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Showing posts from November, 2025

NAL AND NIL

  नल और नील  नल और नील रामायण के प्रसिद्ध पात्र हैं, जो वानर सेना के वीर योद्धा तथा कुशल वास्तुकार (निर्माणकर्ता) थे। वे वानरराज सुग्रीव की सेना के सदस्य थे और भगवान श्रीराम के साथ लंका विजय अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नल और नील दोनों भाई थे और उन्हें वास्तुकला एवं निर्माण विद्या में असाधारण ज्ञान प्राप्त था। किंवदंती के अनुसार, नल और नील को बचपन में यह वरदान मिला था कि वे जो भी पत्थर पानी में फेंकेंगे, वह डूबेगा नहीं बल्कि तैरता रहेगा। यही वरदान आगे चलकर रामायण के सबसे महत्वपूर्ण कार्य — रामसेतु (सेतुबंध) — के निर्माण में काम आया। जब भगवान श्रीराम को समुद्र पार करके लंका पहुँचना था, तब समुद्र के बीच रास्ता बनाने का कार्य नल और नील को सौंपा गया। उन्होंने अपने वरदान का उपयोग करके पत्थरों से पुल का निर्माण किया, जो समुद्र की लहरों पर तैरता रहा। इस अद्भुत कार्य के कारण ही रामसेतु को आज भी “नल-नील सेतु” कहा जाता है। नल और नील न केवल वीर योद्धा थे, बल्कि अत्यंत बुद्धिमान और परिश्रमी भी थे। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी और अपने कौशल से असंभव को संभव...

SUMANT

  सुमंत  सुमंत महर्षि वाल्मीकि की रामायण में अयोध्या के राजा दशरथ के महामंत्री थे। वे बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और अत्यंत योग्य राजपुरुष माने जाते थे। सुमंत अपने समय के श्रेष्ठ राजनीतिज्ञों में से एक थे, जिन्होंने न केवल प्रशासन में दक्षता दिखाई, बल्कि नीतियों में भी गहरी समझ रखी। वे राजा दशरथ के विश्वस्त सलाहकार थे और राजकाज के संचालन में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। सुमंत का स्वभाव गंभीर, विवेकशील और कोमल हृदय वाला था। जब श्रीराम को वनवास देने का समय आया, तब सुमंत ने राजा दशरथ को समझाने का बहुत प्रयास किया कि वे अपने वचन के पालन में कुछ नरमी दिखाएँ। परंतु जब दशरथ ने धर्मपालन को सर्वोपरि मानते हुए राम को वनवास देने का निर्णय लिया, तब सुमंत ने भी धर्म के मार्ग का सम्मान किया। राजा दशरथ ने सुमंत को आदेश दिया कि वे श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को वन तक पहुँचाकर लौट आएँ। सुमंत ने बड़ी श्रद्धा और भावनाओं के साथ यह कार्य किया। वे अत्यंत दुखी थे, परंतु अपनी निष्ठा और कर्तव्य के प्रति अडिग रहे। जब वे अयोध्या लौटे, तो उन्होंने राजा दशरथ को श्रीराम के वन गमन का समाचार दिया, जिसके बाद दश...

MAHARSHI CHYAVAN

  महर्षि च्यवन  महर्षि च्यवन प्राचीन भारत के प्रसिद्ध ऋषियों में से एक थे। वे अपने ज्ञान, तपस्या और औषधि विद्या के लिए प्रसिद्ध थे। आयुर्वेद में उनका विशेष योगदान माना जाता है। उनके नाम पर प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि “च्यवनप्राश” का निर्माण हुआ, जो आज भी शरीर को बल, ऊर्जा और रोगों से रक्षा प्रदान करती है। महर्षि च्यवन का जन्म प्रसिद्ध भृगु ऋषि के पुत्र के रूप में हुआ था। वे बचपन से ही अत्यंत तेजस्वी और बुद्धिमान थे। कहा जाता है कि वे गहन तपस्या में लीन रहते थे और भगवान से आत्मसाक्षात्कार की साधना करते थे। तपस्या के कारण उनका शरीर निर्बल और वृद्ध जैसा हो गया था। एक कथा के अनुसार, राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या ने अनजाने में उनकी आँखों में काँटा चुभो दिया। जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने प्रायश्चित स्वरूप महर्षि च्यवन से विवाह किया। बाद में अश्विनीकुमारों ने अपने दिव्य औषधियों द्वारा च्यवन ऋषि को फिर से युवा और सुंदर बना दिया। इस चमत्कारिक घटना से प्रेरित होकर उन्होंने “च्यवनप्राश” नामक औषधि का निर्माण किया, जो आज भी भारतीय परंपरा में अमर है। महर्षि च्यवन ने आयुर्वेद ...

