GOTRA

 

गोत्र 

गोत्र हिंदू समाज की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण सामाजिक-धार्मिक परंपरा है। संस्कृत में “गोत्र” शब्द का अर्थ होता है – “गायों का समूह” या “वंश परंपरा”। व्यवहारिक रूप में, गोत्र व्यक्ति के कुल, वंश या पूर्वज ऋषि से संबंध को दर्शाता है। हर व्यक्ति का गोत्र उसके पूर्वज ऋषि से जुड़ा होता है, जो उस वंश का मूल प्रवर्तक माना जाता है।

हिंदू धर्म में माना जाता है कि मानव जाति की उत्पत्ति सप्त ऋषियों – गौतम, कश्यप, भारद्वाज, वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र और जमदग्नि – से हुई। इन्हीं ऋषियों के वंशजों ने अलग-अलग गोत्रों का निर्माण किया। इसलिए हर गोत्र किसी न किसी ऋषि के नाम से जुड़ा हुआ है, जैसे — कश्यप गोत्र, वशिष्ठ गोत्र, भारद्वाज गोत्र, गौतम गोत्र आदि।

गोत्र का सबसे प्रमुख उद्देश्य यह था कि समाज में रक्त-संबंधों की पवित्रता बनी रहे। इसी कारण हिंदू धर्म में समान गोत्र में विवाह करना वर्जित माना गया है, क्योंकि समान गोत्र के लोग एक ही पूर्वज के वंशज माने जाते हैं। इसे “सगोत्र विवाह” कहा जाता है, जो धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से अनुचित माना गया है।

गोत्र केवल व्यक्ति की पहचान ही नहीं, बल्कि उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों का प्रतीक भी है। यह प्रणाली परिवार, परंपरा और धर्म के मूल्यों को बनाए रखने में सहायक रही है।

संक्षेप में, गोत्र हिंदू समाज की वंश-परंपरा, पहचान और नैतिक अनुशासन का प्रतीक है। यह हमें हमारे पूर्वजों की स्मृति से जोड़ता है और यह सिखाता है कि पारिवारिक, धार्मिक और सामाजिक मूल्यों का संरक्षण हर व्यक्ति का कर्तव्य है। गोत्र भारतीय संस्कृति की उस अद्भुत परंपरा का हिस्सा है जो परिवार और समाज को एकता के सूत्र में बाँधती है।

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