BLACKOUT DURING WAR
युद्ध के दौरान ब्लैकआउट
युद्ध के समय 'ब्लैकआउट' एक ऐसी स्थिति होती है, जब किसी क्षेत्र में सुरक्षा कारणों से सभी प्रकार की रोशनी को बंद कर दिया जाता है। इसका उद्देश्य दुश्मन की वायुसेना को लक्ष्य पहचानने से रोकना होता है, जिससे शहरों, सैन्य ठिकानों या महत्वपूर्ण इमारतों को हवाई हमलों से बचाया जा सके। ब्लैकआउट का उपयोग विशेषकर द्वितीय विश्व युद्ध जैसे बड़े युद्धों के दौरान बहुत किया गया था।
ब्लैकआउट के दौरान शहर की सड़कों की बत्तियाँ, घरों के लाइट, दुकानें और वाहन की हेडलाइटें तक बंद कर दी जाती हैं या ढक दी जाती हैं। नागरिकों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने घरों की खिड़कियों को मोटे पर्दों या काले कागज़ से ढँक दें, ताकि कोई प्रकाश बाहर न जा सके। यह एक सामूहिक प्रयास होता है, जिसमें आम जनता की भागीदारी बेहद आवश्यक होती है।
ब्लैकआउट से जीवन सामान्य रूप से प्रभावित होता है। रात के समय काम करना कठिन हो जाता है, आपातकालीन सेवाओं को अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है और लोगों को डर व असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, यह कदम युद्धकालीन रणनीति का एक अहम हिस्सा होता है, क्योंकि रोशनी दुश्मन के लिए मार्गदर्शक का कार्य कर सकती है।
भारत में भी 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय कई शहरों में ब्लैकआउट किया गया था। खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों और बड़े शहरों में, जैसे दिल्ली, मुंबई और अमृतसर, में लोगों ने सहयोग किया और रात होते ही रोशनी बंद कर दी जाती थी। बच्चों को स्कूलों में इसके बारे में बताया जाता था और नगरपालिकाएं नियमित निरीक्षण करती थीं।
आज भले ही तकनीक ने युद्ध की प्रकृति बदल दी हो, लेकिन ब्लैकआउट की रणनीति अब भी किसी आकस्मिक परिस्थिति में उपयोगी साबित हो सकती है। यह न केवल सुरक्षा का एक तरीका है, बल्कि नागरिकों में एकजुटता और देशभक्ति की भावना को भी उजागर करता है।
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