MAHARSHI BALMIKI

  महर्षि वाल्मीकि  महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के महान ऋषि, कवि और आदर्श चरित्र माने जाते हैं। उन्हें संस्कृत साहित्य का आदि कवि कहा जाता है क्योंकि उन्होंने प्रथम बार “श्लोक” छंद की रचना की थी। उन्होंने विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य “रामायण” की रचना की, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन पर आधारित है। वाल्मीकि का वास्तविक नाम रत्नाकर था। कहा जाता है कि वे प्रारंभ में एक डाकू थे, जो राहगीरों को लूटकर अपना जीवन यापन करते थे। एक दिन उन्हें महर्षि नारद से भेंट हुई, जिन्होंने उन्हें जीवन का सच्चा अर्थ समझाया। तब रत्नाकर ने गहरी तपस्या की और वर्षों तक “राम” नाम का जाप किया। उनकी तपस्या के कारण उनके शरीर पर दीमकों का घर बन गया, जिससे उनका नाम “वाल्मीकि” पड़ा, जिसका अर्थ है — दीमकों के घर से उत्पन्न व्यक्ति। तपस्या के फलस्वरूप वे एक महान ऋषि बन गए। उन्होंने आश्रम में शिक्षा प्रदान की और समाज को धर्म, सत्य और नीति का संदेश दिया। जब भगवान राम ने सीता माता को वनवास दिया, तब सीता माता ने वाल्मीकि के आश्रम में ही निवास किया और वहीं लव-कुश का जन्म हुआ। महर्षि वाल्मीकि ने ही लव और कुश ...

DRONACHARYA

  द्रोणाचार्य  महर्षि द्रोणाचार्य महाभारत के प्रसिद्ध पात्रों में से एक हैं। वे अद्वितीय योद्धा, श्रेष्ठ धनुर्विद्या शिक्षक और कौरव-पांडवों के गुरु थे। उनका नाम भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा के आदर्श के रूप में लिया जाता है। द्रोणाचार्य का जन्म महर्षि भरद्वाज के आश्रम में हुआ था। वे बचपन से ही शास्त्र और शस्त्र दोनों के ज्ञाता थे। उन्होंने भगवान परशुराम से अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। विवाह के बाद जब वे गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे थे, तब अपने मित्र राजा द्रुपद से सहायता मांगने गए, परंतु द्रुपद ने उन्हें अपमानित कर दिया। इसी कारण द्रोणाचार्य ने प्रतिज्ञा ली कि वे एक दिन द्रुपद को परास्त करेंगे। द्रोणाचार्य को बाद में हस्तिनापुर के राजकुमारों के गुरु के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने पांडवों और कौरवों को युद्धकला और नीति की शिक्षा दी। उनके शिष्य अर्जुन विशेष रूप से उनके प्रिय थे, क्योंकि अर्जुन सबसे अधिक निष्ठावान और परिश्रमी थे। द्रोणाचार्य ने उन्हें “श्रेष्ठ धनुर्धर” बनाने का वचन दिया और उसे निभाया। महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य कौरवों की ओर से ...

