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TAIPEI

ताइपेई (Taipei) – ताइवान की राजधानी ताइपेई ताइवान की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह देश का राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक केंद्र है। ताइपेई ताइवान के उत्तर में स्थित है और यह तामसुई नदी (Tamsui River) के किनारे बसा हुआ है। इतिहास ताइपेई की स्थापना 18वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी। यह क्षेत्र पहले स्वदेशी जनजातियों और बाद में हान चीनी प्रवासियों द्वारा बसाया गया। 19वीं शताब्दी में ताइपेई को ताइवान की प्रांतीय राजधानी बनाया गया और 1895 में जब ताइवान जापान के अधीन गया, तब शहर में आधुनिक बुनियादी ढांचे का विकास हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में ताइवान चीन को वापस मिला और 1949 में जब चीनी गणराज्य की सरकार मुख्यभूमि चीन से ताइवान आई, तब ताइपेई को आधिकारिक रूप से राजधानी घोषित किया गया। आधुनिक ताइपेई आज का ताइपेई एक अत्याधुनिक महानगर है, जो पारंपरिक संस्कृति और आधुनिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। यहाँ गगनचुंबी इमारतें, विशाल मॉल, तकनीकी केंद्र और सांस्कृतिक स्थल हैं। सबसे प्रसिद्ध स्थल ताइपेई 101 (Taipei 101) है, जो एक समय दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी। यह इमार...

TAIWAN

ताइवान (Taiwan) - एक परिचय ताइवान, जिसे आधिकारिक रूप से चीन गणराज्य (Republic of China) भी कहा जाता है, एशिया के पूर्वी भाग में स्थित एक द्वीप राष्ट्र है। यह मुख्य रूप से ताइवान द्वीप पर स्थित है और इसके अलावा कुछ छोटे द्वीपों जैसे कि किनमेन, मात्सु और पेंघु द्वीप समूह का भी हिस्सा है। ताइवान के उत्तर में जापान, पूर्व में प्रशांत महासागर, दक्षिण में फिलीपींस और पश्चिम में चीन स्थित है। इतिहास ताइवान का इतिहास बहुत पुराना है। यहाँ सबसे पहले ऑस्ट्रोनेशियन जनजातियाँ बसी थीं। 17वीं शताब्दी में डच और स्पेनिश उपनिवेशवादियों ने ताइवान पर कब्ज़ा किया। बाद में मिंग राजवंश के वंशजों ने डचों को हटाकर नियंत्रण किया। 1895 में चीन-जापान युद्ध के बाद ताइवान जापान के अधीन चला गया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में ताइवान चीन को वापस मिल गया। 1949 में चीन में कम्युनिस्ट क्रांति के बाद चीनी गणराज्य की सरकार ताइवान आ गई और तभी से ताइवान स्वतंत्र रूप से शासन कर रहा है। राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मान्यता ताइवान एक लोकतांत्रिक देश है जिसकी अपनी संसद, राष्ट्रपति और संविधान है। लेकिन चीन ताइवान को अप...

MURUD JANJIRA FORT RAIGARH

  मुरुद-जंजिरा किला  मुरुद-जंजिरा किला महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध समुद्री किला है। यह किला अरब सागर के तट से कुछ दूरी पर एक छोटे से द्वीप पर बना हुआ है। यह भारत के कुछ चुनिंदा समुद्री किलों में से एक है, जो समुद्र के बीचोंबीच स्थित होने के कारण रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। "जंजिरा" शब्द का अर्थ अरबी भाषा में "द्वीप" होता है, जबकि "मुरुद" उस तटीय गाँव का नाम है जो इस किले के सामने स्थित है। इस किले का निर्माण 15वीं शताब्दी के अंत में एक स्थानीय मौर मुस्लिम सरदार राम पाटिल ने लकड़ी से करवाया था, लेकिन बाद में इसे सिद्दियों (Habshi या अफ्रीकी मूल के योद्धाओं) ने जीत लिया और पत्थरों से फिर से बनवाया। इस प्रकार यह किला सिद्दी शासन के अधीन आ गया और कई वर्षों तक अपराजित रहा। मुरुद-जंजिरा किला अपनी अभेद्य रचना और समुद्र से सुरक्षा के लिए प्रसिद्ध है। यह किला लगभग 22 एकड़ क्षेत्र में फैला है और इसकी दीवारें बहुत ऊँची व मजबूत हैं। किले में कई बुर्ज, तोपें, पानी के टैंक और मस्जिदें हैं। इसमें कुल 19 बुर्ज हैं और कुछ प्राचीन तोपें आज ...

