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Showing posts from 2025

NITISH VS LALOO IN BIHAR POLITICS

  नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति के दो सबसे प्रमुख चेहरे हैं। दोनों नेताओं ने राज्य की राजनीति को कई दशकों तक अपने-अपने तरीके से दिशा दी है। लालू प्रसाद यादव 1990 के दशक में बिहार के “मसीहा” के रूप में उभरे। उन्होंने सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के उत्थान का नारा दिया। उनके शासनकाल में यादव और मुस्लिम समुदाय का राजनीतिक वर्चस्व देखा गया। हालांकि, उनके शासन को भ्रष्टाचार, अपराध और प्रशासनिक ढिलाई के लिए भी आलोचना झेलनी पड़ी। दूसरी ओर, नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में विकास और सुशासन का मॉडल पेश किया। उन्होंने 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद सड़क, शिक्षा, बिजली और कानून-व्यवस्था में सुधार पर जोर दिया। उनके शासन में “सात निश्चय योजना” और “मुख्यमंत्री साइकिल योजना” जैसी कई कल्याणकारी योजनाएं लागू हुईं। नीतीश कुमार ने बिहार की छवि को बदलने का प्रयास किया और राज्य में विकास की नई सोच लाई। राजनीतिक रूप से देखा जाए तो दोनों नेताओं के बीच कई बार गठबंधन और टकराव की स्थिति बनी। 2015 में महागठबंधन के तहत दोनों एक साथ आए, लेकिन यह साथ अधिक समय तक नहीं टिक सका। नीतीश ने...

NITISH KUMAR WORKS IN PATNA

  पटना में नीतीश कुमार का कार्य  नीतीश कुमार बिहार के लोकप्रिय और सफल मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने पटना सहित पूरे राज्य में विकास की नई दिशा दी है। पटना, जो बिहार की राजधानी है, नीतीश कुमार के नेतृत्व में आधुनिकता और प्रगति की राह पर अग्रसर हुआ है। उन्होंने पटना को स्वच्छ, सुंदर और सुविधाजनक शहर बनाने के लिए अनेक योजनाएँ लागू कीं। नीतीश कुमार के शासन में पटना में सड़कों, पुलों और फ्लाईओवरों का तेजी से निर्माण हुआ। जेपी गंगा पथ (पटना मरीन ड्राइव) उनकी एक ऐतिहासिक परियोजना है, जो गंगा नदी के किनारे एक आधुनिक सड़क मार्ग के रूप में विकसित की गई है। इससे यातायात सुगम हुआ और शहर के लोगों को बड़ी राहत मिली। इसके अलावा, पटना मेट्रो परियोजना पर भी तेजी से काम चल रहा है, जो राजधानी में परिवहन का नया अध्याय खोलेगी। शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में भी नीतीश कुमार ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बिहार संग्रहालय , सम्राट अशोक कन्वेंशन केंद्र और गांधी मैदान का सौंदर्यीकरण उनके कार्यकाल की प्रमुख उपलब्धियाँ हैं। उन्होंने पटना में महिला सशक्तिकरण , बालिका शिक्षा और स्वच्छता अभियान पर भी ...

NITISH KUMAR WORKS IN RAJGIR

  राजगीर में नीतीश कुमार का कार्य नीतीश कुमार बिहार के प्रसिद्ध और लोकप्रिय नेता हैं, जिन्होंने राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे कई बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अपने सुशासन, विकास कार्यों तथा जनकल्याण योजनाओं के लिए जाने जाते हैं। राजगीर, जो नालंदा जिले में स्थित है, नीतीश कुमार के विकास कार्यों का एक विशेष केंद्र रहा है। राजगीर ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। नीतीश कुमार ने इस नगर को एक आधुनिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का संकल्प लिया। उनके नेतृत्व में राजगीर में कई बड़े प्रोजेक्ट पूरे किए गए हैं। उन्होंने यहां राजगीर नेचर सफारी , जिपलाइन , ग्लास ब्रिज , और सस्पेंशन ब्रिज जैसे आकर्षक पर्यटन स्थलों का निर्माण कराया है। इससे न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है, बल्कि देश-विदेश से पर्यटक भी बड़ी संख्या में यहां आने लगे हैं। नीतीश कुमार ने राजगीर में पर्यावरण संरक्षण और हरियाली बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया। उनके नेतृत्व में यहां बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाए गए, जिससे इस क्षेत्र की सुंदरता और स्वच्छत...

CM GIRLS BICYCLE PROGRAMME IN BIHAR

  मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, बिहार मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना बिहार सरकार की एक अत्यंत सफल और लोकप्रिय योजना है, जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2007 में शुरू किया था। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ना और उन्हें विद्यालय तक पहुँचने में सुविधा प्रदान करना था। पहले यह देखा गया कि दूरस्थ इलाकों में रहने वाली कई लड़कियाँ विद्यालय नहीं जा पाती थीं, क्योंकि स्कूल उनके घर से दूर होते थे। इस समस्या का समाधान करने के लिए नीतीश कुमार ने यह अभिनव योजना शुरू की। इस योजना के अंतर्गत नौवीं कक्षा में प्रवेश लेने वाली छात्राओं को साइकिल खरीदने के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है। प्रारंभ में सरकार द्वारा प्रत्येक बालिका को ₹2,000 की राशि प्रदान की जाती थी, जिससे वे अपनी पसंद की साइकिल खरीद सकें। बाद में इस राशि में बढ़ोतरी की गई। योजना का लाभ सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों की छात्राओं को मिलता है। इस योजना ने ग्रामीण बिहार की तस्वीर बदल दी। पहले जहाँ लड़कियाँ शिक्षा से वंचित रहती थीं, वहीं अब साइकिल मिलने से वे नियमित र...