EKLAVYA

  एकलव्य  एकलव्य महाभारत के महान और प्रेरणादायक पात्रों में से एक हैं। वे निष्ठा, समर्पण और गुरु-भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। एकलव्य निषाद राज हिरण्यधनु के पुत्र थे और बचपन से ही महान धनुर्धर बनने की आकांक्षा रखते थे। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि सच्ची लगन और श्रद्धा से कोई भी व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकता है। कथा के अनुसार, एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन द्रोणाचार्य ने यह कहकर उन्हें शिक्षा देने से मना कर दिया कि वे केवल राजकुमारों को ही शिक्षा देते हैं। इससे निराश होने के बजाय एकलव्य ने मिट्टी की मूर्ति बनाकर द्रोणाचार्य को अपना गुरु मान लिया और उनके नाम से प्रतिदिन साधना करने लगे। अपनी कठोर मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर एकलव्य ने असाधारण धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त कर ली। जब द्रोणाचार्य ने देखा कि वह उनके शिष्यों से भी श्रेष्ठ धनुर्धर बन चुका है, तो उन्होंने गुरु-दक्षिणा के रूप में एकलव्य से उसका दाहिना अंगूठा माँग लिया। बिना किसी प्रश्न या विरोध के एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर गुरु को अर्पित कर दिया। एकलव्य का यह त्या...

NACHIKETA

  नचिकेता  नचिकेता भारतीय उपनिषदों में वर्णित एक महान बालक और अद्भुत जिज्ञासु के रूप में जाने जाते हैं। उनका उल्लेख कठोपनिषद में मिलता है, जो जीवन, मृत्यु और आत्मा के गूढ़ रहस्यों को उजागर करता है। नचिकेता की कथा हमें ज्ञान, सत्य और आत्म-बल की प्रेरणा देती है। कथा के अनुसार, नचिकेता ऋषि वाजश्रवस के पुत्र थे। एक बार उनके पिता ने यज्ञ किया जिसमें उन्होंने अपनी सारी वस्तुएँ दान में दे दीं। लेकिन जब नचिकेता ने देखा कि वे बूढ़ी और अनुपयोगी गायों का दान कर रहे हैं, तो उन्होंने अपने पिता से पूछा — “पिताजी, मुझे किसे दान करेंगे?” पिता ने क्रोधित होकर कह दिया — “तुझे यमराज को दे दूँगा।” सत्यप्रिय नचिकेता स्वयं यमलोक पहुँच गए। यमराज उस समय वहाँ नहीं थे, इसलिए नचिकेता ने तीन दिन तक बिना भोजन-पानी के उनका इंतजार किया। यमराज उनके धैर्य और निष्ठा से प्रसन्न हुए और तीन वरदान माँगने को कहा। पहले वर में नचिकेता ने अपने पिता की प्रसन्नता, दूसरे वर में अग्नि-विद्या का ज्ञान और तीसरे वर में मृत्यु के रहस्य का उत्तर माँगा। यमराज ने नचिकेता को अमर आत्मा का ज्ञान दिया और बताया कि आत्मा न तो जन...

MAHARSHI PATANJALI

  महर्षि पतंजलि  महर्षि पतंजलि प्राचीन भारत के महान दार्शनिक, योगी और व्याकरणाचार्य थे। उन्होंने भारतीय दर्शन, विशेषकर योगशास्त्र, को व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत किया। पतंजलि को “योगसूत्र” का रचयिता माना जाता है, जो योग के सिद्धांतों और अभ्यासों का आधारभूत ग्रंथ है। महर्षि पतंजलि का जीवनकाल लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के शेषनाग के अवतार थे। उनका उद्देश्य मानव जीवन को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से संतुलित बनाना था। उन्होंने योग को केवल साधना नहीं, बल्कि जीवन जीने की पूर्ण पद्धति के रूप में प्रस्तुत किया। उनका ग्रंथ पतंजलि योगसूत्र चार भागों में विभाजित है — समाधि पाद, साधना पाद, विभूति पाद और कैवल्य पाद। इसमें उन्होंने योग के अष्टांग मार्ग का वर्णन किया है — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यह मार्ग आत्म-संयम, शुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है। महर्षि पतंजलि ने यह सिखाया कि मनुष्य का मन ही उसके सुख और दुख का मूल कारण है। यदि मन को नियंत्रित कर लिया जाए, तो जीवन में शांति और आनंद स्वतः ...

