खिचड़ी की आत्मकथा

खिचड़ी हूँ मैं खिचड़ी हूँ ,
भोजन में मैं सबसे पिछड़ी हूँ ।

मैं अनोखी हूँ , मैं अजूबा  हूँ ,
रोगियों की महबूबा हूँ ।

मैं भोजन के रूप में चमत्कार हूँ ,
ग़रीबों के लिये उपहार हूँ ।

मैं कला हूँ , मैं वाणिज्य हूँ , मैं विज्ञान हूँ ,
मैं बैचलरो का स्वाभिमान हूँ ।

मेरे होने मात्र से भूख मिटती है ,
मुझे खाने वाले हर रोग से बचते है ।

मैं कहीं बंगाली हूँ , कहीं बिहारी हूँ ,
हर भोजन से न्यारी और प्यारी हूं।

कहते हैं लोग मेरे हैं चार यार,
घी , पापड़ , दही , अचार ।

चावल - दाल है मेरा आधार ,
इसमें डालों सब्ज़ियाँ अपार ।

मकर - संक्रान्ति का मुख्य आहार हूँ मैं ,
हर प्रकार से पूरी तरह शाकाहार हूँ मैं ।

अवध में मैं सिर्फ़ उरद - चावल का मेल हूँ ,
मगध में मैं चावल - दाल और सब्ज़ी का खेल हूँ ।

मैं ग्रामीण हूँ , मैं शहरी हूँ ,
बिना दाल के मैं तहरी हूँ ।

खिचड़ी हूँ मैं , खिचड़ी हूँ ,
भोजन में मैं सबसे पिछड़ी हूँ ।




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