GULZAR

 

गुलज़ार 

गुलज़ार, जिनका असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है, हिन्दी साहित्य और सिनेमा के एक महान कवि, गीतकार, पटकथा लेखक और फिल्म निर्देशक हैं। उनका जन्म 18 अगस्त 1934 को दीना (अब पाकिस्तान में) हुआ था। भारत विभाजन के बाद उनका परिवार पंजाब आ गया और बाद में वे मुंबई में बस गए।

गुलज़ार ने अपने करियर की शुरुआत एक गैरेज में पेंटिंग का काम करते हुए की, लेकिन उनका रुझान लेखन की ओर था। उनकी साहित्यिक प्रतिभा को प्रसिद्ध फिल्मकार बिमल रॉय ने पहचाना और उन्होंने गुलज़ार को बंदिनी (1963) फिल्म में गीत लिखने का अवसर दिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

वे अपनी सरल, संवेदनशील और गहराई से भरी भाषा के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके गीत जैसे – तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, दिल ढूँढता है, मुसाफिर हूँ यारों, तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी – आज भी दिलों को छूते हैं। उन्होंने विशाल भारद्वाज, ए. आर. रहमान, और कई संगीतकारों के साथ यादगार गीत रचे।

फिल्म निर्देशन में भी उन्होंने मेरे अपने (1971), अंगूर, इजाज़त, लिबास, और माचिस जैसी कलात्मक और सामाजिक संदेश वाली फिल्में बनाई हैं।

गुलज़ार को साहित्य और सिनेमा दोनों में उनके योगदान के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, फिल्मफेयर अवॉर्ड्स, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और ऑस्कर अवॉर्ड (2009 में स्लमडॉग मिलियनेयर के गीत “जय हो”) जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए हैं।

उनकी लेखनी में प्रेम, पीड़ा, समाज और जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता झलकती है। गुलज़ार आज भी युवाओं से लेकर बुज़ुर्गों तक सभी पीढ़ियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं।

वे हिन्दी साहित्य और सिनेमा के एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने शब्दों को आत्मा दी है।

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