CHARAK

  चरक  आचार्य चरक प्राचीन भारत के महान वैद्य, दार्शनिक और वैज्ञानिक थे। उन्हें आयुर्वेद का जनक माना जाता है। उन्होंने न केवल चिकित्सा विज्ञान को व्यवस्थित रूप दिया, बल्कि मानव शरीर, रोगों और जीवनशैली के गहरे संबंध को भी समझाया। आचार्य चरक का नाम आज भी चिकित्सा जगत में श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। आचार्य चरक का जीवन लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है। वे राजा कनिष्क के राजवैद्य थे और कुशन वंश के समय में रहते थे। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ चरक संहिता है, जो आयुर्वेद का मूल आधार माना जाता है। इस ग्रंथ में शरीर की रचना, रोगों के कारण, निदान, औषधियों के प्रयोग और स्वस्थ जीवन के नियमों का विस्तृत वर्णन मिलता है। चरक ने कहा कि “मनुष्य का स्वास्थ्य केवल औषधि से नहीं, बल्कि आहार, विचार और आचरण से भी जुड़ा होता है।” उन्होंने त्रिदोष सिद्धांत — वात, पित्त और कफ — का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार शरीर का संतुलन इन तीन तत्वों पर निर्भर करता है। आचार्य चरक ने पर्यावरण, जलवायु और मानसिक स्थिति को भी स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण घटक बताया। उनका मानना था कि चिकित्सक को केवल...

MAHARSHI VASHISHT

  महर्षि वशिष्ठ  महर्षि वशिष्ठ हिंदू धर्म के सप्तऋषियों में से एक हैं और उन्हें अत्यंत विद्वान, शांत और करुणामय ऋषि के रूप में जाना जाता है। वे वेदों, विशेषकर ऋग्वेद , के महान ऋषि और कई मंत्रों के रचयिता हैं। महर्षि वशिष्ठ का जीवन भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान की गहराई को दर्शाता है। कथाओं के अनुसार, महर्षि वशिष्ठ भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। वे राजा दशरथ के राजगुरु और भगवान राम के गुरु थे। उन्होंने राम को धर्म, नीति और जीवन के मूल सिद्धांतों की शिक्षा दी। उनके आश्रम में अनेक शिष्यों ने ज्ञान प्राप्त किया, जिनमें कई प्रसिद्ध ऋषि भी शामिल थे। महर्षि वशिष्ठ के पास कामधेनु नाम की दिव्य गाय थी, जो इच्छा अनुसार कोई भी वस्तु प्रदान कर सकती थी। इसी गाय के कारण उनका राजा विश्वामित्र से संघर्ष हुआ। परंतु वशिष्ठ ने अपनी तपशक्ति और धैर्य से यह सिद्ध किया कि आध्यात्मिक बल, सांसारिक बल से श्रेष्ठ होता है। वशिष्ठ को योग वशिष्ठ ग्रंथ का रचयिता माना जाता है, जिसमें उन्होंने भगवान राम को आत्मज्ञान और जीवन के गूढ़ रहस्यों का उपदेश दिया। इस ग्रंथ में अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों क...

SHANDILYA

  शांडिल्य ऋषि  ऋषि शांडिल्य प्राचीन भारत के प्रसिद्ध और पूजनीय महर्षियों में से एक माने जाते हैं। वे वेद, उपनिषद और धर्मशास्त्र के गहन ज्ञाता थे। “शांडिल्य” नाम उनके गोत्र से भी जुड़ा है, जो आज भी अनेक ब्राह्मण कुलों में प्रचलित है। महर्षि शांडिल्य का योगदान भारतीय दर्शन, भक्ति और आचारशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि ऋषि शांडिल्य भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उन्होंने भक्ति को केवल पूजा-पाठ का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग बताया। शांडिल्य भक्ति सूत्र उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसमें उन्होंने भक्ति के स्वरूप, गुण और महत्व का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति वह है जिसमें मनुष्य बिना किसी स्वार्थ के ईश्वर में पूर्ण प्रेम और समर्पण करे। महर्षि शांडिल्य ने समाज को नैतिकता, सत्य, संयम और कर्तव्य का संदेश दिया। उन्होंने जीवन में धर्म के पालन और आत्म-शुद्धि पर बल दिया। उनके विचारों में आध्यात्मिकता और व्यवहारिक जीवन का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। कथाओं के अनुसार, वे कई यज्ञों और वैदिक शिक्षाओं के आयोजक रहे।...

