CORNELIA SORABJI
कॉर्नेलिया सोराबजी
कॉर्नेलिया सोराबजी भारत की पहली महिला वकील थीं, जिन्होंने न केवल देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महिलाओं के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म 15 नवंबर 1866 को नासिक, महाराष्ट्र में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता रेव. सोराबजी एक पादरी थे और मां फ्रांसिस फोर्ड एक समाज सुधारक थीं। उनकी माता ने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभाई, जिसने कॉर्नेलिया को समाज सेवा की प्रेरणा दी।
कॉर्नेलिया सोराबजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे में पूरी की और बाद में वह उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय गईं। 1892 में, वे ऑक्सफोर्ड से कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला बनीं। हालांकि, उस समय भारत में महिलाओं को अदालत में वकालत करने की अनुमति नहीं थी। इस वजह से, कॉर्नेलिया को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ा।
उन्होंने समाज में महिलाओं के लिए न्याय और समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। विशेष रूप से, उन्होंने "पर्दानशीन महिलाओं" की समस्याओं को हल करने के लिए काम किया, जो सामाजिक प्रतिबंधों के कारण अपनी कानूनी समस्याओं के लिए अदालत नहीं जा सकती थीं। वह इन महिलाओं की सलाहकार और प्रतिनिधि बनकर उनकी समस्याओं का समाधान करती थीं।
कॉर्नेलिया सोराबजी की कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण 1923 में भारत में महिलाओं को वकालत करने की अनुमति दी गई। उनका जीवन महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के प्रति समर्पित था।
कॉर्नेलिया सोराबजी न केवल एक प्रखर वकील थीं, बल्कि वह एक लेखिका भी थीं। उनकी आत्मकथा "India Calling: The Memories of Cornelia Sorabji" उनकी उपलब्धियों और संघर्षों को दर्शाती है। उनका जीवन प्रेरणा का स्रोत है और वह भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान रखती हैं।
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