AMRITSAR TRAIN TRAGEDY:IS A SYSTEM FAILURE?
आज दशहरा के मौके पर अमृतसर मे जो ट्रेन हादसा हुआ है वह पूरी तरह से सरकारों मे बैठे "सरकार" के असरकारी नही होने का नतीजा है।हर साल देश के किसी न किसी हिस्से मे खुशियों का त्योहार मातम मे बदलता है फिर भी सरकार लोग मानने को तैयार नही होते है।
रेलवे लाइन के किनारे इस तरह के कार्यक्रम को आयोजित करने वाले और उसको अनुमति देने वाले पूरी तरह से जिम्मेदार है।इन कार्यक्रमों मे भीङ का अंदाजा लगाना आसान नही होता है।
यदि कार्यक्रम करना उसी जगह करना अपरिहार्य था तो स्धानीय प्रशासन द्वारा लिखित मे रेलवे को सूचित किया जाना चाहिए था।रेलवे को यदि सूचित किया गया होता तो अगल बगल का स्टेशन मास्टर गाङियों या तो अपने स्टेशन पर रोक कर रखता या गाङी के चालक/गार्ड को सतर्कता आदेश दिया जाता कि इन इन स्टेशन के मध्य रेलवे के इस खास किलोमीटर के पास ट्रैक के किनारे मेला कार्यक्रम चल रहा है--चालक गाङी को सतर्कता पूर्वक लम्बी सीटी बजाते हुए प्रतिबंधित गति से रूकने को तैयार रहते हुए जायें।
लोकल प्रशासन द्वारा रेल प्रशासन से समन्वय स्थापित नही करने की कीमत ने इतने लोगों की जान ले ली।
"सरकार को असरकार होना चाहिए।
रेलवे लाइन के किनारे इस तरह के कार्यक्रम को आयोजित करने वाले और उसको अनुमति देने वाले पूरी तरह से जिम्मेदार है।इन कार्यक्रमों मे भीङ का अंदाजा लगाना आसान नही होता है।
यदि कार्यक्रम करना उसी जगह करना अपरिहार्य था तो स्धानीय प्रशासन द्वारा लिखित मे रेलवे को सूचित किया जाना चाहिए था।रेलवे को यदि सूचित किया गया होता तो अगल बगल का स्टेशन मास्टर गाङियों या तो अपने स्टेशन पर रोक कर रखता या गाङी के चालक/गार्ड को सतर्कता आदेश दिया जाता कि इन इन स्टेशन के मध्य रेलवे के इस खास किलोमीटर के पास ट्रैक के किनारे मेला कार्यक्रम चल रहा है--चालक गाङी को सतर्कता पूर्वक लम्बी सीटी बजाते हुए प्रतिबंधित गति से रूकने को तैयार रहते हुए जायें।
लोकल प्रशासन द्वारा रेल प्रशासन से समन्वय स्थापित नही करने की कीमत ने इतने लोगों की जान ले ली।
"सरकार को असरकार होना चाहिए।
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