TERRACOTTA ARMY

  टेराकोटा सेना  टेराकोटा सेना (Terracotta Army) चीन की एक अद्भुत और ऐतिहासिक धरोहर है। यह सेना चीन के पहले सम्राट किन शी हुआंग (Qin Shi Huang) की समाधि के पास स्थित है। इसका निर्माण लगभग 210 ईसा पूर्व में हुआ था और इसका उद्देश्य सम्राट की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा की रक्षा करना था। इस टेराकोटा सेना की खोज सन् 1974 में चीन के शान्शी प्रांत के शिआन शहर के पास एक किसान द्वारा कुआँ खोदते समय हुई थी। जब पुरातत्वविदों ने खुदाई की, तो उन्हें हजारों की संख्या में मिट्टी से बनी सैनिकों, घोड़ों और रथों की मूर्तियाँ मिलीं। ये सभी मूर्तियाँ आकार, हावभाव, और पहनावे में एक-दूसरे से अलग हैं, जो उस समय की अद्भुत कला और शिल्पकला को दर्शाता है। अब तक की खुदाई में करीब 8,000 सैनिकों, 600 घोड़ों और 100 से अधिक रथों की मूर्तियाँ मिल चुकी हैं। इन मूर्तियों को टेराकोटा नामक मिट्टी से बनाया गया है और फिर उन्हें भट्ठी में पकाया गया है। हर मूर्ति का चेहरा अलग है, जिससे यह प्रतीत होता है कि कलाकारों ने प्रत्येक सैनिक को व्यक्तिगत रूप देने का प्रयास किया। यह स्थल यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल (Wor...

SHAANXI

  शान्शी प्रांत  शान्शी (Shaanxi) चीन का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण प्रांत है। यह देश के उत्तर-मध्य भाग में स्थित है और इसकी राजधानी शिआन (Xi’an) है, जो प्राचीन काल में चांगआन के नाम से प्रसिद्ध थी। शान्शी प्रांत को चीन की प्राचीन सभ्यता का पालना (cradle of Chinese civilization) कहा जाता है। शान्शी प्रांत हजारों वर्षों से चीन के ऐतिहासिक विकास का केंद्र रहा है। यहाँ कई प्रमुख राजवंशों, जैसे चिन (Qin), हान (Han), और तांग (Tang), की राजधानी रही है। इसी प्रांत में चीन के पहले सम्राट किन शी हुआंग (Qin Shi Huang) ने अपनी विशाल साम्राज्य की नींव रखी थी। उनकी प्रसिद्ध टेराकोटा सेना (Terracotta Army) भी यहीं शिआन के पास पाई गई है, जो आज एक प्रमुख विश्व धरोहर स्थल है। शान्शी प्रांत में बहुत से ऐतिहासिक स्थल हैं, जैसे कि बिग वाइल्ड गूज पगोडा, हुआशान पर्वत, और हान राजवंश के मकबरे। यहाँ पर बौद्ध, ताओ और कन्फ्यूशियस परंपराओं का भी गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। इसके अलावा, यह प्रांत रेशम मार्ग का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी था, जहाँ से व्यापारिक मार्गों की शुरुआत हो...

XIan

  शिआन (Xi'an)  शिआन (Xi'an) चीन के सबसे पुराने और ऐतिहासिक शहरों में से एक है। यह शहर चीन के शान्शी (Shaanxi) प्रांत की राजधानी है और प्राचीन काल में इसे चांगआन (Chang’an) के नाम से जाना जाता था। शिआन चीन की उन चार प्राचीन राजधानियों में से एक है जहाँ कई महान राजवंशों ने शासन किया, जैसे कि चिन (Qin), हान (Han), और तांग (Tang) वंश। शिआन ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रेशम मार्ग (Silk Road) की प्रारंभिक बिंदु था। प्राचीन समय में व्यापारी यहीं से यात्रा शुरू करते थे और मध्य एशिया होते हुए यूरोप तक सामान पहुँचाते थे। इस शहर ने व्यापार, संस्कृति और धर्म के आदान-प्रदान में बड़ी भूमिका निभाई है। शिआन का सबसे प्रसिद्ध आकर्षण टेराकोटा सेना (Terracotta Army) है, जो पहले सम्राट किन शी हुआंग (Qin Shi Huang) की समाधि के पास पाई गई थी। यह सेना हजारों मिट्टी की मूर्तियों से बनी है, जो सैनिकों, घोड़ों और रथों का जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है। यह विश्व धरोहर (World Heritage Site) के रूप में यूनेस्को द्वारा संरक्षित है। शिआन आज भी एक प्रमुख सांस्कृतिक और पर्यटन स्थल है। यह...

SILK ROAD

  रेशम मार्ग  रेशम मार्ग (Silk Road) प्राचीन काल में व्यापार और सांस्कृतिक संपर्क का एक महत्वपूर्ण मार्ग था, जो चीन को एशिया, यूरोप और अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों से जोड़ता था। यह मार्ग न केवल व्यापारिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण था। रेशम मार्ग की शुरुआत चीन के शियान (Xi’an) शहर से मानी जाती है, जो मध्य एशिया होते हुए फारस (ईरान), अरब और अंततः यूरोप के देशों तक पहुँचता था। इस मार्ग का नाम "रेशम मार्ग" इसलिए पड़ा क्योंकि चीन से सबसे प्रमुख व्यापारिक वस्तु रेशम हुआ करती थी, जो अन्य देशों में अत्यंत मूल्यवान मानी जाती थी। इस मार्ग के माध्यम से न केवल वस्त्र, मसाले, चाय, धातुएँ, और कीमती पत्थर जैसे सामानों का आदान-प्रदान होता था, बल्कि विचारधाराओं, धर्मों (जैसे बौद्ध धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म), कला, स्थापत्य और भाषा का भी आदान-प्रदान हुआ। यह मार्ग एशिया और यूरोप के बीच सांस्कृतिक पुल का कार्य करता था। प्रसिद्ध यात्री जैसे कि मार्को पोलो ने भी इसी मार्ग से यात्रा की थी और चीन की सभ्यता के बारे में यूरोप को बताया। यह मार्ग लगभग ...