MAHARSHI PARASHAR
महर्षि पराशर
महर्षि पराशर हिंदू धर्म के महान ऋषियों में से एक थे। वे प्राचीन वैदिक काल के विख्यात तपस्वी, विद्वान और वेदों के ज्ञाता थे। महर्षि पराशर को विशेष रूप से वेदव्यास के पिता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने आगे चलकर महाभारत की रचना की। पराशर ऋषि का जीवन ज्ञान, तपस्या और करुणा का प्रतीक माना जाता है।
महर्षि पराशर का जन्म महर्षि शक्ता के पुत्र के रूप में हुआ था। कहा जाता है कि उनके पिता की मृत्यु दानवों के हाथों हुई थी, जिसके कारण उन्होंने प्रतिशोध की भावना से यज्ञ द्वारा सभी राक्षसों का संहार करने का निश्चय किया। तब महर्षि पुलस्त्य ने उन्हें समझाया कि क्रोध से धर्म की हानि होती है। इसके बाद उन्होंने क्षमा और दया को अपनाया और अपना जीवन ज्ञान के प्रसार में समर्पित कर दिया।
महर्षि पराशर ने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें पराशर स्मृति और विष्णु पुराण अत्यंत प्रसिद्ध हैं। विष्णु पुराण में उन्होंने सृष्टि, धर्म, कर्म और भगवान विष्णु की महिमा का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। उनकी शिक्षाएँ वेदांत और आचार दर्शन पर आधारित थीं।
महर्षि पराशर ने सत्यवती से विवाह किया, और उनके पुत्र महर्षि व्यास हुए, जिन्होंने आगे चलकर भारतीय संस्कृति और धर्म को नई दिशा दी। इस प्रकार, पराशर ऋषि भारतीय ज्ञान परंपरा की एक प्रमुख कड़ी हैं।
संक्षेप में, महर्षि पराशर एक ऐसे महान ऋषि थे जिन्होंने मानवता को धर्म, नीति और ज्ञान का सच्चा संदेश दिया। उनका जीवन यह सिखाता है कि क्रोध और प्रतिशोध से नहीं, बल्कि क्षमा, करुणा और ज्ञान से ही सच्चा धर्म स्थापित होता है। वे भारतीय ऋषि परंपरा के उज्ज्वल दीप हैं, जिनकी शिक्षाएँ आज भी मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
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