GURU ARJUN DEV JI

 

गुरु अर्जुन देव जी – शांति, सहनशीलता और बलिदान के प्रतीक 

गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पाँचवें गुरु थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल (पंजाब) में हुआ था। वे गुरु राम दास जी और माता भानी जी के सुपुत्र थे। बचपन से ही वे शांत, संयमी, विद्वान और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। गुरु राम दास जी ने उनकी बुद्धिमत्ता, सेवा भावना और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

गुरु अर्जुन देव जी ने सिख धर्म को मजबूत आधार प्रदान किया और समाज में शांति, समानता और भक्ति का संदेश फैलाया। वे पहले सिख गुरु थे जिन्होंने सिख समुदाय को एक स्थिर और संगठित रूप में विकसित किया। उन्होंने स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) के निर्माण कार्य को पूरा करवाया, जो आज सिख धर्म का सबसे पवित्र स्थल है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसका निर्माण ज़मीन के तल से नीचे किया गया, ताकि हर वर्ग और हर स्तर का व्यक्ति बिना किसी अहंकार के उसमें प्रवेश कर सके।

गुरु अर्जुन देव जी का सबसे महान कार्य था – आदि ग्रंथ (अब गुरु ग्रंथ साहिब) का संकलन। उन्होंने सिख गुरुओं की वाणियों के साथ-साथ संत कबीर, नामदेव, रविदास, और फारसी सूफी संतों की वाणियों को भी इसमें स्थान दिया। इस कार्य से उन्होंने यह संदेश दिया कि सभी धर्मों में सच्चाई और आध्यात्मिकता मौजूद है, और सभी को समान रूप से सम्मान मिलना चाहिए।

गुरु अर्जुन देव जी ने अपने जीवन में अनेक सामाजिक और धार्मिक कार्य किए। उन्होंने लंगर सेवा को बढ़ावा दिया, गुरुद्वारों का निर्माण करवाया और गरीबों, पीड़ितों की सेवा की। उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए सहायता केंद्र भी स्थापित किए।

उनका जीवन शांतिपूर्ण था, लेकिन तत्कालीन मुग़ल शासक जहाँगीर को उनका बढ़ता प्रभाव असहनीय लगने लगा। गुरु अर्जुन देव जी पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने विद्रोहियों की सहायता की है। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जबरन इस्लाम कबूल करने का दबाव डाला गया। लेकिन गुरु जी ने धर्म से विचलित होने से मना कर दिया।

गुरु अर्जुन देव जी को कठोर यातनाएँ दी गईं – उन्हें गर्म तवे पर बैठाया गया, उबलते पानी से जलाया गया, फिर भी उन्होंने कोई विरोध नहीं किया और पूरे धैर्य और शांति से परमात्मा का सुमिरन करते रहे। अंततः 30 मई 1606 को उन्होंने शहीदी प्राप्त की। वे सिख धर्म के पहले शहीद गुरु बने।

उनकी शहादत ने सिख धर्म को नई दिशा दी। उन्होंने यह सिखाया कि सच्चाई और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति भी दी जा सकती है।

गुरु अर्जुन देव जी का जीवन त्याग, सहनशीलता और आत्मबल का प्रतीक है। उनका बलिदान आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करता है।

उनका संदेश था – “सच्चाई के मार्ग पर चलना कठिन हो सकता है, लेकिन वही मार्ग परमात्मा तक ले जाता है।”

Comments

Popular posts from this blog

MAHUA BAGH GHAZIPUR

WWE Backlash 2024 के परिणाम: