Bachpan ke yaddain


#बचपन_की_साइकिल:-

आज घर मे काम करने वाले लड़के ने सहसा की कह दिया, कि भइया आपकी साइकिल कई सालों से रखी है, मुझे दे दीजिए मैं इसे ठीक करा कर चलाऊँगा।

उसकी बात तर्कसंगत थी, साइकिल करीब 13 साल पुरानी, मैं तो अब चलाता नही, तो उसे ही दे देते हैं, उसी के कुछ काम आए।

उसके साइकिल ले जाने की बात से मानो ऐसा लग रहा था, कि जैसे बचपन की कई यादें उस साइकिल के साथ ही चली जायेगी।

शायद ही शहर का कोई रास्ता/गली बची हो जहाँ उस साइकिल को न चलाया हो, एक दोस्त साइकिल के डंडे पे, दूसरा पीछे कैरियर पे, अदल बदल कर साइकिल चलाना बारी बारी....
अभी हाल ही कि तो बात थी शायद.....

अभी उसी दिन तो उमाकान्त को शायद उसकी साइकिल से गिराया था, या शानू को....
स्कूल की छुट्टी होते ही सबसे पहले निकलने की होड़ याद तो होगी, नही तो इतने बच्चे एक साथ..कि समय बहुत लग जायेगा घर पहुचने में, और फिर शाम को कोचिंग भी तो जान था....
अभी हाल ही कि तो बात है शायद....

अभी उसी दिन तो साइकिल पंचर हुई थी, और पैसे नही थे पंचर बनवाने के, पैदल साइकिल के साथ घर तक आया, और रास्ते में हर आदमी ने पूछ...साइकिल पंचर हो गयी क्या...
ऐसे अनगिनत किस्से होंगे सभी के पास।
पर
अभी हाल ही की तो बात है शायद....
अभी हाल ही की तो बात है शायद....

*परम मित्र दिशांत के वाल से आभार*

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