SHWEDAGON PAGODA



श्वेडागोन पगोडा: म्यांमार की आध्यात्मिक पहचान

श्वेडागोन पगोडा, जिसे "श्वेडागोन ज़ैदी" (Shwedagon Zedi) भी कहा जाता है, म्यांमार का सबसे पवित्र और प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप है। यह यांगून शहर की एक पहाड़ी पर स्थित है और दूर से ही इसकी सुनहरी चमक नजर आती है। यह पगोडा न केवल म्यांमार का धार्मिक प्रतीक है, बल्कि देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान भी है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

कहा जाता है कि श्वेडागोन पगोडा लगभग 2,600 वर्ष पुराना है, जिससे यह दुनिया के सबसे प्राचीन बौद्ध स्तूपों में से एक माना जाता है। एक किंवदंती के अनुसार, दो व्यापारी भाइयों ने बुद्ध से मिलकर उनके आठ बाल (धातु) प्राप्त किए थे। जब वे म्यांमार लौटे, तो इन बालों को एक स्तूप में स्थापित किया गया और यही पगोडा की उत्पत्ति मानी जाती है।

हालांकि वर्तमान में जो संरचना है, वह मुख्य रूप से 15वीं शताब्दी में बनाई गई थी और समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण तथा विस्तार होता रहा है। कई बार भूकंपों और युद्धों के दौरान यह क्षतिग्रस्त भी हुआ, लेकिन इसे बार-बार पुनः संवार दिया गया।

स्थापत्य और विशेषताएँ

श्वेडागोन पगोडा की ऊँचाई लगभग 112 मीटर (367 फीट) है और इसका ऊपरी हिस्सा पूरी तरह सोने की परत से ढका हुआ है। कहा जाता है कि इसमें टनों के हिसाब से सोना लगा हुआ है, जो श्रद्धालुओं द्वारा दान स्वरूप चढ़ाया गया है। इसके शीर्ष पर एक "हति" (छत्र) लगा है, जिसमें हज़ारों कीमती रत्न जैसे हीरे, माणिक और नीलम जड़े हुए हैं। सबसे ऊपर एक बड़ा हीरा भी लगा है, जो सूर्य की रोशनी में चमकता है।

धार्मिक महत्त्व

यह पगोडा बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र है। यहाँ हजारों श्रद्धालु प्रार्थना, ध्यान और दीप दान के लिए आते हैं। विशेष अवसरों पर यहाँ भव्य उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जिनमें स्थानीय लोग पारंपरिक वेशभूषा में भाग लेते हैं।

निष्कर्ष

श्वेडागोन पगोडा म्यांमार की आत्मा का प्रतीक है। इसकी भव्यता, इतिहास और आध्यात्मिक ऊर्जा इसे दुनिया के महान धार्मिक स्थलों में स्थान दिलाते हैं। यह केवल एक वास्तु नहीं, बल्कि आस्था और श्रद्धा का जीवंत उदाहरण है।



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