NITISH KUMAR WORKS FOR WOMEN

  नीतीश कुमार का महिलाओं के लिए योगदान नीतीश कुमार बिहार के ऐसे नेता माने जाते हैं जिन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण को अपनी नीतियों का केंद्र बनाया। उनके शासनकाल में महिलाओं की स्थिति को सुधारने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक योजनाएँ चलाई गईं। वर्ष 2005 में जब उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री पद संभाला, तब से ही उन्होंने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए। सबसे चर्चित योजना “मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना” रही, जिसके तहत नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली बालिकाओं को स्कूल आने-जाने के लिए साइकिल दी गई। इस योजना ने ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शिक्षा दर में क्रांतिकारी बदलाव लाया। इसके अलावा “पोशाक योजना” और “मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना” ने भी बालिकाओं को शिक्षा जारी रखने के लिए प्रेरित किया। नीतीश कुमार ने पंचायत चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर उन्हें राजनीति में सक्रिय भागीदारी का अवसर दिया। इसके परिणामस्वरूप हजारों महिलाएँ आज ग्राम पंचायतों में नेतृत्व की भूमिका निभा रही हैं। यह कदम ग्रामीण समाज में महिलाओं के आत्मविश्वास और सामाजिक सम्मान को बढ़ाने ...

20 YEARS RULE OF NITISH KUMAR IN BIHAR

  नीतीश कुमार के 20 वर्षों का शासन : बिहार में विकास और चुनौतियाँ नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में एक लम्बा और महत्वपूर्ण दौर तय किया है। वर्ष 2005 में जब उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब बिहार को देश का सबसे पिछड़ा और अपराधग्रस्त राज्य माना जाता था। बीते 20 वर्षों (2005–2025) में उन्होंने राज्य की तस्वीर बदलने का प्रयास किया। नीतीश कुमार के शासन की सबसे बड़ी उपलब्धि “कानून व्यवस्था” में सुधार मानी जाती है। उनके कार्यकाल की शुरुआत में ही अपराध नियंत्रण पर कड़ा प्रहार किया गया, जिससे आम जनता में सुरक्षा की भावना बढ़ी। उन्होंने शिक्षा और महिला सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया। बालिकाओं के लिए साइकिल योजना, छात्रवृत्ति और मध्याह्न भोजन जैसी योजनाओं ने ग्रामीण समाज में जागरूकता फैलाई। बिहार के बुनियादी ढाँचे में भी सुधार हुआ। सड़कों, पुलों और बिजली की स्थिति पहले से कहीं बेहतर हुई। ग्रामीण इलाकों में सड़क संपर्क और बिजली की उपलब्धता बढ़ने से आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ हुईं। स्वास्थ्य सेवाओं में प्राथमिक सुधार हुए, हालाँकि यह क्षेत्र अभी भी चुनौतियों से घिरा हुआ है। राजनीत...

MAITHILI THAKUR

  मैथिली ठाकुर  मैथिली ठाकुर भारत की प्रसिद्ध लोकगायिका और युवा संगीत प्रतिभा हैं, जिन्होंने अपनी मधुर आवाज़ और भारतीय शास्त्रीय संगीत के ज्ञान से पूरे देश में पहचान बनाई है। उनका जन्म 25 जुलाई 2000 को बेनिपट्टी, मधुबनी (बिहार) में हुआ था। बाद में उनका परिवार दिल्ली आकर बस गया। मैथिली ठाकुर के पिता रमेश ठाकुर संगीत शिक्षक हैं और माँ भावना ठाकुर गृहिणी हैं। उन्हें संगीत की शिक्षा बचपन से ही अपने पिता से मिली। बचपन में ही मैथिली ने भारतीय शास्त्रीय संगीत, भजन, लोकगीत और क्षेत्रीय गीतों का अभ्यास करना शुरू कर दिया था। उन्होंने पहली बार देशभर में प्रसिद्धि तब पाई जब उन्होंने रियलिटी शो “इंडियन आइडल जूनियर” (2016) और “राइजिंग स्टार” में भाग लिया। भले ही वे इन प्रतियोगिताओं की विजेता नहीं बनीं, लेकिन उनकी गायकी ने सभी का दिल जीत लिया। उनकी गायकी में शुद्धता, भावनात्मकता और भारतीय संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। मैथिली ठाकुर हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, बंगाली, संस्कृत और अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में गीत गाती हैं। उनके साथ उनके दो भाई ऋषव ठाकुर (तबला वादक) और आयाच...

AMRAPALI DUBEY

  अम्रपाली दुबे  अम्रपाली दुबे भोजपुरी सिनेमा की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री और मॉडल हैं। उनका जन्म 11 जनवरी 1987 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे आज भोजपुरी फिल्म जगत की सबसे सफल और लोकप्रिय अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं। अम्रपाली दुबे ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोरखपुर में पूरी की और बाद में मुंबई जाकर अभिनय की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत हिंदी टेलीविज़न से की थी। वे लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों जैसे “रहना है तेरी पलकों की छांव में” , “सपने सजन के” , और “मेरा नाम करेगी रोशन” में नजर आईं। लेकिन असली पहचान उन्हें भोजपुरी फिल्मों से मिली। भोजपुरी सिनेमा में उनकी पहली फिल्म “निरहुआ हिंदुस्तानी” (2014) थी, जिसमें उन्होंने दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ के साथ काम किया। यह फिल्म सुपरहिट हुई और अम्रपाली दुबे रातोंरात भोजपुरी सिनेमा की स्टार बन गईं। इसके बाद उन्होंने “निरहुआ रिक्शावाला 2” , “राजा बाबू” , “पटना से पाकिस्तान” , “बम बम बोल रहा है काशी” , और “लallu की लैला” जैसी कई हिट फिल्मों में अभिनय किया। अम्रपाली दुबे को उनकी सुंदरता, भावनात्मक अभिनय और ...

