SHANDILYA

 

शांडिल्य ऋषि 

ऋषि शांडिल्य प्राचीन भारत के प्रसिद्ध और पूजनीय महर्षियों में से एक माने जाते हैं। वे वेद, उपनिषद और धर्मशास्त्र के गहन ज्ञाता थे। “शांडिल्य” नाम उनके गोत्र से भी जुड़ा है, जो आज भी अनेक ब्राह्मण कुलों में प्रचलित है। महर्षि शांडिल्य का योगदान भारतीय दर्शन, भक्ति और आचारशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

कहा जाता है कि ऋषि शांडिल्य भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उन्होंने भक्ति को केवल पूजा-पाठ का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग बताया। शांडिल्य भक्ति सूत्र उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसमें उन्होंने भक्ति के स्वरूप, गुण और महत्व का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति वह है जिसमें मनुष्य बिना किसी स्वार्थ के ईश्वर में पूर्ण प्रेम और समर्पण करे।

महर्षि शांडिल्य ने समाज को नैतिकता, सत्य, संयम और कर्तव्य का संदेश दिया। उन्होंने जीवन में धर्म के पालन और आत्म-शुद्धि पर बल दिया। उनके विचारों में आध्यात्मिकता और व्यवहारिक जीवन का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।

कथाओं के अनुसार, वे कई यज्ञों और वैदिक शिक्षाओं के आयोजक रहे। उनके नाम से शांडिल्य उपनिषद भी प्रसिद्ध है, जिसमें योग, ध्यान और ब्रह्मज्ञान के सिद्धांतों का वर्णन है। उन्होंने ईश्वर-भक्ति को सभी के लिए सुलभ बताया, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग का हो।

ऋषि शांडिल्य का जीवन और शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने यह सिद्ध किया कि भक्ति और ज्ञान का मार्ग मनुष्य को न केवल ईश्वर के निकट लाता है, बल्कि उसे नैतिक और आध्यात्मिक रूप से भी महान बनाता है। इस प्रकार, महर्षि शांडिल्य भारतीय अध्यात्म और भक्ति परंपरा के अमर प्रतीक हैं।

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