CHARAK

 

चरक 

आचार्य चरक प्राचीन भारत के महान वैद्य, दार्शनिक और वैज्ञानिक थे। उन्हें आयुर्वेद का जनक माना जाता है। उन्होंने न केवल चिकित्सा विज्ञान को व्यवस्थित रूप दिया, बल्कि मानव शरीर, रोगों और जीवनशैली के गहरे संबंध को भी समझाया। आचार्य चरक का नाम आज भी चिकित्सा जगत में श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है।

आचार्य चरक का जीवन लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है। वे राजा कनिष्क के राजवैद्य थे और कुशन वंश के समय में रहते थे। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ चरक संहिता है, जो आयुर्वेद का मूल आधार माना जाता है। इस ग्रंथ में शरीर की रचना, रोगों के कारण, निदान, औषधियों के प्रयोग और स्वस्थ जीवन के नियमों का विस्तृत वर्णन मिलता है।

चरक ने कहा कि “मनुष्य का स्वास्थ्य केवल औषधि से नहीं, बल्कि आहार, विचार और आचरण से भी जुड़ा होता है।” उन्होंने त्रिदोष सिद्धांत — वात, पित्त और कफ — का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार शरीर का संतुलन इन तीन तत्वों पर निर्भर करता है।

आचार्य चरक ने पर्यावरण, जलवायु और मानसिक स्थिति को भी स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण घटक बताया। उनका मानना था कि चिकित्सक को केवल रोग नहीं, बल्कि रोगी के संपूर्ण जीवन को समझना चाहिए। उन्होंने नैतिकता, करुणा और ईमानदारी को वैद्य का सर्वोत्तम गुण माना।

चरक संहिता का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ और यह आज भी आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान में संदर्भ के रूप में उपयोग होती है।

आचार्य चरक ने आयुर्वेद को विज्ञान और दर्शन का संगम बनाकर मानवता की अमूल्य सेवा की। इस प्रकार, वे न केवल भारत के, बल्कि समूचे विश्व के चिकित्सा इतिहास के अमर प्रतीक माने जाते हैं।

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