SANJAY OF MAHABHARAT
महाभारत के संजय
संजय महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र थे, जो हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के सारथी और विश्वसनीय सलाहकार थे। वे अपनी बुद्धिमत्ता, सत्यनिष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें “दिव्य दृष्टि” का वरदान दिया था, जिसके माध्यम से वे युद्ध के मैदान में घटित हर घटना को बिना उपस्थित हुए भी देख और सुन सकते थे।
महाभारत युद्ध के समय जब धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों और पांडवों के बीच युद्ध होने की सूचना सुनी, तब उन्होंने संजय से युद्ध का पूरा वर्णन करने को कहा। संजय ने दिव्य दृष्टि के माध्यम से कुरुक्षेत्र में चल रहे युद्ध का प्रत्येक दृश्य प्रत्यक्ष देखा और राजा को विस्तार से बताया। उनके द्वारा ही हमें भगवद गीता के उपदेशों की जानकारी मिली, जो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिए थे।
संजय का चरित्र सत्य और निष्पक्षता का प्रतीक है। वे जानते थे कि दुर्योधन और उसके भाई अन्याय के मार्ग पर हैं, फिर भी उन्होंने अपने कर्तव्य के अनुसार राजा धृतराष्ट्र की सेवा की और उन्हें सत्य सुनाया। उन्होंने बार-बार राजा को धर्म का पालन करने और युद्ध से बचने की सलाह दी, परंतु धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह के कारण उनकी बात नहीं मानी।
संजय ने युद्ध की हर भयानक घटना, वीरों के पराक्रम और श्रीकृष्ण की दिव्यता का वर्णन बड़ी निष्ठा से किया। वे न केवल एक आदर्श सेवक थे, बल्कि एक ज्ञानी और धर्मपरायण व्यक्ति भी थे।
संक्षेप में, संजय का चरित्र हमें सिखाता है कि सत्य बोलना और कर्तव्य निभाना जीवन का सर्वोच्च धर्म है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि भले ही हम किसी के अधीन हों, परंतु सत्य और धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होना चाहिए।
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