GURU VANI

 

गुरु वाणी 

गुरु वाणी सिख धर्म के पवित्र ग्रंथों में वर्णित उन शिक्षाओं और उपदेशों को कहा जाता है जो सिख गुरुओं द्वारा दी गई हैं। ये वाणियाँ मुख्यतः "श्री गुरु ग्रंथ साहिब" में संग्रहीत हैं, जो सिख धर्म का सर्वोच्च धार्मिक ग्रंथ है। गुरु वाणी न केवल सिख धर्मावलंबियों के लिए मार्गदर्शक है, बल्कि यह सम्पूर्ण मानवता को सत्य, प्रेम, करुणा और सेवा का संदेश देती है।

गुरु वाणी की रचना सिख धर्म के पहले गुरु, श्री गुरु नानक देव जी से लेकर दसवें गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी तक के समय में हुई। परन्तु "श्री गुरु ग्रंथ साहिब" में पहले नौ गुरुओं की वाणी सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त संत कबीर, रविदास, नामदेव, फरीद जैसे कई भक्ति आंदोलन के संतों की वाणियाँ भी इसमें स्थान पाई हैं। यह ग्रंथ 1430 पृष्ठों में संकलित है और इसे "गुरु ग्रंथ साहिब" के नाम से जाना जाता है।

गुरु वाणी का प्रमुख उद्देश्य मानव को ईश्वर की भक्ति, सच्चाई, परिश्रम और परोपकार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है। इसमें बताया गया है कि ईश्वर एक है और वह हर जगह व्याप्त है। गुरु नानक देव जी ने कहा – “इक ओंकार सत नाम”, अर्थात् ईश्वर एक है और उसका नाम ही सत्य है। यह वाणी जात-पात, ऊँच-नीच और भेदभाव से ऊपर उठकर मानव समानता की बात करती है।

गुरु वाणी में सेवा (सेवा भाव), सिमरन (ईश्वर का ध्यान), और संगत (सत्संग) को विशेष महत्व दिया गया है। यह सिखाती है कि जीवन में सच्ची सफलता केवल धन-संपत्ति से नहीं, बल्कि अच्छे कर्मों, भक्ति और सेवा से मिलती है। गुरु वाणी का पाठ और श्रवण सिख समुदाय के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है। "गुरबाणी कीर्तन" गुरुद्वारों में नित्य किया जाता है जो आत्मा को शांति और ईश्वर से जोड़ता है।

इस प्रकार, गुरु वाणी एक दिव्य ज्ञान का स्रोत है जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानवीय मूल्यों और नैतिकता के स्तर पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह जीवन को सही दिशा देने वाली, आत्मा को शुद्ध करने वाली और समाज को जोड़ने वाली प्रेरणादायक शक्ति है।

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