SURDAS
सूरदास
सूरदास हिन्दी साहित्य के भक्ति काल के महान कवि थे। उन्हें श्रीकृष्ण भक्ति और वात्सल्य रस का अप्रतिम गायक माना जाता है। सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी के आसपास माना जाता है। उनके जन्म स्थान को लेकर मतभेद हैं, परंतु अधिकतर विद्वान उनका जन्म उत्तर प्रदेश के रुनकता या सीही गाँव में मानते हैं।
सूरदास जन्म से नेत्रहीन थे। उन्हें बचपन से ही आध्यात्मिक झुकाव था और किशोरावस्था में ही घर छोड़कर भक्ति मार्ग अपना लिया। बाद में वे वैष्णव संत श्री वल्लभाचार्य के संपर्क में आए और पुष्टिमार्ग के अनुयायी बन गए। वल्लभाचार्य के मार्गदर्शन में उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को अपना काव्य विषय बनाया।
उनकी सबसे प्रसिद्ध काव्य रचना 'सूरसागर' है, जिसमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, गोपियों के साथ रासलीला, यशोदा और कृष्ण के वात्सल्य भाव आदि का सुंदर चित्रण मिलता है। इसके अलावा 'सूरसारावली' और 'साहित्य लहरी' भी उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
सूरदास की कविता में भावों की गहराई, भाषा की मधुरता और चित्रण की जीवंतता अद्वितीय है। उन्होंने ब्रज भाषा में काव्य रचना की, जो उस समय आम जनता की भाषा थी। उनकी कविताएँ आज भी संगीत, भजन और नृत्य में लोकप्रिय हैं।
सूरदास को 'आंधों के सम्राट' कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने नेत्रहीन होते हुए भी कृष्ण के रूप, लीलाओं और भावों का ऐसा वर्णन किया, जिसे पढ़कर पाठक भावविभोर हो जाते हैं।
सूरदास का निधन 1583 ईस्वी में हुआ। वे हिन्दी भक्ति काव्य परंपरा के अमर स्तंभ हैं। उनका योगदान भारतीय साहित्य, संस्कृति और भक्ति परंपरा में सदैव अमूल्य रहेगा।
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