THANJAVUR
तंजावुर
तंजावुर (Thanjavur) तमिलनाडु का एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण शहर है, जिसे दक्षिण भारत की कला और परंपराओं का गौरवशाली केंद्र माना जाता है। चोल साम्राज्य के स्वर्णकाल में तंजावुर राजधानी के रूप में उभरा और यहीं से द्रविड़ संस्कृति, स्थापत्य कला और साहित्यिक परंपराओं ने अभूतपूर्व विकास पाया। तंजावुर का इतिहास कम से कम पहली सहस्राब्दी ईस्वी से मिलता है, पर इसका सर्वाधिक उत्कर्ष 10वीं–12वीं शताब्दी के चोल शासन में हुआ।
तंजावुर का सबसे प्रमुख प्रतीक बृहदेश्वर मंदिर है, जिसे राजराजा चोल प्रथम ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था। यह मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और द्रविड़ वास्तुकला का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है। इसका विशाल ‘विमान’ (शिखर) और ग्रेनाइट से निर्मित संरचना भारत के प्राचीन इंजीनियरिंग कौशल का अनोखा नमूना है। नटराज और शिव भक्त संस्कृति के प्रसार में भी तंजावुर का योगदान उल्लेखनीय है।
कला और संगीत के क्षेत्र में तंजावुर का महत्व अत्यधिक है। तंजावुर पेंटिंग, जिसे ‘तंजोर पेंटिंग’ कहा जाता है, अपनी स्वर्ण पत्तियों, जीवंत रंगों और धार्मिक विषयों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। भरतनाट्यम नृत्य शैली के विकास, वाद्ययंत्र ‘वीणा’ की परंपरा और कर्नाटक संगीत के संरक्षण में भी तंजावुर का बड़ा योगदान है। यहाँ के राजाओं ने कलाकारों, विद्वानों और मंदिर परंपराओं को सदैव संरक्षण दिया।
तंजावुर अपने कृषि उत्पादन, विशेषकर कावेरी नदी की उपजाऊ भूमि के कारण, धान के कटोरे के रूप में प्रसिद्ध है। सांस्कृतिक रूप से यह शहर त्यौहारों, मंदिर संगीत, और विशिष्ट तमिल परंपराओं का जीवंत केंद्र बना हुआ है।
समग्र रूप से, तंजावुर इतिहास, कला, संगीत और आध्यात्मिकता का संगम है, जो दक्षिण भारतीय सभ्यता की समृद्ध विरासत को आज भी जीवित रखे हुए है।
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