GURUDWARA HUJUR SAHIB

 

हजूर साहिब गुरुद्वारा

हजूर साहिब गुरुद्वारा, जिसे तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब भी कहा जाता है, भारत के महाराष्ट्र राज्य के नांदेड़ शहर में स्थित एक अत्यंत पवित्र सिख तीर्थ स्थल है। यह सिख धर्म के पाँच तख्तों (धार्मिक सिंहासनों) में से एक है और इसका सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है। यह वही स्थान है जहाँ दसवें सिख गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे और यहीं उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब जी को सिखों का आखिरी और शाश्वत गुरु घोषित किया।

हजूर साहिब गुरुद्वारा का निर्माण सन् 1832 से 1837 के बीच महाराजा रणजीत सिंह के आदेश पर हुआ था। इसका नाम 'सचखंड' इस बात को दर्शाता है कि यह स्थान 'सत्य का निवास' है। इस गुरुद्वारे की वास्तुकला भव्य और अत्यंत सुंदर है, जिसमें संगमरमर, सोने की परत और आकर्षक नक्काशी का कार्य किया गया है।

गुरुद्वारे के अंदर गुरु गोबिंद सिंह जी के अस्त्र-शस्त्र, उपयोग की गई वस्तुएँ और अन्य ऐतिहासिक सामग्री सुरक्षित रखी गई है। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सिख इतिहास की जीवंत स्मृति भी है।

यहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से दर्शन करने आते हैं। विशेष रूप से गुरु गोबिंद सिंह जी की पुण्यतिथि, बैसाखी, और गुरुपर्व जैसे अवसरों पर यहाँ विशाल संगत एकत्र होती है। गुरुद्वारे में प्रतिदिन गुरबानी का पाठ, कीर्तन, और लंगर सेवा होती है, जिसमें जाति, धर्म या वर्ग का भेदभाव किए बिना सभी को सेवा और भोजन प्रदान किया जाता है।

गुरुद्वारे के निकट स्थित नांदेड़ किला, गोदावरी नदी, और सिख संग्रहालय भी दर्शनीय स्थल हैं। हजूर साहिब आने वाले श्रद्धालु इन स्थानों की यात्रा भी करते हैं।

आज हजूर साहिब केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बन गया है, जो सिख धर्म की शिक्षाओं, गुरु की विरासत और सेवा-समर्पण की भावना को जीवंत बनाए हुए है। यह स्थान भारत की धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक समरसता का भी प्रतीक है।

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