TRISHUL MISSILE
त्रिशूल मिसाइल
त्रिशूल मिसाइल: भारत की स्वदेशी त्वरित प्रतिक्रिया सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल
त्रिशूल मिसाइल भारत द्वारा विकसित एक अल्प दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली (Surface to Air) मिसाइल है। इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया था। यह मिसाइल 'एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम' (Integrated Guided Missile Development Programme - IGMDP) के अंतर्गत बनाई गई थी, जिसकी शुरुआत 1983 में की गई थी। IGMDP के अंतर्गत अग्नि, पृथ्वी, नाग, आकाश और त्रिशूल मिसाइलों का विकास किया गया।
त्रिशूल मिसाइल का उद्देश्य दुश्मन के हवाई लक्ष्यों जैसे हेलीकॉप्टर, लड़ाकू विमान, समुद्री मिसाइलें और क्रूज़ मिसाइलों को नष्ट करना है। इसका डिजाइन त्वरित प्रतिक्रिया और उच्च सटीकता के साथ लक्ष्य भेदन के लिए किया गया था।
प्रमुख विशेषताएँ:
- रेंज: त्रिशूल मिसाइल की मारक क्षमता लगभग 9 किलोमीटर है, जिससे यह कम दूरी के हवाई खतरों के खिलाफ उपयोगी है।
- गति: यह मिसाइल सुपरसोनिक गति से उड़ान भर सकती है और लक्ष्य को बहुत कम समय में भेद सकती है।
- मार्गदर्शन प्रणाली: इसमें कमांड टू लाइन ऑफ साइट (CLOS) प्रणाली का प्रयोग किया गया है, जिसमें ग्राउंड रडार और ऑप्टिकल ट्रैकिंग द्वारा लक्ष्य का मार्गदर्शन किया जाता है।
- बहुपरियोजना उपयोग: इसे थल सेना, नौसेना और वायुसेना के लिए विभिन्न प्लेटफार्मों पर तैनात करने योग्य बनाया गया था।
- प्रक्षेपण प्रणाली: इसे पोर्टेबल लॉन्चर या मोबाइल वाहन से लॉन्च किया जा सकता था, जिससे यह युद्ध के मैदान में अत्यंत लचीला विकल्प बनता है।
विकास और परीक्षण:
त्रिशूल मिसाइल के कई परीक्षण 1990 और 2000 के दशक में किए गए। हालांकि यह मिसाइल तकनीकी रूप से उन्नत थी, लेकिन इसमें कई बार स्थायित्व और विश्वसनीयता संबंधी समस्याएं सामने आईं। कई परीक्षणों में सफलता नहीं मिली, जिससे इसका संचालनिक उपयोग सीमित रह गया। आखिरकार, इसे सेवा में पूरी तरह शामिल नहीं किया गया, लेकिन इसके विकास से भारतीय रक्षा अनुसंधान को महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त हुआ।
रणनीतिक महत्व:
हालांकि त्रिशूल मिसाइल को भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा बड़े पैमाने पर अपनाया नहीं गया, लेकिन इस परियोजना से DRDO को सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की तकनीक को समझने में मदद मिली। इसके अनुभवों से भविष्य में आकाश जैसी अधिक सफल मिसाइलों के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
निष्कर्ष:
त्रिशूल मिसाइल भले ही एक सीमित सफलता रही हो, लेकिन यह भारत के स्वदेशी मिसाइल कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण चरण थी। इसने भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को महत्वपूर्ण तकनीकी ज्ञान और अनुभव प्रदान किया, जो आगे चलकर देश की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने में सहायक बना। त्रिशूल भारत की आत्मनिर्भरता और वैज्ञानिक खोज के मार्ग में एक प्रेरणादायक प्रयास रहा है।
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