RAMBHA
रंभा
रंभा हिंदू पौराणिक कथाओं में स्वर्ग की प्रमुख अप्सराओं में से एक हैं। उन्हें सौंदर्य, कला और मोहकता की प्रतीक माना जाता है। रंभा का उल्लेख रामायण, महाभारत और अनेक पुराणों में मिलता है। उनका नाम “रंभा” का अर्थ है — वह जो सभी को आकर्षित करने वाली या प्रसन्न करने वाली हो।
कथाओं के अनुसार, रंभा की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी, जब अमृत, लक्ष्मी और अन्य दिव्य वस्तुएँ निकली थीं। स्वर्गलोक में उन्हें देवताओं की नर्तकी के रूप में विशेष स्थान प्राप्त हुआ। उनके नृत्य और संगीत से स्वर्ग का वातावरण आनंद और सौंदर्य से भर उठता था। रंभा को नृत्यकला में अद्वितीय निपुणता प्राप्त थी, और वे सभी अप्सराओं में सबसे कोमल और मनोहर मानी जाती थीं।
रंभा की कथा मेघनाथ और विश्वामित्र से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि इंद्र ने उन्हें ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा था। लेकिन जब ऋषि ने उन्हें शाप दे दिया कि वे पत्थर की मूर्ति बन जाएँ, तो रंभा ने अपनी गलती का पश्चाताप किया। बाद में शाप से मुक्ति मिलने पर उन्होंने फिर से देवलोक में अपना स्थान प्राप्त किया।
रंभा केवल सुंदरता की प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे यह सिखाती हैं कि सौंदर्य और कला का उपयोग धर्म और सदाचार के मार्ग पर होना चाहिए। उनका जीवन यह दर्शाता है कि मोहकता का सही उपयोग तभी सार्थक है, जब वह कल्याण और संतुलन के लिए किया जाए।
इस प्रकार, रंभा भारतीय पौराणिक परंपरा में सौंदर्य, कला, नृत्य और मर्यादा की प्रतीक के रूप में सदैव पूजनीय मानी जाती हैं।
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