MAHARSHI VYAS

 

महर्षि व्यास 

महर्षि व्यास हिंदू धर्म के महान ऋषि, ग्रंथकार और वेदों के विभाजक माने जाते हैं। उनका पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन व्यास था, क्योंकि उनका जन्म यमुना नदी के द्वीप पर हुआ था और उनका वर्ण श्याम था। वे महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। महर्षि व्यास को वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है।

महर्षि व्यास का भारतीय संस्कृति और साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने चारों वेदों—ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद—को अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया, ताकि उनका अध्ययन और संरक्षण सरल हो सके। इसी कारण उन्हें “वेदव्यास” कहा गया। उन्होंने महाभारत जैसे विशाल ग्रंथ की रचना की, जो विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है।

महाभारत केवल युद्ध की कथा नहीं, बल्कि जीवन, धर्म, नीति और कर्म के गहन सिद्धांतों का संग्रह है। इसी ग्रंथ के भीतर भगवद गीता का उपदेश भी आता है, जो मानव जीवन का मार्गदर्शन करने वाला अद्भुत ग्रंथ है।

महर्षि व्यास ने पुराणों की रचना का कार्य भी प्रारंभ किया। कहा जाता है कि उन्होंने 18 प्रमुख पुराणों की रचना की, जिनमें भागवत पुराण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। वे एक गहन चिंतक, तत्वज्ञानी और महान दार्शनिक थे।

महर्षि व्यास ने ज्ञान, सत्य और धर्म के प्रचार में अपना जीवन समर्पित किया। उनका योगदान न केवल धार्मिक ग्रंथों तक सीमित है, बल्कि उन्होंने समाज को जीवन के उच्च आदर्शों का भी संदेश दिया।

संक्षेप में, महर्षि व्यास भारतीय संस्कृति के ज्ञान-सूर्य हैं। उनका जीवन और रचनाएँ आज भी मानवता को धर्म, कर्तव्य और ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। वे सच्चे अर्थों में भारत के महानतम ऋषियों में से एक हैं।

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