TILOTTAMA

 

तिलोत्तमा 

तिलोत्तमा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अत्यंत सुंदर अप्सरा के रूप में वर्णित हैं। उनका नाम “तिलोत्तमा” दो शब्दों से मिलकर बना है — ‘तिल’ अर्थात् अणु या कण और ‘उत्तमा’ अर्थात् श्रेष्ठ। अर्थात् तिलोत्तमा का अर्थ है — वह जो प्रत्येक कण में उत्तमता या सुंदरता से भरी हो।

तिलोत्तमा का उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि जब असुर भाई सुंड और उपसुंड ने अपने बल और घमंड से देवताओं, मनुष्यों तथा ऋषियों को अत्याचारों से पीड़ित कर दिया, तब देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से उनकी मुक्ति का उपाय पूछा। तब ब्रह्मा ने दिव्य शक्तियों से एक अनुपम सुंदर नारी की सृष्टि की, जिसका नाम तिलोत्तमा रखा गया।

तिलोत्तमा की सुंदरता अद्वितीय थी। उन्हें देखकर स्वयं देवता भी मोहित हो उठे। ब्रह्मा ने उन्हें सुंड और उपसुंड के पास भेजा। दोनों असुर तिलोत्तमा पर मोहित होकर एक-दूसरे से झगड़ पड़े और आपस में ही युद्ध करते हुए मारे गए। इस प्रकार तिलोत्तमा ने अपनी मोहकता और बुद्धिमत्ता से देवताओं को असुरों से मुक्ति दिलाई।

तिलोत्तमा केवल सौंदर्य की प्रतीक नहीं थीं, बल्कि नीति, बुद्धि और योजना की प्रतीक भी मानी जाती हैं। उनकी कथा यह सिखाती है कि ईश्वर ने प्रत्येक सृष्टि में किसी न किसी उद्देश्य के लिए विशेष गुण दिए हैं, और जब ये गुण धर्म की रक्षा में प्रयुक्त होते हैं, तब वे दिव्यता का रूप ले लेते हैं।

इस प्रकार, तिलोत्तमा भारतीय पौराणिक परंपरा में सौंदर्य, सद्गुण और कर्तव्यनिष्ठा की एक दिव्य प्रतिमूर्ति के रूप में याद की जाती हैं।

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