VISHWAMITRA
विश्वामित्र
ऋषि विश्वामित्र भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में अत्यंत प्रसिद्ध और पूजनीय ऋषियों में से एक हैं। वे न केवल एक महान तपस्वी थे, बल्कि वेदों के ज्ञाता, नीति-निर्माता और ब्रह्मर्षि के रूप में भी जाने जाते हैं। उनका नाम “विश्वामित्र” का अर्थ है — “विश्व का मित्र”, अर्थात् वह जो संपूर्ण जगत के कल्याण की भावना रखता हो।
विश्वामित्र का मूल नाम कौशिक था, और वे प्रारंभ में एक शक्तिशाली राजा थे। एक बार उन्होंने महर्षि वशिष्ठ के आश्रम का दौरा किया, जहाँ उन्होंने वशिष्ठ की कामधेनु गाय की शक्ति देखी। इस गाय से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे प्राप्त करने की इच्छा की, परंतु वशिष्ठ ने मना कर दिया। इस घटना से विश्वामित्र को गहरा आघात पहुँचा और उन्होंने संकल्प लिया कि वे स्वयं तपस्या करके वशिष्ठ के समान, बल्कि उनसे भी महान ब्रह्मर्षि बनेंगे।
कई वर्षों की कठिन तपस्या, त्याग और आत्मसंयम के बाद वे देवताओं द्वारा ब्रह्मर्षि की उपाधि से सम्मानित हुए। उनके जीवन में अनेक परीक्षाएँ आईं — जिनमें अप्सरा मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग होना भी शामिल है — परंतु हर बार उन्होंने अपने अनुभवों से शक्ति प्राप्त की और आगे बढ़े।
विश्वामित्र को गायत्री मंत्र का रचयिता भी माना जाता है, जो वेदों का सबसे पवित्र मंत्र है। उन्होंने राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा ली और भगवान राम को दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा दी।
ऋषि विश्वामित्र का जीवन यह सिखाता है कि दृढ़ संकल्प, तप और आत्मबल के द्वारा मनुष्य असंभव को भी संभव बना सकता है। वे मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत हैं, जिन्होंने यह सिद्ध किया कि किसी का जन्म नहीं, बल्कि कर्म ही उसे महान बनाता है।
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