MARATHA

 

मराठा – स्वराज्य और शौर्य के प्रतीक 

मराठा एक शक्तिशाली भारतीय समुदाय और राजनीतिक शक्ति के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने 17वीं और 18वीं शताब्दी में भारत में स्वराज्य की भावना को जन्म दिया और उसे साकार किया। मराठा केवल एक जाति नहीं, बल्कि एक विचारधारा और आंदोलन थे, जो स्वतंत्रता, स्वाभिमान और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित थे। इनका मुख्य केंद्र महाराष्ट्र क्षेत्र था, लेकिन मराठों का प्रभाव संपूर्ण भारत में फैल गया।

मराठा साम्राज्य की स्थापना छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1674 में रायगढ़ किले में अपने राज्याभिषेक के साथ की। उन्होंने एक संगठित प्रशासन, स्वतंत्र न्याय व्यवस्था और मजबूत सेना का निर्माण किया। शिवाजी की गुरिल्ला युद्धनीति, पर्वतीय किलों का उपयोग, और जनता के साथ घनिष्ठ संबंधों ने मराठा शक्ति को मजबूत किया। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य की कमजोरियों को पहचानते हुए एक सशक्त और स्वतंत्र मराठा राज्य की नींव रखी।

शिवाजी के बाद उनके पुत्र शंभाजी और फिर मराठा पेशवाओं ने साम्राज्य का विस्तार किया। पेशवा बाजीराव प्रथम, बालाजी बाजीराव और महादजी शिंदे जैसे नेताओं ने उत्तर भारत तक मराठा सत्ता का प्रभाव बढ़ाया। 18वीं शताब्दी में मराठा भारत की सबसे बड़ी सैन्य और राजनीतिक शक्ति बन चुके थे। पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) में अस्थायी पराजय के बावजूद, मराठों ने जल्दी ही अपना प्रभाव पुनः स्थापित किया।

मराठों की सेना में घुड़सवारों और पैदल सैनिकों का सशक्त मिश्रण होता था। वे किलों के निर्माण, रणनीति, युद्धकला और प्रशासन में अत्यंत कुशल थे। उन्होंने हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा को जन्म दिया, जिसमें धर्म, संस्कृति और जनहित की रक्षा को प्रमुखता दी गई।

मराठा साम्राज्य का अंत 1818 में अंग्रेजों के साथ हुए अंतिम युद्ध में हुआ, लेकिन उनकी वीरता, आत्मबल, और स्वतंत्रता की भावना आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

निष्कर्षतः, मराठा केवल एक योद्धा समुदाय नहीं, बल्कि एक महान सभ्यता और स्वराज्य की चेतना का नाम है। वे भारतीय इतिहास में गौरव, पराक्रम और स्वतंत्रता की अमर मिसाल हैं।

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