SATYAYUG

 सत्युग भारतीय पौराणिक साहित्य में एक युग है जो धर्म, सत्य, और पूर्णता की सबसे उच्च अवस्था को प्रतिष्ठित करता है। इसे "कृतयुग" भी कहा जाता है, और यह चार युगों में पहला है, जो कि कल्प की चक्रवर्ती युगिता में स्थित है। सत्युग का समयगुण का प्रधान युग है, जिसमें धरती पर एक आदर्श समाज और पूर्ण धार्मिकता का राज होता है।


सत्युग का आरंभ सत्यनारायण विष्णु के अवतार के साथ होता है, जो इस युग के निर्देशक और परिपालक होते हैं। यह युग धरती पर सच्चे और निर्मल जीवन की अवधारित अवस्था में होता है, जिसमें लोगों के मन, वचन, और क्रिया सद्गुणों में प्रवृत्ति करते हैं।


सत्युग में धरती पर समृद्धि, शांति, और सभी प्राणियों के बीच सामंजस्य होता है। वहां अशोक और दुःख का अभाव होता है और सभी जीवों में परमात्मा की अद्वितीयता का आभास होता है। लोग एक दूसरे के प्रति सद्भावना और सहानुभूति रखते हैं, जिससे समृद्धि और सुख की पूर्ण अनुभूति होती है।


इस युग में मनुष्यों की आयु बहुत लंबी होती है, और उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का पूर्ण समर्थन होता है। वे निर्दोष, आत्मसमर्पणी, और सत्य-प्रिय होते हैं। सत्युग में धार्मिकता का पूर्णता होती है, और लोग भगवान के प्रति अपनी भक्ति में लीन होते हैं।


इस युग में विद्या, कला, और विज्ञान की अद्भुत प्रगति होती है। लोग विभिन्न क्षेत्रों में अपने अद्वितीय योग्यताओं का प्रदर्शन करते हैं और धरती को आनंदमय बनाने के लिए समृद्धि का सर्वोत्तम उपाय ढूंढ़ते हैं।


यह युग धरती के सभी क्षेत्रों में पूर्णता और समृद्धि का सिर्फ एक सुपरीम अवस्था होता है, जिसे भारतीय साहित्य में "रामराज्य" कहा गया है। यहां सभी जीवन का एक आदर्श चित्र होता है, जिसमें समर्थन, सजगता, और सच्चाई का पूर्ण सामंजस्य होता है।


हालांकि, सत्युग का अवसान होते ही कलियुग का प्रारम्भ होता है

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