महापर्व है .चैत्र और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी को "नहाय खाय" होता है जिसमे व्रती तथा अन्य सदस्य नहा धोकर भोजन बनाते है.नहाय खाय में मुख्यतः अरवा चावल ,चना और लौकी का मिक्स दाल और विभिन्न प्रकार की शब्जियों को बनाया जाता है .ऐसा माना जाता है कि दाल का जो स्वाद उस दिन होता है वो स्वाद लाख चाहने पर भी साल में कभी नहीं बन पाता है .
दूसरा दिन पंचमी को ''खरना'' होता है जिसे लोहंडा भी कहा जाता है .इस दिन शाम में मुख्यतः गुड /रावा का खीर /छोटी रोटी /चावल का पीठा बनाया जाता है जो शाम में पूजन के बाद सभी लोग ग्रहण करते है . ये प्रसाद मिटटी के चूल्हा पर आम के लकड़ी से तैयार किया जाता है .जिन लोगों के यहाँ छठ नहीं होता है उनलोगों को लोग बड़े श्रधा से आमंत्रित करते है और लोग भक्ति भाव से बिना किसी भेद भाव के छठ का प्रसाद ग्रहण करने के लिए एक दुसरे के याहं जाते है .
तीसरा दिन षष्टमी को शाम में पानी में (नदी ,तालाब ,पोखर ) अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है .अर्घ्य देते समय व्रती के हाथ में सूप होता है जिसमे फल ,नारियल ,ठेकुआ (टिकरी ),लडुआ (कच्चा चावल के आटा और गुड का लड्डू ),ईख ,वताशा इत्यादि होता है .व्रती सूर्य भगवान् की ओर मुख करे सूप (सूप की संख्या एक और एक से अधिक भी होता है ) लिए होते है और अन्य श्रद्धालु लोग सूप के सामने जल अर्पित करते है .अस्ताचल गामी सूर्य के पूजन की परंपरा सिर्फ इसी महापर्व में है .
चौथा दिन सप्तमी को उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है .इस दिन अर्घ्य में जल के साथ साथ दूध भी अर्पित किया जाता .इस दिन भी अर्घ्य पानी में प्रवेश कर ही दिया जाता है .चौथा दिन इस पर्व का समापन होता है जिसे ''पारण '' कहा जाता है .पारण के दिन ही अर्घ्य में अर्पित फल /ठेकुआ इत्यादि को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है .
व्रती को खरना के दिन (दूसरा दिन ) के शाम में प्रसाद ग्रहण के बाद से पारण के दिन अर्घ्य तक निर्जल उपवास रहना पड़ता है .इस महापर्व के सर्वाधिक लोकप्रिय होने का मूल कारन है कि यह आडम्बर और मंत्रो आदि के जटिलता से दूर है .यह महापर्व भावना और श्रधा प्रधान है .
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