PAWAN SINGH

  पवन सिंह  पवन सिंह भोजपुरी सिनेमा के एक प्रसिद्ध गायक, अभिनेता और सुपरस्टार हैं। उनका जन्म 5 जनवरी 1986 को अरrah, बिहार के एक छोटे से गाँव में हुआ था। वे भोजपुरी फिल्म जगत के उन कलाकारों में से हैं जिन्होंने अपनी मेहनत, लगन और प्रतिभा के बल पर एक खास मुकाम हासिल किया है। पवन सिंह ने अपने करियर की शुरुआत एक भोजपुरी गायक के रूप में की थी। उनका पहला एल्बम “ओढ़निया वाली” काफी लोकप्रिय हुआ, लेकिन उन्हें असली पहचान “लॉलीपॉप लागेलू” गाने से मिली। यह गाना न केवल बिहार और उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे भारत में सुपरहिट हुआ और आज भी लोगों की जुबान पर है। संगीत में सफलता के बाद पवन सिंह ने फिल्मों में कदम रखा। उनकी पहली फिल्म “रंगीला बबुआ” थी। इसके बाद उन्होंने “प्रतिकार”, “सत्या”, “गदर”, “पवन राजा”, “राजा”, “क्रैक फाइटर” , और “मेरा भारत महान” जैसी कई सुपरहिट फिल्में दीं। उनके अभिनय में जोश, भावनाएँ और ऊर्जा का अनोखा मेल देखने को मिलता है। पवन सिंह को “भोजपुरी पावर स्टार” के नाम से भी जाना जाता है। उनकी आवाज़ में जो दम और आकर्षण है, उसने उन्हें भोजपुरी संगीत का बादशाह बना दिया...

RAVI KISHAN

  रवि किशन  रवि किशन शुक्ल भोजपुरी सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता, गायक और राजनेता हैं। उनका जन्म 17 जुलाई 1969 को जौनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे भारतीय फिल्म जगत के उन कलाकारों में से हैं जिन्होंने भोजपुरी, हिंदी, तेलुगु और दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी अपनी पहचान बनाई। रवि किशन का बचपन साधारण परिवार में बीता। उन्हें बचपन से ही अभिनय में रुचि थी। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत हिंदी फिल्म “पीतांबर” (1992) से की थी, लेकिन उन्हें असली पहचान भोजपुरी फिल्म “सैयां हमार” (2003) से मिली। यह फिल्म सुपरहिट हुई और रवि किशन को भोजपुरी सिनेमा का सुपरस्टार बना दिया। इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्में दीं जैसे — “दुल्हा मिलल दिलदार” , “पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई” , “हम तो हो गए तोहरे” , और “गंगा” । उनकी फिल्मों में देशभक्ति, सामाजिक संदेश और मनोरंजन का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। रवि किशन अपनी जोशीली संवाद शैली और भावनात्मक अभिनय के लिए जाने जाते हैं। भोजपुरी फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने बॉलीवुड की कई प्रसिद्ध फिल्मों में भी काम किया है, जैसे — “तेरे नाम” , “लकी” , “रावण” ,...

NIRAHUAA

  निरहुआ  दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ भोजपुरी सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता, गायक और राजनेता हैं। उनका जन्म 2 फरवरी 1979 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार माने जाते हैं और दर्शकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं। निरहुआ का परिवार संगीत से जुड़ा हुआ है। वे मशहूर लोकगायक मीत लाल यादव के परिवार से संबंध रखते हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक भोजपुरी गायक के रूप में की थी। उनका पहला म्यूजिक एल्बम “निरहुआ सटल रहे” बेहद हिट हुआ और यहीं से उन्हें “निरहुआ” नाम मिला। इस एल्बम ने उन्हें भोजपुरी जगत में प्रसिद्धि दिलाई। उनकी फिल्मी करियर की शुरुआत “हमनी के सासुर घरे आवे लागल” से हुई, लेकिन असली सफलता उन्हें “निरहुआ रिक्शावाला” (2008) फिल्म से मिली। इस फिल्म ने उन्हें भोजपुरी सिनेमा का सुपरस्टार बना दिया। इसके बाद उन्होंने “निरहुआ हिंदुस्तानी” , “राजा बाबू” , “पटनिया के प्यार में” , “लैलापुरिया” , और “शेर-ए-हिंदुस्तान” जैसी कई सुपरहिट फिल्में दीं। निरहुआ का अभिनय स्वाभाविक और मनोरंजक होता है। वे एक्शन, कॉमेडी और रोमांस — हर प्रकार की भूमिकाओं में...

KHESARI LAL YADAV

  खेसारी लाल यादव  खेसारी लाल यादव भोजपुरी फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध अभिनेता, गायक और लोकप्रिय कलाकार हैं। उनका जन्म 6 मार्च 1986 को छपरा, बिहार के एक छोटे से गाँव में हुआ था। वे बचपन से ही संगीत और अभिनय के शौकीन थे। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आने के बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर भोजपुरी सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई। खेसारी लाल यादव ने अपने करियर की शुरुआत एक भोजपुरी गायक के रूप में की थी। उनके पहले एल्बम “माल भेटाई मेला में” ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई। बाद में उन्होंने फिल्मों में कदम रखा और उनकी पहली फिल्म “साजन चले ससुराल” (2012) सुपरहिट रही। इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार एक से बढ़कर एक सफल फिल्में दीं। उनकी प्रमुख फिल्मों में “दुल्हन गंगा पार के” , “नागिन” , “राजा बाबू” , “संग्रहण” , “लिट्टी चोखा” और “मेहंदी लगाके रखना” जैसी हिट फिल्में शामिल हैं। खेसारी लाल यादव अपने ऊर्जावान अभिनय, शानदार डांस और मीठे गायन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भोजपुरी सिनेमा को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।...

BANKIM CHANDRA CHATTOPADHYAY

  बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय  बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय भारत के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि और देशभक्त थे। उनका जन्म 26 जून 1838 को बंगाल के कंठलपाड़ा (24 परगना) जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम यदवचंद्र चट्टोपाध्याय था, जो सरकारी अधिकारी थे। बंकिमचंद्र बचपन से ही अत्यंत मेधावी और परिश्रमी विद्यार्थी थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और बाद में सरकारी सेवा में कार्य किया। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को आधुनिक बंगाली साहित्य का जनक कहा जाता है। उन्होंने उपन्यास लेखन की एक नई धारा प्रारंभ की। उनके प्रमुख उपन्यास हैं — ‘आनंद मठ’ , ‘कपालकुंडला’ , ‘दुर्गेशनंदिनी’ , ‘विषवृक्ष’ , और ‘राजनीति’ । उनके उपन्यासों में समाज की समस्याओं, नारी सम्मान, और देशभक्ति की भावना का गहरा चित्रण मिलता है। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘आनंद मठ’ है, जिसमें देशभक्ति की भावना का अद्भुत वर्णन है। इसी उपन्यास से प्रसिद्ध गीत ‘वंदे मातरम्’ लिया गया, जो बाद में भारत का राष्ट्रीय गीत बना। इस गीत ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीयों में देशप्रेम और एकता की भावना को प्रबल किया। बं...

