MAHARSHI PATANJALI
महर्षि पतंजलि
महर्षि पतंजलि प्राचीन भारत के महान दार्शनिक, योगी और व्याकरणाचार्य थे। उन्होंने भारतीय दर्शन, विशेषकर योगशास्त्र, को व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत किया। पतंजलि को “योगसूत्र” का रचयिता माना जाता है, जो योग के सिद्धांतों और अभ्यासों का आधारभूत ग्रंथ है।
महर्षि पतंजलि का जीवनकाल लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के शेषनाग के अवतार थे। उनका उद्देश्य मानव जीवन को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से संतुलित बनाना था। उन्होंने योग को केवल साधना नहीं, बल्कि जीवन जीने की पूर्ण पद्धति के रूप में प्रस्तुत किया।
उनका ग्रंथ पतंजलि योगसूत्र चार भागों में विभाजित है — समाधि पाद, साधना पाद, विभूति पाद और कैवल्य पाद। इसमें उन्होंने योग के अष्टांग मार्ग का वर्णन किया है — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यह मार्ग आत्म-संयम, शुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है।
महर्षि पतंजलि ने यह सिखाया कि मनुष्य का मन ही उसके सुख और दुख का मूल कारण है। यदि मन को नियंत्रित कर लिया जाए, तो जीवन में शांति और आनंद स्वतः प्राप्त होते हैं। उन्होंने कहा — “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” अर्थात् “योग मन की वृत्तियों को शांत करने का नाम है।”
पतंजलि केवल योग के प्रवर्तक ही नहीं, बल्कि संस्कृत व्याकरण के भी महान विद्वान थे। उन्होंने महाभाष्य नामक ग्रंथ लिखा, जो पाणिनि के व्याकरण पर एक प्रसिद्ध भाष्य है।
महर्षि पतंजलि ने योग और ज्ञान के माध्यम से मानवता को आत्म-उन्नति का मार्ग दिखाया। इस प्रकार, वे भारतीय दर्शन, योग और अध्यात्म के अमर स्तंभ माने जाते हैं, जिनकी शिक्षाएँ आज भी विश्वभर में प्रेरणा देती हैं।
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