KUMAUN REGIMENT

 

कुमाऊँ रेजीमेंट – वीरता और बलिदान की प्रतीक 

कुमाऊँ रेजीमेंट भारतीय सेना की एक गौरवशाली और प्रतिष्ठित पैदल सेना रेजीमेंट है। इसकी स्थापना वर्ष 1813 में हुई थी, जो इसे भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजीमेंट्स में से एक बनाती है। यह रेजीमेंट मुख्य रूप से उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र, गढ़वाल, और आसपास के इलाकों के वीर जवानों से बनी है।

कुमाऊँ रेजीमेंट का आदर्श वाक्य है:
"परम धर्म – वीरता",
अर्थात् सैनिक के लिए वीरता ही उसका सर्वोच्च धर्म है। यह आदर्श वाक्य इस रेजीमेंट के हर जवान के दिल में बसा होता है।

इस रेजीमेंट ने ब्रिटिश शासनकाल से लेकर स्वतंत्र भारत तक हर युद्ध में साहसिक भूमिका निभाई है। द्वितीय विश्व युद्ध में कुमाऊँ रेजीमेंट की कई बटालियनों ने बर्मा, मलेशिया और इटली में लड़ाई लड़ी। आज़ादी के बाद इस रेजीमेंट ने देश की रक्षा में अहम योगदान दिया है:

  • 1947-48 भारत-पाक युद्ध (नौशेरा सेक्टर)
  • 1962 भारत-चीन युद्ध (रेज़ांग ला की लड़ाई में अभूतपूर्व बलिदान)
  • 1965 और 1971 भारत-पाक युद्ध
  • 1999 कारगिल युद्ध

1962 के भारत-चीन युद्ध में रेज़ांग ला की लड़ाई में 13 कुमाऊँ बटालियन ने कैप्टन शहीद परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 130 जवानों के साथ 1300 से अधिक चीनी सैनिकों को रोका और 114 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। यह लड़ाई भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे वीर गाथाओं में से एक है।

कुमाऊँ रेजीमेंट को अनेक वीरता पुरस्कार प्राप्त हुए हैं:

  • 2 परम वीर चक्र
  • 4 महावीर चक्र
  • 15 वीर चक्र
  • इसके अतिरिक्त कई कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र और सेना मेडल

इस रेजीमेंट का रेजिमेंटल सेंटर रानीखेत (उत्तराखंड) में स्थित है, जहाँ सैनिकों को कठिन युद्ध प्रशिक्षण, हथियारों का अभ्यास, और मानसिक दृढ़ता की शिक्षा दी जाती है।

कुमाऊँ रेजीमेंट न केवल एक सैन्य इकाई है, बल्कि यह बलिदान, साहस और मातृभूमि के प्रति निष्ठा की जीती-जागती मिसाल है। यह रेजीमेंट भारतीय सेना की रीढ़ है और इसकी वीरता आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।

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