ANAND MATTH

  आनंद मठ  ‘आनंद मठ’ प्रसिद्ध बंगाली लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित एक ऐतिहासिक उपन्यास है। यह उपन्यास 1882 में प्रकाशित हुआ था और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की भावना को प्रज्वलित करने वाला माना जाता है। इसमें भारत के संन्यासियों के संघर्ष और देशभक्ति की भावना का अत्यंत प्रभावशाली चित्रण किया गया है। ‘आनंद मठ’ की कथा 18वीं शताब्दी के बंगाल प्रांत की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जब अंग्रेजों और नवाबों के अत्याचार से लोग पीड़ित थे। इस कठिन समय में कुछ संन्यासी देश को स्वतंत्र कराने का संकल्प लेते हैं। वे अपने जीवन का उद्देश्य मातृभूमि की सेवा और राष्ट्र की स्वतंत्रता को बनाते हैं। इन संन्यासियों का नेतृत्व महात्मा सत्यानंद करते हैं। इस उपन्यास का सबसे प्रसिद्ध अंश है — “वंदे मातरम्” , जो बाद में भारत का राष्ट्रीय गीत बना। इस गीत के माध्यम से बंकिमचंद्र ने मातृभूमि को देवी के रूप में प्रस्तुत किया है और देशवासियों को उसकी सेवा के लिए प्रेरित किया है। ‘आनंद मठ’ न केवल एक उपन्यास है, बल्कि यह भारतीय समाज में नवजागरण का प्रतीक भी है। इसने लोगों में देशभक्ति, त्याग, और बलिद...

VANDE MATARAM

  वंदे मातरम्  वंदे मातरम् हमारा राष्ट्रीय गीत है, जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में करोड़ों भारतीयों के हृदय में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित की। इस गीत की रचना महान साहित्यकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी। उन्होंने इसे अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ में 1882 में शामिल किया। वंदे मातरम् के शब्दों में माँ भारती की आराधना और उसके प्रति असीम प्रेम की भावना व्यक्त होती है। यह गीत संस्कृत और बांग्ला भाषा के मिश्रण में लिखा गया है। “वंदे मातरम्” का अर्थ है – “माँ, मैं तुझे प्रणाम करता हूँ।” इसमें भारत माता की सुंदरता का अत्यंत मनोहर वर्णन किया गया है। माँ की धरती को सुजल, सुफल, शस्यश्यामला कहा गया है, अर्थात् वह जल, फल और हरियाली से भरी हुई है। इस गीत में देश को देवी के रूप में दर्शाया गया है, जो अपने पुत्रों को आशीर्वाद देती है। स्वतंत्रता आंदोलन के समय “वंदे मातरम्” एक नारा बन गया था। इस गीत को सुनकर क्रांतिकारी और आम नागरिकों में जोश और साहस भर जाता था। इसने लोगों में एकता और देशप्रेम की भावना को प्रबल किया। 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब “वंदे मातरम्” को...

VANDE MATARAM

  वंदे मातरम् वंदे मातरम्, सुजलां सुफलां, मलयजशीतलाम्, शस्य श्यामलां मातरम्॥ शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम्, फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्, सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्, सुखदां वरदां मातरम्॥ वंदे मातरम्॥ अर्थ (संक्षेप में): हे माँ (भारत माता), मैं तुझे प्रणाम करता हूँ — तू जल और फल से परिपूर्ण है, शीतल पवन से शीतल है, हरे-भरे खेतों से सजी है। तेरी रातें चाँदनी से प्रकाशित हैं, तुझे फूलों और वृक्षों की शोभा बढ़ाती है। तू हँसमुख, मधुर बोलने वाली, सुख देने वाली और वरदान देने वाली है।

ASHRAY, PUSHPA BAGODIA DHARMSHALA, ROHINI, DELHI

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 आश्रय, रोहिणी, दिल्ली  =======\\\==\\ आश्रय दिल्ली के रोहिणी मैं रिठाला मेट्रो स्टेशन के पास स्थित पुष्पा बगरोडिया धर्म शाला का नाम है जो रोहिणी में स्थित राजीव गांधी कैंसर होसपिटल से संबंधित है। यहां कैंसर मरीजों को रियायती दर पर उसके अटेंडेंट के साथ रहने की सुविधा है। यहां दो बेड का एक कमरा लैट्रिन बाथरूम अटैच्ड सात सौ रुपए प्रति दिन के हिसाब से कैंसर मरीजों को इलाज के दौरान रहने के लिए दिया जाता है। यहां कुल 28 कमरे है जो फर्स्ट और सेकंड फ्लोर पर स्थित है। सीढ़ी के साथ लिपट की सुविधा भी उपलब्ध है। ग्राउंड फ्लोर पर रिसेप्शन और रियायती दर पर कैंटिन उपलब्ध है जो मरीज तथा अटेंडेंट के लिए शाकाहारी नाश्ता तथा भोजन उपलब्ध कराता है। कैम्पस में एक छोटा-सा पार्कनुमा फूल पौधे से सुसज्जित जगह है जहां घुमा टहला और बैठा जा सकता है।

DR MAHENDRA LAL SARKAR

  डॉ. महेन्द्र लाल सरकार  डॉ. महेन्द्र लाल सरकार भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक, चिकित्सक और होम्योपैथी के प्रणेता थे। उनका जन्म 2 नवम्बर 1833 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में हुआ था। वे प्रारंभ से ही अत्यंत मेधावी छात्र थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की और मेडिकल कॉलेज से एम.डी. की डिग्री हासिल की। डॉ. सरकार प्रारंभ में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक थे, लेकिन बाद में उन्होंने होम्योपैथी की ओर रुझान किया। उन्होंने इस पद्धति का गहराई से अध्ययन किया और इसे भारत में लोकप्रिय बनाया। वे भारत में होम्योपैथिक चिकित्सा के जनक माने जाते हैं। उन्होंने दिखाया कि होम्योपैथी भी एक प्रभावी और वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है, जो मानव कल्याण के लिए उपयोगी हो सकती है। विज्ञान के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय था। उन्होंने 1876 में कोलकाता में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस (IACS) की स्थापना की, जो आगे चलकर भारतीय वैज्ञानिक आंदोलन की आधारशिला बनी। इसी संस्था से प्रेरित होकर बाद में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सी. वी. रमन जैसे वैज्ञानिकों ने भारत मे...

