RAJENDRA CHOLA I

 

राजेंद्र चोल प्रथम 

राजेंद्र चोल प्रथम चोल साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली और दूरदर्शी सम्राटों में से एक थे। उनका शासनकाल लगभग 1014 से 1044 ई. तक रहा। वे महान सम्राट राजराजा चोल प्रथम के पुत्र थे और अपने पिता की सैन्य, प्रशासनिक तथा सांस्कृतिक परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए चोल साम्राज्य को अभूतपूर्व ऊँचाइयों तक ले गए। राजेंद्र चोल प्रथम को “गंगैकोंड चोल” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने उत्तर भारत तक विजय अभियान चलाया और गंगा नदी तक पहुँचकर अपनी शक्ति का लोहा मनवाया।

राजेंद्र चोल प्रथम की सबसे बड़ी उपलब्धि उनका विस्तृत सैन्य विस्तार था। उन्होंने दक्षिण भारत के कई राज्यों, श्रीलंका के बड़े हिस्से तथा दक्षिण-पूर्व एशिया तक प्रभावित करने वाले समुद्री अभियान चलाए। उनकी नौसेना अत्यंत सशक्त मानी जाती है। उन्होंने श्रीविजय साम्राज्य (आधुनिक इंडोनेशिया-मलेशिया क्षेत्र) तक सफल अभियान चलाकर चोल साम्राज्य को अंतरराष्ट्रीय समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया।

उन्होंने अपने विजय अभियान की स्मृति में एक नई राजधानी गंगैकोंड चोलपुरम बसाई। इस नगर को योजनाबद्ध तरीके से विकसित किया गया था। यहाँ का प्रसिद्ध गंगैकोंड चोलेश्वर मंदिर द्रविड़ स्थापत्य कला की श्रेष्ठ कृतियों में गिना जाता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने एक विशाल कृत्रिम झील चोल गंगम का निर्माण करवाया, जो चोल जल इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण है।

राजेंद्र चोल प्रथम एक कुशल प्रशासक भी थे। उन्होंने राजस्व व्यवस्था को मजबूत किया, जल-सिंचाई प्रणालियों को विकसित किया और कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया। कला, साहित्य और धर्म के संरक्षण में भी उनका योगदान उल्लेखनीय था।

समग्र रूप से, राजेंद्र चोल प्रथम चोल साम्राज्य के स्वर्णयुग के प्रमुख निर्माता थे। उनकी सैन्य शक्ति, समुद्री विस्तार, स्थापत्य कला और प्रशासनिक कौशल ने उन्हें दक्षिण भारत के इतिहास में एक अमर स्थान प्रदान किया।

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