KAKA HATHRASI

 

काका हाथरसी – एक हास्य रस के अनमोल कवि

काका हाथरसी हिन्दी साहित्य के प्रमुख हास्य कवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की विसंगतियों पर तीखा, परंतु मनोरंजक प्रहार किया। उनका असली नाम प्रभुलाल गर्ग था और वे 18 सितम्बर 1906 को उत्तर प्रदेश के हाथरस शहर में जन्मे थे। ‘हाथरसी’ उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थान के कारण जुड़ा।

काका हाथरसी की कविताओं में हास्य, व्यंग्य और सामाजिक संदेश का अद्भुत संगम होता था। वे मंचों के लोकप्रिय कवि थे और कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति श्रोताओं के लिए हँसी का खजाना साबित होती थी। उनकी रचनाएँ आम जीवन की सच्चाइयों को सरल, चुटीले और तंजपूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत करती थीं।

उन्होंने न केवल हास्य व्यंग्य में उत्कृष्ट कार्य किया, बल्कि हिन्दी कविता को जनमानस से जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके व्यंग्यात्मक लेखों और कविताओं में राजनीति, नौकरशाही, सामाजिक रूढ़ियों और दिखावे पर तीखी टिप्पणियाँ होती थीं, फिर भी उनका अंदाज़ आक्रामक नहीं बल्कि हँसाने वाला होता था।

काका हाथरसी ने कई किताबें भी लिखीं जैसे – ‘काका के कारनामे’, ‘हँसगुल्ले’, ‘काका के प्रहसन’ आदि। वे एक कुशल संगीतज्ञ भी थे और संगीत पर भी उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं।

भारत सरकार ने 1985 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। उनका निधन 18 सितम्बर 1995 को हुआ, लेकिन उनकी हास्य रचनाएँ आज भी लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने का काम करती हैं।

काका हाथरसी हिन्दी हास्य कविता के स्तंभ थे, जिन्होंने साबित किया कि व्यंग्य के माध्यम से समाज को सही दिशा दी जा सकती है।

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