HILLSIDE TERRACE TOKYO

  हिलसाइड टैरेस टोक्यो  हिलसाइड टैरेस (Hillside Terrace) जापान की राजधानी टोक्यो में स्थित एक प्रसिद्ध वास्तु परियोजना है, जिसे विश्वप्रसिद्ध वास्तुकार फुमिहिको माकी ने डिजाइन किया था। यह परियोजना आधुनिक स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण मानी जाती है। हिलसाइड टैरेस का निर्माण टोक्यो के दाइकानयामा (Daikanyama) क्षेत्र में किया गया है, जो शहर का एक आधुनिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इलाका है। इस परियोजना का निर्माण कई चरणों में हुआ। इसका पहला चरण 1969 में शुरू हुआ और अंतिम चरण 1992 में पूरा हुआ। हिलसाइड टैरेस केवल एक इमारत नहीं, बल्कि यह एक समेकित परिसर (Integrated Complex) है, जिसमें आवासीय भवन, कार्यालय, दुकानें, गैलरी, रेस्टोरेंट और सांस्कृतिक केंद्र शामिल हैं। इसका उद्देश्य शहरी जीवन में समुदाय, संवाद और कला को एक साथ जोड़ना था। फुमिहिको माकी ने इस परियोजना में आधुनिकता और पारंपरिक जापानी स्थापत्य शैली का सुंदर संयोजन किया है। इमारतों की डिजाइन में सादगी, प्राकृतिक प्रकाश और खुले स्थानों का विशेष ध्यान रखा गया है। यहाँ छोटे-छोटे आंगन, पेड़-पौधे और चलने के मार्ग हैं, ज...

FUMIHIKO MAKI

  फुमिहिको माकी  फुमिहिको माकी जापान के विश्वप्रसिद्ध वास्तुकार (Architect) हैं, जिन्हें आधुनिक स्थापत्य कला के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 6 सितंबर 1928 को जापान के टोक्यो शहर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा टोक्यो विश्वविद्यालय से प्राप्त की और आगे की पढ़ाई हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका) से की। माकी आधुनिकता और परंपरा के सुंदर संतुलन के लिए प्रसिद्ध हैं। फुमिहिको माकी की वास्तुकला शैली में सरलता, पारदर्शिता और प्राकृतिक प्रकाश का विशेष महत्त्व है। उन्होंने अपने डिज़ाइनों में इस बात पर ज़ोर दिया कि इमारतें सिर्फ संरचनाएँ नहीं होतीं, बल्कि वे मानव जीवन और समाज से जुड़ी होती हैं। उनके कार्यों में जापानी सौंदर्यबोध और आधुनिक तकनीक का सुंदर मेल दिखाई देता है। उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियाँ हैं — हिलसाइड टैरेस (टोक्यो) , माकुहारी मेशी हॉल , येरूशलेम का म्यूज़ियम ऑफ़ टॉलरेंस , और टोक्यो मेट्रोपॉलिटन जिम्नेज़ियम । भारत में उन्होंने पटना स्थित बिहार संग्रहालय का डिज़ाइन तैयार किया, जो आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत उदाहरण माना जाता है। इस...

BIHAR MUSEUM PATNA

  बिहार संग्रहालय पटना  बिहार संग्रहालय पटना का एक अत्याधुनिक और विश्वस्तरीय संग्रहालय है, जो बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और कलात्मक विरासत को प्रदर्शित करता है। इसका उद्घाटन वर्ष 2015 में किया गया था। यह संग्रहालय बेली रोड , पटना पर स्थित है और इसे जापानी आर्किटेक्ट फुमिहिको माकी तथा भारतीय आर्किटेक्ट ओपी अग्रवाल के सहयोग से डिजाइन किया गया है। बिहार संग्रहालय का निर्माण बिहार सरकार ने राज्य की प्राचीन सभ्यता और गौरवशाली इतिहास को आधुनिक रूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से कराया। यहाँ प्रदर्शित वस्तुएँ बिहार की हज़ारों वर्षों पुरानी संस्कृति और गौरवशाली परंपरा की झलक दिखाती हैं। संग्रहालय में कई गैलरियाँ हैं — जैसे बिहार हेरिटेज गैलरी , फ्रीडम स्ट्रगल गैलरी , चिल्ड्रन गैलरी , आर्ट गैलरी और हिस्ट्री गैलरी । यहाँ मौर्य, गुप्त, और मगध साम्राज्य से जुड़ी मूर्तियाँ, सिक्के, प्राचीन औजार, हथियार और दस्तावेज़ रखे गए हैं। विशेष रूप से अशोक कालीन मूर्तियाँ और डिडारगंज यक्षी की मूर्ति यहाँ के मुख्य आकर्षण हैं। बिहार संग्रहालय का परिसर विशाल और आधुनिक है। यहाँ ऑडिटोर...

MARINE DRIVE PATNA

  जेपी गंगा पथ पटना  जेपी गंगा पथ पटना का एक अत्याधुनिक और सुंदर एक्सप्रेस-वे है, जिसे बिहार सरकार ने गंगा नदी के दक्षिणी तट के किनारे बनाया है। इसे पहले “पटना मरीन ड्राइव” के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में इसका नामकरण स्वतंत्रता सेनानी और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्मान में जेपी गंगा पथ रखा गया। यह सड़क न केवल पटना शहर की सुंदरता बढ़ाती है, बल्कि यातायात को सुगम बनाकर विकास का प्रतीक भी बन गई है। जेपी गंगा पथ की कुल लंबाई लगभग 20.5 किलोमीटर है। यह मार्ग दीघा से दीदारगंज तक फैला हुआ है और इसे कई चरणों में विकसित किया गया है। सड़क का निर्माण बिहार राज्य सड़क विकास निगम लिमिटेड (BSRDCL) द्वारा किया गया है। गंगा नदी के किनारे बने इस पथ से शहर के पश्चिमी और पूर्वी हिस्से को जोड़ने में काफी सुविधा हुई है। इस पथ पर आधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया है। चौड़ी सड़कें, साइकिल लेन, सुंदर लाइटें, बैठने की व्यवस्था और गंगा के मनमोहक दृश्य इसे एक पर्यटन स्थल जैसा अनुभव कराते हैं। शाम के समय यहाँ का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। लोग यहाँ टहलने, फोटो खिंचवाने और गंगा की ठंडी हवा का...

