GORKHA RIFLES
गोरखा राइफल्स – वीरता और निष्ठा की मिसाल
गोरखा राइफल्स भारतीय सेना की सबसे बहादुर और प्रसिद्ध पैदल सेना रेजीमेंट्स में से एक है। गोरखा सैनिकों की वीरता, अनुशासन और निष्ठा के लिए पूरी दुनिया में प्रशंसा की जाती है। इनकी प्रसिद्ध युद्धघोषणा "जय महाकाली, आयो गोरखाली!" आज भी रणभूमि में दुश्मनों के दिलों में डर भर देती है।
गोरखा रेजीमेंट की स्थापना 1815 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने की थी, जब अंग्रेजों और नेपाल के बीच हुए युद्ध (अंग-नेपाली युद्ध) के बाद अंग्रेज गोरखा सैनिकों की बहादुरी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपनी सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया। भारत की आज़ादी के बाद, गोरखा रेजीमेंट्स को भारत, ब्रिटेन और नेपाल में बाँटा गया। भारत को 6 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट्स प्राप्त हुईं, जिनमें हैं:
- 1 गोरखा राइफल्स
- 3 गोरखा राइफल्स
- 4 गोरखा राइफल्स
- 5 गोरखा राइफल्स (फ्रंटियर फोर्स)
- 8 गोरखा राइफल्स
- 9 गोरखा राइफल्स
- (11 गोरखा राइफल्स भारत में 1947 के बाद बनी)*
गोरखा सैनिक मुख्यतः नेपाल और भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों जैसे सिक्किम, दार्जिलिंग और उत्तराखंड से भर्ती किए जाते हैं। ये सैनिक अपनी खुखरी (एक खास प्रकार की घातक घुमावदार छुरी) के लिए प्रसिद्ध हैं।
गोरखा राइफल्स ने भारतीय सेना के सभी प्रमुख युद्धों में भाग लिया है:
- 1947-48 भारत-पाक युद्ध
- 1962 भारत-चीन युद्ध
- 1965 और 1971 भारत-पाक युद्ध
- कारगिल युद्ध 1999
इस रेजीमेंट को कई परम वीर चक्र, महावीर चक्र, और वीर चक्र जैसे वीरता पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। कैप्टन मनोज कुमार पांडे (11 गोरखा राइफल्स) को कारगिल युद्ध में उनके अद्भुत शौर्य के लिए मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
गोरखा रेजीमेंट का रेजिमेंटल सेंटर सबाथू (हिमाचल प्रदेश) में स्थित है।
गोरखा राइफल्स न केवल भारतीय सेना की शान हैं, बल्कि उनकी बहादुरी, देशभक्ति और बलिदान की भावना आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती है। यह रेजीमेंट भारत की सीमाओं की रक्षा में सदैव अग्रणी रही है और रहेगी।
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