KARTIK PURNIMA
कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शुभ पर्व है। यह त्यौहार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली के लगभग पंद्रह दिन बाद आती है। यह दिन धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने "मत्स्य अवतार" धारण किया था। इसी कारण इसे "देव दीपावली" या "त्रिपुरारी पूर्णिमा" भी कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिससे देवताओं ने प्रसन्न होकर गंगा जी के तट पर दीप जलाए थे। इसी से यह परंपरा शुरू हुई कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान किया जाए। इस दिन गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्नान, दान और पूजा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं।
देशभर में इस दिन मेलों और उत्सवों का आयोजन होता है। वाराणसी में “देव दीपावली” का भव्य उत्सव मनाया जाता है, जहाँ गंगा घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं। राजस्थान के पुष्कर में प्रसिद्ध “पुष्कर मेला” भी इसी अवसर पर आयोजित होता है, जो देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह हमें प्रकाश, भक्ति और पवित्रता का संदेश भी देता है। यह दिन ईश्वर के प्रति श्रद्धा, दया और सेवा का प्रतीक माना जाता है।
अतः कार्तिक पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक उज्ज्वल पर्व है जो हमें सत्कर्म, दान और आध्यात्मिक जीवन का मार्ग दिखाता है।
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