SHEKHUPURA DISTRICT OF PAKISTAN

  पाकिस्तान का शेखूपुरा ज़िला  शेखूपुरा ज़िला पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित एक ऐतिहासिक और औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह ज़िला लाहौर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शेखूपुरा का नाम मुग़ल सम्राट जहाँगीर ने अपने मित्र शेखू के नाम पर रखा था। यह क्षेत्र इतिहास, संस्कृति और धार्मिक धरोहरों से समृद्ध है। शेखूपुरा ज़िले का गठन सन् 1920 में किया गया था। यहाँ कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है हिरन मीनार , जिसे जहाँगीर ने अपने पालतू हिरन “मंसराज” की याद में बनवाया था। यह मीनार मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इसके अलावा यहाँ कई पुराने किले, मस्जिदें और गुरुद्वारे भी हैं, जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाते हैं। शेखूपुरा ज़िला धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ ननकाना साहिब स्थित है, जो सिख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी की जन्मभूमि है। हर वर्ष यहाँ गुरु नानक जयंती के अवसर पर हजारों श्रद्धालु भारत और दुनिया भर से आते हैं। इससे इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय पहचान मि...

NANKANA SAHIB

  ननकाना साहिब  ननकाना साहिब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह स्थान सिख धर्म के प्रथम गुरु, श्री गुरु नानक देव जी की जन्मभूमि होने के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। पहले इस स्थान को तलवंडी कहा जाता था, लेकिन गुरु नानक देव जी के नाम पर बाद में इसका नाम ननकाना साहिब रखा गया। यह शहर लाहौर से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ईस्वी में यहीं हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। बचपन से ही गुरु नानक देव जी में ईश्वर के प्रति गहरी आस्था और मानवता की भावना थी। उन्होंने ननकाना साहिब से ही अपने आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत की और आगे चलकर सिख धर्म की स्थापना की। ननकाना साहिब में स्थित गुरुद्वारा जन्म स्थान श्री गुरु नानक देव जी अत्यंत भव्य और पवित्र स्थल है। यहाँ प्रतिदिन अरदास, कीर्तन और लंगर का आयोजन होता है। हर वर्ष गुरु नानक जयंती के अवसर पर यहाँ भव्य उत्सव मनाया जाता है, जिसमें देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस अवसर पर नगर कीर्तन, धार्मिक प्रवचन और साम...

TALWANDI

  तलवंडी तलवंडी एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह वही पवित्र भूमि है जहाँ सिख धर्म के प्रथम गुरु, श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। तलवंडी अब पाकिस्तान में स्थित है और इसे वर्तमान में “ननकाना साहिब” के नाम से जाना जाता है। यह स्थान पंजाब प्रांत के शेेखूपुरा ज़िले में स्थित है और सिख श्रद्धालुओं के लिए तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ईस्वी में तलवंडी में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। बचपन से ही गुरु नानक देव जी में ईश्वर के प्रति गहरी आस्था और मानवता की भावना थी। उन्होंने तलवंडी से ही अपने आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत की और आगे चलकर सिख धर्म की स्थापना की। आज तलवंडी, जिसे ननकाना साहिब कहा जाता है, सिख समुदाय का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। यहाँ गुरुद्वारा जन्म स्थान ननकाना साहिब स्थित है, जो अत्यंत भव्य और ऐतिहासिक स्थल है। हर वर्ष गुरु नानक देव जी की जयंती के अवसर पर यहाँ विशाल उत्सव और नगर कीर्तन आयोजित किए जाते हैं, जिनमें देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। ननक...

GURUNANAK DEV JI JAYANTI

  गुरु नानक देव जी जयंती  गुरु नानक देव जी जयंती सिख धर्म का सबसे प्रमुख और पवित्र पर्व है। यह दिन सिख धर्म के प्रथम गुरु, श्री गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक जी का जन्म 1469 ईस्वी में पंजाब के तलवंडी नामक गाँव में हुआ था, जिसे अब पाकिस्तान में "ननकाना साहिब" के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसलिए यह पर्व "कार्तिक पूर्णिमा" को ही मनाया जाता है। गुरु नानक देव जी ने समाज में समानता, प्रेम, और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि ईश्वर एक है और हर जीव में वही विद्यमान है। उन्होंने अंधविश्वास, जाति-पाति, और भेदभाव का विरोध किया तथा लोगों को सच्चाई और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनका प्रसिद्ध उपदेश था — “नाम जपो, किरत करो, वंड छको” , अर्थात ईश्वर का स्मरण करो, ईमानदारी से मेहनत करो और अपने कमाए हुए धन को दूसरों के साथ बाँटो। गुरु नानक जयंती के अवसर पर गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन, पाठ और लंगर का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु सुबह-सुबह नगर कीर्तन निकालते हैं, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब ...

KARTIK PURNIMA

  कार्तिक पूर्णिमा  कार्तिक पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शुभ पर्व है। यह त्यौहार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली के लगभग पंद्रह दिन बाद आती है। यह दिन धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने "मत्स्य अवतार" धारण किया था। इसी कारण इसे "देव दीपावली" या "त्रिपुरारी पूर्णिमा" भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिससे देवताओं ने प्रसन्न होकर गंगा जी के तट पर दीप जलाए थे। इसी से यह परंपरा शुरू हुई कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान किया जाए। इस दिन गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्नान, दान और पूजा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं। देशभर में इस दिन मेलों और उत्सवों का आयोजन होता है। वाराणसी में “देव दीपावली” का भव्य उत्सव मनाया जाता है, जहाँ गंगा घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं। राजस्थान के पुष्कर में प्रसिद्ध “पुष्कर मेला” भी इस...

