CHOLA GANGAM
चोल गंगम
चोल गंगम, जिसे चोल गंगई झील या गंगैकोंडा चोलपुरम झील भी कहा जाता है, चोल साम्राज्य की जल इंजीनियरिंग क्षमता का अद्वितीय उदाहरण है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम ने करवाया था। जब राजेंद्र चोल गंगा नदी तक अभियान कर विजयी होकर लौटे, तो उन्होंने अपनी इस उपलब्धि की स्मृति में गंगैकोंड चोलपुरम नामक राजधानी बसाई और उसके पास यह विशाल कृत्रिम झील बनवाई। इसी कारण इसका नाम “चोल गंगम” पड़ा, जिसका अर्थ है—गंगा से प्रेरित चोलों की महान जल संरचना।
चोल गंगम केवल एक साधारण तालाब या जलाशय नहीं था, बल्कि एक सुव्यवस्थित और विशाल जल प्रबंधन प्रणाली का हिस्सा था। इसे इस प्रकार डिजाइन किया गया कि यह वर्षा जल संचित करे, आसपास की नदियों से जल प्रवाह प्राप्त करे और पूरे क्षेत्र में सिंचाई का विश्वसनीय स्रोत बने। कहा जाता है कि यह झील हजारों एकड़ में फैली हुई थी और इसका जल पूरे गंगैकोंड चोलपुरम तथा आसपास के गाँवों की कृषि को समृद्ध बनाता था। इससे चोल साम्राज्य में धान, नारियल और अन्य फसलों का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता रहा।
चोलों की जल इंजीनियरिंग उस समय के लिए अत्यंत उन्नत थी। जल प्रवाह नियंत्रण, किनारों की मजबूती, नहरों और उप-नहरों का निर्माण तथा जल विभाजन की वैज्ञानिक प्रणाली चोल गंगम की विशेषताएँ थीं। यह झील चोलों की दूरदर्शिता और जनता के कल्याण की भावना को दर्शाती है। इसके माध्यम से उन्होंने कृषि, व्यापार और जनजीवन में स्थिरता सुनिश्चित की।
यद्यपि समय के साथ चोल गंगम का बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया है, पर इसके अवशेष आज भी चोल काल की समृद्ध तकनीकी क्षमता का प्रमाण हैं। चोल गंगम इतिहास में एक ऐसी जल संरचना के रूप में दर्ज है, जिसने दक्षिण भारत की कृषि और सभ्यता को स्थायी आधार प्रदान किया।
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