SHISHUPAL

 

महाभारत के शिशुपाल

शिशुपाल महाभारत का एक प्रसिद्ध पात्र था, जो चेदि राज्य का राजा था। वह श्रीकृष्ण का मामा का पुत्र था, क्योंकि उसकी माता श्रीकृष्ण की बुआ थीं। शिशुपाल बचपन से ही अहंकारी और क्रोधी स्वभाव का था। उसके जन्म के समय उसकी माता को यह भविष्यवाणी मिली थी कि उसका वध उसी व्यक्ति के हाथों होगा जिसके सामने उसके शरीर के तीन नेत्र और चार भुजाएँ दिखाई देंगी। बाद में जब श्रीकृष्ण उसके दर्शन करने आए, तो वही चिह्न उनके शरीर पर दिखे। तब माता ने विनती की कि श्रीकृष्ण उसे सौ अपराधों तक क्षमा कर दें, और श्रीकृष्ण ने यह वचन स्वीकार कर लिया।

शिशुपाल को श्रीकृष्ण से अत्यधिक द्वेष था। वह उन्हें अपना शत्रु मानता था और हर अवसर पर उनका अपमान करता था। जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया, तब सभी राजाओं ने श्रीकृष्ण को “अग्रपूजा” के लिए सर्वोत्तम मानते हुए उनका सम्मान किया। परंतु शिशुपाल ने इसका विरोध किया और सभा में श्रीकृष्ण का अपमान करने लगा। उसने अनेक कटु और अपमानजनक बातें कहीं, पर श्रीकृष्ण धैर्यपूर्वक सुनते रहे।

जब शिशुपाल ने अपने सौ अपराध पूरे कर लिए, तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। कहते हैं कि मृत्यु के समय उसकी आत्मा श्रीकृष्ण में विलीन हो गई, क्योंकि अंततः वह भी भगवान का ही अंश था।

संक्षेप में, शिशुपाल का चरित्र घमंड, द्वेष और अहंकार का प्रतीक है। उसका जीवन यह सिखाता है कि जो व्यक्ति ईश्वर का अपमान करता है और धर्म के मार्ग से भटकता है, उसका अंत विनाश में होता है। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल के माध्यम से यह संदेश दिया कि सहनशीलता की भी एक सीमा होती है और जब वह सीमा पार हो जाए, तो अधर्म का अंत निश्चित है।

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