KARN PRAYAG

 

कर्णप्रयाग 

कर्णप्रयाग उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित पंच प्रयागों में तीसरा प्रयाग है। यह अलकनंदा और पिंडर नदी का पवित्र संगम स्थल है। हिन्दू धर्म के अनुसार, महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा कर्ण ने यहाँ कठोर तपस्या की थी, इसलिए इस स्थान का नाम ‘कर्णप्रयाग’ पड़ा। यह स्थल धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कर्णप्रयाग समुद्र तल से लगभग 1,450 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ की घाटियाँ, पहाड़ और नदियाँ प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं। अलकनंदा नदी का हरा रंग और पिंडर नदी का हल्का धूसर रंग मिलकर संगम स्थल को दृष्टिगोचर सुंदरता प्रदान करते हैं। यह स्थान तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों के लिए अत्यंत आकर्षक है।

धार्मिक दृष्टि से कर्णप्रयाग का महत्व बहुत बड़ा है। यहाँ का संगम स्नान और पूजा-अर्चना के लिए प्रसिद्ध है। श्रद्धालु मानते हैं कि कर्णप्रयाग में स्नान करने से पापों का नाश होता है और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। इसके अलावा, यहाँ कई छोटे-छोटे मंदिर और घाट स्थित हैं, जहाँ स्थानीय लोग और तीर्थयात्री नियमित रूप से पूजा-अर्चना करते हैं।

भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से कर्णप्रयाग हिमालय की जीवनदायिनी नदियों का संगम स्थल है। यह स्थल साहसिक खेलों और ट्रेकिंग के लिए भी लोकप्रिय है। आसपास के क्षेत्र में कृषि, पर्यटन और धार्मिक गतिविधियाँ लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत हैं।

कुल मिलाकर, कर्णप्रयाग प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत संगम स्थल है। यह न केवल तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि पर्यटकों और स्थानीय जीवन के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। इसका संरक्षण और संवर्धन हमारी जिम्मेदारी है।

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