KHALSA PANTH
खालसा पंथ – सिख धर्म का गौरवशाली स्वरूप
खालसा पंथ की स्थापना श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को वैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में की थी। यह पंथ सिख धर्म की एक वीर, अनुशासित और धार्मिक शाखा है, जिसका उद्देश्य धर्म की रक्षा, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और मानवता की सेवा करना है।
"खालसा" शब्द का अर्थ है – शुद्ध, पवित्र और पूर्ण रूप से ईश्वर को समर्पित व्यक्ति। गुरु गोविंद सिंह जी ने पांच प्रेमियों (पंज प्यारे) – भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहिब सिंह को अमृत पिला कर पहले पंच प्यारे बनाया और फिर स्वयं उनसे अमृत लेकर खालसा पंथ की स्थापना की।
खालसा पंथ का मूल उद्देश्य सिखों को बाहरी और आंतरिक रूप से मजबूत बनाना था। इसे एक ऐसा संगठन बनाया गया जो अधर्म, अत्याचार और जात-पात के भेदभाव के विरुद्ध खड़ा हो सके। खालसा को पांच "ककार" (5K) धारण करना अनिवार्य है:
- केश – बिना कटे बाल
- कंघा – बालों को सवच्छ रखने के लिए
- कड़ा – लोहे का ब्रेसलेट, जो ईश्वर की याद दिलाता है
- कच्छा – विशेष वस्त्र जो आत्म-संयम दर्शाता है
- कृपाण – एक छोटा तलवार, जो अन्याय के विरुद्ध रक्षा का प्रतीक है
खालसा पंथ ने भारतीय इतिहास में कई वीरता की गाथाएँ लिखी हैं। यह पंथ आज भी सिख धर्म की रीढ़ है और दुनियाभर में लाखों सिख इसके सिद्धांतों पर चलते हैं।
निष्कर्षतः, खालसा पंथ सिर्फ एक धार्मिक संगठन नहीं, बल्कि न्याय, समानता और वीरता का प्रतीक है।
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