SUMANT

 

सुमंत 

सुमंत महर्षि वाल्मीकि की रामायण में अयोध्या के राजा दशरथ के महामंत्री थे। वे बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और अत्यंत योग्य राजपुरुष माने जाते थे। सुमंत अपने समय के श्रेष्ठ राजनीतिज्ञों में से एक थे, जिन्होंने न केवल प्रशासन में दक्षता दिखाई, बल्कि नीतियों में भी गहरी समझ रखी। वे राजा दशरथ के विश्वस्त सलाहकार थे और राजकाज के संचालन में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था।

सुमंत का स्वभाव गंभीर, विवेकशील और कोमल हृदय वाला था। जब श्रीराम को वनवास देने का समय आया, तब सुमंत ने राजा दशरथ को समझाने का बहुत प्रयास किया कि वे अपने वचन के पालन में कुछ नरमी दिखाएँ। परंतु जब दशरथ ने धर्मपालन को सर्वोपरि मानते हुए राम को वनवास देने का निर्णय लिया, तब सुमंत ने भी धर्म के मार्ग का सम्मान किया।

राजा दशरथ ने सुमंत को आदेश दिया कि वे श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को वन तक पहुँचाकर लौट आएँ। सुमंत ने बड़ी श्रद्धा और भावनाओं के साथ यह कार्य किया। वे अत्यंत दुखी थे, परंतु अपनी निष्ठा और कर्तव्य के प्रति अडिग रहे। जब वे अयोध्या लौटे, तो उन्होंने राजा दशरथ को श्रीराम के वन गमन का समाचार दिया, जिसके बाद दशरथ शोक से विह्वल हो गए।

सुमंत का जीवन आदर्श मंत्री, सच्चे भक्त और धर्मनिष्ठ व्यक्ति का प्रतीक है। उन्होंने हमेशा सत्य, निष्ठा और धर्म के मार्ग पर चलकर राजा और राज्य की सेवा की। उनकी बुद्धिमत्ता और वफादारी भारतीय इतिहास में अनुकरणीय उदाहरण हैं।

महामंत्री सुमंत हमें यह सिखाते हैं कि किसी भी शासन या संगठन की सफलता में ईमानदार और बुद्धिमान सलाहकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

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