KUMARGUPT FIRST



कुमारगुप्त प्रथम 

कुमारगुप्त प्रथम गुप्त वंश के एक महान सम्राट थे, जिन्होंने चौथी और पाँचवीं शताब्दी के बीच भारत पर शासन किया। वह चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के पुत्र थे और उनकी माँ का नाम ध्रुवदेवी था। कुमारगुप्त ने लगभग 415 ईस्वी से 455 ईस्वी तक शासन किया। उनका शासनकाल गुप्त साम्राज्य की समृद्धि, स्थिरता और सांस्कृतिक विकास का काल था।

राजनीतिक और प्रशासनिक उपलब्धियाँ

कुमारगुप्त का शासनकाल शांति और सुव्यवस्था से भरा हुआ था। उन्होंने विशाल गुप्त साम्राज्य की सीमाओं को बनाए रखा और कई विद्रोहों तथा बाहरी आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया। उनके समय में साम्राज्य का विस्तार उत्तर और मध्य भारत से लेकर बंगाल, उड़ीसा और गुजरात तक फैला हुआ था।

उन्होंने अपने नाम से कई सिक्के जारी किए, जिनमें उन्हें विविध रूपों में दिखाया गया है — जैसे सिंह (शेर), अश्व (घोड़ा), गरुड़ आदि के साथ। इससे उनकी सैन्य शक्ति और धार्मिक आस्था दोनों का संकेत मिलता है।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना

कुमारगुप्त प्रथम को विशेष रूप से नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए याद किया जाता है। यह विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था, जहाँ हजारों छात्र और शिक्षक रहते और पढ़ाते थे। यहाँ बौद्ध धर्म, तर्कशास्त्र, गणित, चिकित्सा, और दर्शन जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। उन्होंने इस विश्वविद्यालय को राजकीय संरक्षण दिया और इसके विकास में विशेष योगदान दिया।

धार्मिक आस्था

कुमारगुप्त हिंदू धर्म के अनुयायी थे, विशेष रूप से वे भगवान कार्तिकेय (स्कंद) के भक्त माने जाते हैं। कई सिक्कों में उन्हें स्कंद की पूजा करते हुए दर्शाया गया है। उन्होंने अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता दिखाई, और बौद्ध तथा जैन धर्म को भी संरक्षण दिया।

उत्तराधिकारी और विरासत

कुमारगुप्त की मृत्यु के बाद उनके पुत्र स्कंदगुप्त ने गद्दी संभाली। कुमारगुप्त का शासनकाल गुप्त साम्राज्य की अंतिम महान स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।



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