VISHWAMITRA

  विश्वामित्र  ऋषि विश्वामित्र भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में अत्यंत प्रसिद्ध और पूजनीय ऋषियों में से एक हैं। वे न केवल एक महान तपस्वी थे, बल्कि वेदों के ज्ञाता, नीति-निर्माता और ब्रह्मर्षि के रूप में भी जाने जाते हैं। उनका नाम “विश्वामित्र” का अर्थ है — “विश्व का मित्र” , अर्थात् वह जो संपूर्ण जगत के कल्याण की भावना रखता हो। विश्वामित्र का मूल नाम कौशिक था, और वे प्रारंभ में एक शक्तिशाली राजा थे। एक बार उन्होंने महर्षि वशिष्ठ के आश्रम का दौरा किया, जहाँ उन्होंने वशिष्ठ की कामधेनु गाय की शक्ति देखी। इस गाय से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे प्राप्त करने की इच्छा की, परंतु वशिष्ठ ने मना कर दिया। इस घटना से विश्वामित्र को गहरा आघात पहुँचा और उन्होंने संकल्प लिया कि वे स्वयं तपस्या करके वशिष्ठ के समान, बल्कि उनसे भी महान ब्रह्मर्षि बनेंगे। कई वर्षों की कठिन तपस्या, त्याग और आत्मसंयम के बाद वे देवताओं द्वारा ब्रह्मर्षि की उपाधि से सम्मानित हुए। उनके जीवन में अनेक परीक्षाएँ आईं — जिनमें अप्सरा मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग होना भी शामिल है — परंतु हर बार उन्होंने अपने ...

MENKA

  मेन्‍का  मेन्‍का हिंदू पौराणिक कथाओं में स्वर्ग की सबसे प्रसिद्ध और सुंदर अप्सराओं में से एक हैं। उनका नाम सौंदर्य, कला और आकर्षण का पर्याय माना जाता है। मेनका का उल्लेख रामायण , महाभारत और पुराणों में मिलता है। वे अपने अद्वितीय नृत्य, संगीत और सौंदर्य के लिए जानी जाती थीं। कथाओं के अनुसार, मेनका को भगवान इंद्र ने ऋषि विश्वामित्र की कठोर तपस्या भंग करने के लिए पृथ्वी पर भेजा था। इंद्र को भय था कि यदि विश्वामित्र की तपस्या पूरी हो गई, तो वे देवताओं के समान शक्तिशाली बन जाएंगे। मेनका ने अपने सौंदर्य और नृत्य से ऋषि का मन मोहित कर दिया। दोनों ने कई वर्षों तक साथ जीवन व्यतीत किया और उनके यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम शकुंतला रखा गया। बाद में मेनका उसे वन में छोड़कर स्वर्ग लौट गईं, जहाँ उसे ऋषि कण्व ने पाल-पोसकर बड़ा किया। मेनका की यह कथा प्रेम, मोह और त्याग का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने एक ओर तो अपनी दिव्य मोहकता से देवताओं की आज्ञा का पालन किया, वहीं दूसरी ओर वे मातृत्व और संवेदना की प्रतीक भी बनीं। उनका जीवन यह सिखाता है कि सौंदर्य केवल बाहरी नहीं होता, बल्कि उस...

