Si-Yu-Ki
सी-यू-की (Si-Yu-Ki)
"सी-यू-की" (Si-Yu-Ki) का अर्थ है "पश्चिमी देशों की यात्रा का विवरण"। यह एक प्रसिद्ध यात्रा वृत्तांत है, जिसे चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग (Xuanzang / Hiuen Tsang) ने लिखा था। ह्वेनसांग ने सातवीं शताब्दी में भारत की लंबी यात्रा की और अपने अनुभवों को इस पुस्तक में विस्तार से वर्णित किया। उन्होंने यह यात्रा मुख्यतः बौद्ध धर्म के शुद्ध ग्रंथों को प्राप्त करने और बौद्ध अध्ययन के लिए की थी।
पुस्तक की पृष्ठभूमि
ह्वेनसांग ने 629 ईस्वी में चीन से भारत की ओर यात्रा प्रारंभ की। वे भारत में लगभग 17 वर्ष रहे और इस दौरान उन्होंने लगभग 138 शहरों और राज्यों का भ्रमण किया। उन्होंने अनेक बौद्ध तीर्थस्थलों, विश्वविद्यालयों (विशेषकर नालंदा), मठों, मंदिरों और राजधानियों का दौरा किया। 645 ईस्वी में वापस लौटने के बाद, उन्होंने अपनी यात्रा का विस्तृत वृत्तांत "सी-यू-की" नामक ग्रंथ में लिखा।
पुस्तक की सामग्री और महत्व
"सी-यू-की" केवल धार्मिक या बौद्ध दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह उस समय के भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का भी प्रमाणिक दस्तावेज है। इसमें विभिन्न भारतीय राज्यों के शासकों, प्रशासन, न्याय व्यवस्था, रहन-सहन, शिक्षा प्रणाली, भाषाओं, रीति-रिवाज़ों, धार्मिक आस्थाओं और जनता के जीवन का वर्णन मिलता है।
इस पुस्तक में ह्वेनसांग ने मगध, कौशांबी, कांचीपुरम, वाराणसी, प्रयाग, मथुरा, उज्जैन, पाटलिपुत्र, नालंदा, कश्मीर आदि स्थानों का उल्लेख किया है। उन्होंने हर्षवर्धन जैसे सम्राटों की प्रशंसा भी की है, जिनसे उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त हुआ था।
ऐतिहासिक महत्त्व
"सी-यू-की" को भारत के प्राचीन इतिहास के अध्ययन में एक विश्वसनीय और प्रामाणिक स्रोत माना जाता है। यह पुस्तक बताती है कि भारत उस समय शैक्षिक और सांस्कृतिक रूप से कितना समृद्ध था। ह्वेनसांग के वर्णनों से यह भी ज्ञात होता है कि भारत धार्मिक रूप से सहिष्णु था और विभिन्न मतों को मान्यता दी जाती थी।
निष्कर्ष
"सी-यू-की" केवल एक यात्रा वृत्तांत नहीं है, बल्कि एक ऐसा ऐतिहासिक दर्पण है, जिसमें सातवीं शताब्दी के भारत की स्पष्ट झलक मिलती है। यह ग्रंथ आज भी इतिहासकारों, बौद्ध विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए अनमोल स्रोत बना हुआ है।
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