KONDHANA FORT
कोंढाणा किला – वीरता और बलिदान की भूमि
कोंढाणा किला महाराष्ट्र के पुणे जिले के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक ऐतिहासिक दुर्ग है। यह किला सह्याद्रि की पहाड़ियों में स्थित है और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। यह वही किला है जिसे बाद में सिंहगढ़ नाम दिया गया, जो मराठा इतिहास में तानाजी मालुसरे की वीरता और बलिदान के कारण प्रसिद्ध है।
कोंढाणा का इतिहास काफी प्राचीन है। पहले यह किला बीजापुर सुल्तानate के अधीन था, और शिवाजी महाराज के शासन काल में उन्होंने इसे मराठा साम्राज्य में शामिल करने का निश्चय किया। 1670 में शिवाजी ने अपने प्रिय मित्र और वीर सेनानी तानाजी मालुसरे को इस किले को जीतने का कार्य सौंपा। उस समय किला मुग़ल सूबेदार उदयभान राठौर के नियंत्रण में था।
तानाजी ने अपने विवाह के आयोजन को स्थगित कर कोंढाणा पर चढ़ाई की। उन्होंने रात के अंधेरे में एक विशाल छिपकली ‘यशवंती’ की सहायता से किले की दीवारों पर चढ़ाई की। जबरदस्त संघर्ष के बाद मराठा सेना ने किले पर अधिकार कर लिया, लेकिन इस युद्ध में तानाजी वीरगति को प्राप्त हुए।
उनकी वीरता से प्रभावित होकर शिवाजी महाराज ने दुःखी होकर कहा – "गढ़ तो जीत लिया, पर सिंह चला गया"। इसी कारण से कोंढाणा किले को "सिंहगढ़" नाम दिया गया।
आज सिंहगढ़ (कोंढाणा) किला मराठा गौरव, वीरता और बलिदान का प्रतीक बन चुका है। यह स्थान इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए एक प्रेरणास्पद स्थल है। यहां से पुणे शहर और सह्याद्रि पर्वतों का दृश्य अत्यंत मनोरम दिखाई देता है।
कोंढाणा का इतिहास मराठा शक्ति और स्वराज्य के लिए दिए गए बलिदानों की अमर गाथा है।
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