NACHIKETA
नचिकेता
नचिकेता भारतीय उपनिषदों में वर्णित एक महान बालक और अद्भुत जिज्ञासु के रूप में जाने जाते हैं। उनका उल्लेख कठोपनिषद में मिलता है, जो जीवन, मृत्यु और आत्मा के गूढ़ रहस्यों को उजागर करता है। नचिकेता की कथा हमें ज्ञान, सत्य और आत्म-बल की प्रेरणा देती है।
कथा के अनुसार, नचिकेता ऋषि वाजश्रवस के पुत्र थे। एक बार उनके पिता ने यज्ञ किया जिसमें उन्होंने अपनी सारी वस्तुएँ दान में दे दीं। लेकिन जब नचिकेता ने देखा कि वे बूढ़ी और अनुपयोगी गायों का दान कर रहे हैं, तो उन्होंने अपने पिता से पूछा — “पिताजी, मुझे किसे दान करेंगे?” पिता ने क्रोधित होकर कह दिया — “तुझे यमराज को दे दूँगा।”
सत्यप्रिय नचिकेता स्वयं यमलोक पहुँच गए। यमराज उस समय वहाँ नहीं थे, इसलिए नचिकेता ने तीन दिन तक बिना भोजन-पानी के उनका इंतजार किया। यमराज उनके धैर्य और निष्ठा से प्रसन्न हुए और तीन वरदान माँगने को कहा। पहले वर में नचिकेता ने अपने पिता की प्रसन्नता, दूसरे वर में अग्नि-विद्या का ज्ञान और तीसरे वर में मृत्यु के रहस्य का उत्तर माँगा।
यमराज ने नचिकेता को अमर आत्मा का ज्ञान दिया और बताया कि आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है — वह शाश्वत और अविनाशी है। यह ज्ञान कठोपनिषद का मूल संदेश बना, जो आज भी आत्मज्ञान की सर्वोच्च शिक्षा मानी जाती है।
नचिकेता का जीवन सत्य, दृढ़ता और जिज्ञासा का प्रतीक है। एक बालक होकर भी उन्होंने वह ज्ञान प्राप्त किया जो ऋषि-मुनियों का लक्ष्य होता है।
इस प्रकार, नचिकेता भारतीय दर्शन में आत्मज्ञान, निर्भयता और सत्य की खोज के आदर्श प्रतीक के रूप में सदैव स्मरणीय हैं।
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