KAICHI DHAM NAINITAL

  कैंची धाम  कैंची धाम उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में स्थित एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थान है। यह मंदिर श्री नीम करौली बाबा को समर्पित है, जो हनुमान जी के परम भक्त और महान संत थे। कैंची धाम नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर नैनीताल–अल्मोड़ा मार्ग पर पहाड़ों के बीच स्थित है। यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक वातावरण के लिए विश्व प्रसिद्ध है। कैंची धाम का नाम यहाँ की भौगोलिक बनावट के कारण पड़ा है। यहाँ दो पहाड़ियाँ कैंची की तरह एक-दूसरे को काटती हैं, इसलिए इसे “कैंची धाम” कहा जाता है। इस स्थान पर सन् 1962 में नीम करौली बाबा ने हनुमान जी के मंदिर और आश्रम की स्थापना की थी। कहा जाता है कि बाबा ने यहाँ अनेक भक्तों को आत्मिक शांति और जीवन का सही मार्ग दिखाया। हर वर्ष 15 जून को कैंची धाम में स्थापना दिवस का भव्य मेला आयोजित किया जाता है। इस दिन हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से यहाँ पहुँचते हैं। मंदिर में भजन, कीर्तन और प्रसाद वितरण का आयोजन होता है। वातावरण भक्तिभाव और दिव्यता से भर जाता है। कैंची धाम का प्रभाव न केवल भारत में बल्कि विदेशों तक फैला है। एप्पल कंपन...

NEEM KAROLI BABA

  नीम करौली बाबा नीम करौली बाबा भारत के प्रसिद्ध संतों में से एक माने जाते हैं। उन्हें लोग प्रेम, करुणा और भक्ति का प्रतीक मानते हैं। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। उनका जन्म लगभग सन् 1900 के आसपास उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गाँव में हुआ था। वे बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और ईश्वर भक्ति में गहरी रुचि रखते थे। नीम करौली बाबा को “महाराज जी” के नाम से भी जाना जाता है। वे हनुमान जी के परम भक्त थे और उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय सेवा, भक्ति और ध्यान में व्यतीत किया। बाबा ने उत्तराखंड के नैनीताल जिले में “कैंची धाम” आश्रम की स्थापना की, जो आज विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बन चुका है। यहाँ हर वर्ष जून महीने में भव्य मेले का आयोजन होता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु बाबा के दर्शन और आशीर्वाद के लिए आते हैं। नीम करौली बाबा ने कभी किसी से भेदभाव नहीं किया। उन्होंने लोगों को सिखाया कि प्रेम और सेवा ही ईश्वर की सच्ची पूजा है। कहा जाता है कि उनके पास दिव्य शक्तियाँ थीं और वे अपने भक्तों के मन की बात जान लेते थे। अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक और योगी “रामदास” तथा एप्पल कंपनी के संस्थ...

DEV DEEPAWALI

  देव दीपावली  देव दीपावली भारत का एक अत्यंत पवित्र और सुंदर पर्व है, जो कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से वाराणसी (काशी) में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। दीपावली के पंद्रह दिन बाद आने वाला यह पर्व देवताओं की दीपावली के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन देवता पृथ्वी पर उतरकर गंगा जी के तट पर दीप जलाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध भगवान शिव ने इसी दिन किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने आनंदपूर्वक दीप जलाए थे। तभी से इस दिन को "देव दीपावली" के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। वाराणसी में देव दीपावली का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। गंगा के दोनों तटों पर हजारों दीप जलाए जाते हैं, जिससे पूरी नगरी स्वर्ग जैसी प्रतीत होती है। घाटों पर आरती का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है — घंटियों की ध्वनि, भजन और दीपों की रोशनी मिलकर वातावरण को आध्यात्मिक बना देती है। लाखों श्रद्धालु इस दिन गंगा स्नान करते हैं और भगवान शिव तथा माँ गंगा की पूजा करते हैं। देव दीपावली केवल धार्मिक प...

NAL AND NIL

  नल और नील  नल और नील रामायण के प्रसिद्ध पात्र हैं, जो वानर सेना के वीर योद्धा तथा कुशल वास्तुकार (निर्माणकर्ता) थे। वे वानरराज सुग्रीव की सेना के सदस्य थे और भगवान श्रीराम के साथ लंका विजय अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नल और नील दोनों भाई थे और उन्हें वास्तुकला एवं निर्माण विद्या में असाधारण ज्ञान प्राप्त था। किंवदंती के अनुसार, नल और नील को बचपन में यह वरदान मिला था कि वे जो भी पत्थर पानी में फेंकेंगे, वह डूबेगा नहीं बल्कि तैरता रहेगा। यही वरदान आगे चलकर रामायण के सबसे महत्वपूर्ण कार्य — रामसेतु (सेतुबंध) — के निर्माण में काम आया। जब भगवान श्रीराम को समुद्र पार करके लंका पहुँचना था, तब समुद्र के बीच रास्ता बनाने का कार्य नल और नील को सौंपा गया। उन्होंने अपने वरदान का उपयोग करके पत्थरों से पुल का निर्माण किया, जो समुद्र की लहरों पर तैरता रहा। इस अद्भुत कार्य के कारण ही रामसेतु को आज भी “नल-नील सेतु” कहा जाता है। नल और नील न केवल वीर योद्धा थे, बल्कि अत्यंत बुद्धिमान और परिश्रमी भी थे। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी और अपने कौशल से असंभव को संभव...

SUMANT

  सुमंत  सुमंत महर्षि वाल्मीकि की रामायण में अयोध्या के राजा दशरथ के महामंत्री थे। वे बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और अत्यंत योग्य राजपुरुष माने जाते थे। सुमंत अपने समय के श्रेष्ठ राजनीतिज्ञों में से एक थे, जिन्होंने न केवल प्रशासन में दक्षता दिखाई, बल्कि नीतियों में भी गहरी समझ रखी। वे राजा दशरथ के विश्वस्त सलाहकार थे और राजकाज के संचालन में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। सुमंत का स्वभाव गंभीर, विवेकशील और कोमल हृदय वाला था। जब श्रीराम को वनवास देने का समय आया, तब सुमंत ने राजा दशरथ को समझाने का बहुत प्रयास किया कि वे अपने वचन के पालन में कुछ नरमी दिखाएँ। परंतु जब दशरथ ने धर्मपालन को सर्वोपरि मानते हुए राम को वनवास देने का निर्णय लिया, तब सुमंत ने भी धर्म के मार्ग का सम्मान किया। राजा दशरथ ने सुमंत को आदेश दिया कि वे श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को वन तक पहुँचाकर लौट आएँ। सुमंत ने बड़ी श्रद्धा और भावनाओं के साथ यह कार्य किया। वे अत्यंत दुखी थे, परंतु अपनी निष्ठा और कर्तव्य के प्रति अडिग रहे। जब वे अयोध्या लौटे, तो उन्होंने राजा दशरथ को श्रीराम के वन गमन का समाचार दिया, जिसके बाद दश...

