BIHAR REGIMENT
बिहार रेजीमेंट – शौर्य, समर्पण और वीरता की मिसाल
बिहार रेजीमेंट भारतीय सेना की एक प्रमुख और गौरवशाली पैदल सेना रेजीमेंट है। इसकी स्थापना 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई थी। यह रेजीमेंट भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और ओडिशा जैसे क्षेत्रों से भर्ती किए गए जवानों से बनी है। इसके जवान अपनी वीरता, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं।
बिहार रेजीमेंट का आदर्श वाक्य है:
"कर्तव्य ही धर्म है",
जो सैनिकों के लिए समर्पण और देशसेवा की भावना को दर्शाता है।
इस रेजीमेंट ने द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा (अब म्यांमार) और दक्षिण-पूर्व एशिया के मोर्चों पर बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी। स्वतंत्र भारत में भी इस रेजीमेंट ने हर प्रमुख युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया है:
- 1947-48 का भारत-पाक युद्ध (जम्मू-कश्मीर)
- 1962 का भारत-चीन युद्ध
- 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध
- 1999 का कारगिल युद्ध
- 2020 का गलवान घाटी संघर्ष – इसमें बिहार रेजीमेंट की 16वीं बटालियन ने चीन की सेना के साथ संघर्ष में हिस्सा लिया। इस संघर्ष में कर्नल संतोष बाबू और उनके साथी वीरगति को प्राप्त हुए, जिन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
बिहार रेजीमेंट को कई वीरता पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- 1 अशोक चक्र
- 2 महावीर चक्र
- 4 कीर्ति चक्र
- 13 वीर चक्र
- इसके अतिरिक्त कई सेना मेडल और यूनिट सम्मान
बिहार रेजीमेंट का रेजिमेंटल सेंटर दनापुर, पटना (बिहार) में स्थित है। यहाँ नए सैनिकों को युद्धक कौशल, हथियार संचालन, अनुशासन और नेतृत्व का कठोर प्रशिक्षण दिया जाता है।
बिहार रेजीमेंट की पहचान उसकी सीधी, साहसी और निडर सोच से है। इसके सैनिक "जय बजरंग बली" का जयघोष करते हुए रणभूमि में उतरते हैं, जो उनकी आस्था और आत्मबल का प्रतीक है।
बिहार रेजीमेंट भारतीय सेना की शक्ति, परंपरा और समर्पण का प्रतीक है। इसकी वीर गाथाएँ आज भी युवाओं को देशसेवा के लिए प्रेरित करती हैं। यह रेजीमेंट भारत माता की रक्षा में सदैव समर्पित रही है और आगे भी रहेगी।
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