PALLAV DYNASTIES
पल्लव वंश
पल्लव वंश दक्षिण भारत का एक प्रमुख राजवंश था, जिसने मुख्यतः तीसरी से नौवीं शताब्दी के बीच तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के बड़े हिस्सों पर शासन किया। इस वंश की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न मत हैं, परंतु अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि पल्लव मूलतः दक्षिण भारत के स्थानीय क्षत्रिय अथवा प्रशासनिक समुदाय से उभरे थे। उनकी राजधानी प्रारंभ में कांचीपुरम थी, जो शिक्षा, धर्म और संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरी।
पल्लव शासकों ने दक्षिण भारत में कला, वास्तुकला और धर्म के क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया। विशेष रूप से महाबलीपुरम (ममल्लापुरम) में निर्मित शिलाचित्र, एकाश्मक मंदिर और रथ-शैली की संरचनाएँ भारतीय वास्तुकला के अनमोल रत्न मानी जाती हैं। नरसिंहवर्मन प्रथम (ममल्ल) और नरसिंहवर्मन द्वितीय (राजसिंह) जैसे शासक इस सांस्कृतिक वैभव के मुख्य प्रणेता थे। उन्होंने पल्ली स्थापत्य कला को एक नई ऊँचाई दी।
पल्लव वंश बौद्ध, जैन और वैदिक हिंदू परंपराओं के प्रति सहिष्णु था। कांचीपुरम में स्थित कई प्रमुख मंदिर और शिक्षण संस्थान उनके संरक्षण में विकसित हुए। नाट्यशास्त्र, संगीत और साहित्य को भी उन्होंने बढ़ावा दिया, जिससे संस्कृत और तमिल साहित्य का उत्कर्ष हुआ।
सैन्य उपलब्धियों की दृष्टि से पल्लवों ने पांड्यों, चालुक्यों और अन्य दक्षिणी शक्तियों से संघर्ष किया। पुलकेशिन द्वितीय के साथ उनका संघर्ष प्रसिद्ध है, जिसमें कभी पल्लव विजयी हुए, तो कभी चालुक्य। अंततः नवमी शताब्दी में पल्लव वंश का पतन आरंभ हुआ और चोल साम्राज्य धीरे-धीरे प्रमुख शक्ति बनकर उभरा।
इस प्रकार पल्लव वंश ने दक्षिण भारत की सांस्कृतिक धरोहर, स्थापत्य कला और राजनीतिक इतिहास में गहरा प्रभाव छोड़ा, जो आज भी अपनी विशिष्ट पहचान के साथ मौजूद है।
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