RAMBHA

  रंभा  रंभा हिंदू पौराणिक कथाओं में स्वर्ग की प्रमुख अप्सराओं में से एक हैं। उन्हें सौंदर्य, कला और मोहकता की प्रतीक माना जाता है। रंभा का उल्लेख रामायण , महाभारत और अनेक पुराणों में मिलता है। उनका नाम “रंभा” का अर्थ है — वह जो सभी को आकर्षित करने वाली या प्रसन्न करने वाली हो। कथाओं के अनुसार, रंभा की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी, जब अमृत, लक्ष्मी और अन्य दिव्य वस्तुएँ निकली थीं। स्वर्गलोक में उन्हें देवताओं की नर्तकी के रूप में विशेष स्थान प्राप्त हुआ। उनके नृत्य और संगीत से स्वर्ग का वातावरण आनंद और सौंदर्य से भर उठता था। रंभा को नृत्यकला में अद्वितीय निपुणता प्राप्त थी, और वे सभी अप्सराओं में सबसे कोमल और मनोहर मानी जाती थीं। रंभा की कथा मेघनाथ और विश्वामित्र से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि इंद्र ने उन्हें ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा था। लेकिन जब ऋषि ने उन्हें शाप दे दिया कि वे पत्थर की मूर्ति बन जाएँ, तो रंभा ने अपनी गलती का पश्चाताप किया। बाद में शाप से मुक्ति मिलने पर उन्होंने फिर से देवलोक में अपना स्थान प्राप्त किया। रंभा केवल सुंदरता क...

URVASHI

  उर्वशी उर्वशी हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अत्यंत प्रसिद्ध और सुंदर अप्सरा हैं। उनका नाम “उर्वशी” का अर्थ है — “जो विस्तृत रूप से व्याप्त हो” या “जिसका सौंदर्य चारों ओर फैला हो।” उर्वशी का उल्लेख ऋग्वेद , महाभारत और कई पुराणों में मिलता है। वे स्वर्गलोक की सर्वश्रेष्ठ अप्सराओं में से एक मानी जाती हैं। कथाओं के अनुसार, उर्वशी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण की तपस्या के दौरान हुई थी। जब इंद्र ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा, तब ऋषियों ने अपनी तपस्या से एक अद्भुत सुंदर नारी की सृष्टि की, जिसका नाम उर्वशी रखा गया। उसकी सुंदरता देखकर स्वयं देवता भी चकित रह गए। उर्वशी स्वर्गलोक में नृत्य और संगीत की अद्वितीय विदुषी मानी जाती थीं। उनके नृत्य से देवताओं का मन प्रसन्न हो जाता था। उन्होंने कई प्रसिद्ध ऋषियों और राजाओं की कथाओं में भूमिका निभाई, जिनमें राजा पुरुरवा की कथा विशेष रूप से प्रसिद्ध है। उर्वशी और पुरुरवा का प्रेम भारतीय साहित्य में अमर प्रेमकथाओं में गिना जाता है। यह कथा दर्शाती है कि उर्वशी केवल सौंदर्य और कला की मूर्ति नहीं थीं, बल्कि भावनाओं,...

TILOTTAMA

  तिलोत्तमा  तिलोत्तमा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अत्यंत सुंदर अप्सरा के रूप में वर्णित हैं। उनका नाम “तिलोत्तमा” दो शब्दों से मिलकर बना है — ‘तिल’ अर्थात् अणु या कण और ‘उत्तमा’ अर्थात् श्रेष्ठ। अर्थात् तिलोत्तमा का अर्थ है — वह जो प्रत्येक कण में उत्तमता या सुंदरता से भरी हो। तिलोत्तमा का उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि जब असुर भाई सुंड और उपसुंड ने अपने बल और घमंड से देवताओं, मनुष्यों तथा ऋषियों को अत्याचारों से पीड़ित कर दिया, तब देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से उनकी मुक्ति का उपाय पूछा। तब ब्रह्मा ने दिव्य शक्तियों से एक अनुपम सुंदर नारी की सृष्टि की, जिसका नाम तिलोत्तमा रखा गया। तिलोत्तमा की सुंदरता अद्वितीय थी। उन्हें देखकर स्वयं देवता भी मोहित हो उठे। ब्रह्मा ने उन्हें सुंड और उपसुंड के पास भेजा। दोनों असुर तिलोत्तमा पर मोहित होकर एक-दूसरे से झगड़ पड़े और आपस में ही युद्ध करते हुए मारे गए। इस प्रकार तिलोत्तमा ने अपनी मोहकता और बुद्धिमत्ता से देवताओं को असुरों से मुक्ति दिलाई। तिलोत्तमा केवल सौंदर्य की प्रतीक नहीं थीं, बल्कि नीति, बुद्धि और योजन...