YELLOW REVOLUTION
पीली क्रांति (Yellow Revolution)
भारत कृषि प्रधान देश है, और यहाँ की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर आधारित है। देश की जनसंख्या में वृद्धि के साथ खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना एक चुनौती बन गया था। इस समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार ने समय-समय पर कई क्रांतियाँ चलाईं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण क्रांति "पीली क्रांति" है।
पीली क्रांति का संबंध तिलहन एवं खाद्य तेलों के उत्पादन में वृद्धि से है। यह क्रांति भारत में 1970 और 1980 के दशक में शुरू हुई थी। इसका उद्देश्य देश में खाद्य तेलों की बढ़ती मांग को पूरा करना और विदेशों से आयात पर निर्भरता को कम करना था। पीली क्रांति का नाम खाद्य तेलों के पीले रंग के कारण पड़ा, जैसे – सरसों, सूरजमुखी, सोयाबीन और मूँगफली आदि।
इस क्रांति के प्रमुख जनक सम पित्रोदा (Sam Pitroda) माने जाते हैं, जो एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और नीति-निर्माता थे। उन्होंने न केवल तिलहन उत्पादन में सुधार की दिशा में काम किया, बल्कि किसानों को वैज्ञानिक पद्धतियों, उन्नत बीजों, सिंचाई प्रणाली और विपणन व्यवस्था के बारे में जागरूक किया।
पीली क्रांति के मुख्य उद्देश्य:
- तिलहन की पैदावार को बढ़ाना।
- खाद्य तेलों के आयात को कम करना।
- किसानों की आय में वृद्धि करना।
- कुपोषण को कम करना, क्योंकि तेल मानव शरीर के लिए आवश्यक वसा का स्रोत है।
पीली क्रांति के अंतर्गत लिए गए प्रमुख कदम:
- उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग।
- उन्नत सिंचाई सुविधाओं का विस्तार।
- कृषि अनुसंधान और विकास को बढ़ावा।
- किसानों को प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम।
- सहकारी समितियों और सरकारी समर्थन मूल्य की स्थापना।
इस क्रांति के परिणामस्वरूप भारत में तिलहन उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। जहाँ पहले देश को खाद्य तेलों के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था, वहीं बाद में देश ने इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया। इससे किसानों की आय भी बढ़ी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाया गया।
हालाँकि, आज भी भारत खाद्य तेलों का एक बड़ा आयातक देश है, लेकिन पीली क्रांति ने उस समय एक मजबूत नींव रखी, जिस पर आगे और सुधार किए जा सकते हैं। वर्तमान में सरकार “ऑयलसीड मिशन” और “एग्री-स्टार्टअप्स” जैसी योजनाओं के माध्यम से फिर से तिलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में प्रयासरत है।
निष्कर्ष:
पीली क्रांति ने भारतीय कृषि को एक नई दिशा दी। यह न केवल खाद्य तेल उत्पादन की दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने और देश को पोषण सुरक्षा देने में भी सहायक रही। आज जब भारत आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ रहा है, तो पीली क्रांति जैसे प्रयासों को दोबारा सशक्त बनाना अत्यंत आवश्यक है।
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