MAHARSHI CHYAVAN

  महर्षि च्यवन  महर्षि च्यवन प्राचीन भारत के प्रसिद्ध ऋषियों में से एक थे। वे अपने ज्ञान, तपस्या और औषधि विद्या के लिए प्रसिद्ध थे। आयुर्वेद में उनका विशेष योगदान माना जाता है। उनके नाम पर प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि “च्यवनप्राश” का निर्माण हुआ, जो आज भी शरीर को बल, ऊर्जा और रोगों से रक्षा प्रदान करती है। महर्षि च्यवन का जन्म प्रसिद्ध भृगु ऋषि के पुत्र के रूप में हुआ था। वे बचपन से ही अत्यंत तेजस्वी और बुद्धिमान थे। कहा जाता है कि वे गहन तपस्या में लीन रहते थे और भगवान से आत्मसाक्षात्कार की साधना करते थे। तपस्या के कारण उनका शरीर निर्बल और वृद्ध जैसा हो गया था। एक कथा के अनुसार, राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या ने अनजाने में उनकी आँखों में काँटा चुभो दिया। जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने प्रायश्चित स्वरूप महर्षि च्यवन से विवाह किया। बाद में अश्विनीकुमारों ने अपने दिव्य औषधियों द्वारा च्यवन ऋषि को फिर से युवा और सुंदर बना दिया। इस चमत्कारिक घटना से प्रेरित होकर उन्होंने “च्यवनप्राश” नामक औषधि का निर्माण किया, जो आज भी भारतीय परंपरा में अमर है। महर्षि च्यवन ने आयुर्वेद ...

MAHARSHI BALMIKI

  महर्षि वाल्मीकि  महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के महान ऋषि, कवि और आदर्श चरित्र माने जाते हैं। उन्हें संस्कृत साहित्य का आदि कवि कहा जाता है क्योंकि उन्होंने प्रथम बार “श्लोक” छंद की रचना की थी। उन्होंने विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य “रामायण” की रचना की, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन पर आधारित है। वाल्मीकि का वास्तविक नाम रत्नाकर था। कहा जाता है कि वे प्रारंभ में एक डाकू थे, जो राहगीरों को लूटकर अपना जीवन यापन करते थे। एक दिन उन्हें महर्षि नारद से भेंट हुई, जिन्होंने उन्हें जीवन का सच्चा अर्थ समझाया। तब रत्नाकर ने गहरी तपस्या की और वर्षों तक “राम” नाम का जाप किया। उनकी तपस्या के कारण उनके शरीर पर दीमकों का घर बन गया, जिससे उनका नाम “वाल्मीकि” पड़ा, जिसका अर्थ है — दीमकों के घर से उत्पन्न व्यक्ति। तपस्या के फलस्वरूप वे एक महान ऋषि बन गए। उन्होंने आश्रम में शिक्षा प्रदान की और समाज को धर्म, सत्य और नीति का संदेश दिया। जब भगवान राम ने सीता माता को वनवास दिया, तब सीता माता ने वाल्मीकि के आश्रम में ही निवास किया और वहीं लव-कुश का जन्म हुआ। महर्षि वाल्मीकि ने ही लव और कुश ...

DRONACHARYA

  द्रोणाचार्य  महर्षि द्रोणाचार्य महाभारत के प्रसिद्ध पात्रों में से एक हैं। वे अद्वितीय योद्धा, श्रेष्ठ धनुर्विद्या शिक्षक और कौरव-पांडवों के गुरु थे। उनका नाम भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा के आदर्श के रूप में लिया जाता है। द्रोणाचार्य का जन्म महर्षि भरद्वाज के आश्रम में हुआ था। वे बचपन से ही शास्त्र और शस्त्र दोनों के ज्ञाता थे। उन्होंने भगवान परशुराम से अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। विवाह के बाद जब वे गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे थे, तब अपने मित्र राजा द्रुपद से सहायता मांगने गए, परंतु द्रुपद ने उन्हें अपमानित कर दिया। इसी कारण द्रोणाचार्य ने प्रतिज्ञा ली कि वे एक दिन द्रुपद को परास्त करेंगे। द्रोणाचार्य को बाद में हस्तिनापुर के राजकुमारों के गुरु के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने पांडवों और कौरवों को युद्धकला और नीति की शिक्षा दी। उनके शिष्य अर्जुन विशेष रूप से उनके प्रिय थे, क्योंकि अर्जुन सबसे अधिक निष्ठावान और परिश्रमी थे। द्रोणाचार्य ने उन्हें “श्रेष्ठ धनुर्धर” बनाने का वचन दिया और उसे निभाया। महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य कौरवों की ओर से ...

EKLAVYA

  एकलव्य  एकलव्य महाभारत के महान और प्रेरणादायक पात्रों में से एक हैं। वे निष्ठा, समर्पण और गुरु-भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। एकलव्य निषाद राज हिरण्यधनु के पुत्र थे और बचपन से ही महान धनुर्धर बनने की आकांक्षा रखते थे। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि सच्ची लगन और श्रद्धा से कोई भी व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकता है। कथा के अनुसार, एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन द्रोणाचार्य ने यह कहकर उन्हें शिक्षा देने से मना कर दिया कि वे केवल राजकुमारों को ही शिक्षा देते हैं। इससे निराश होने के बजाय एकलव्य ने मिट्टी की मूर्ति बनाकर द्रोणाचार्य को अपना गुरु मान लिया और उनके नाम से प्रतिदिन साधना करने लगे। अपनी कठोर मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर एकलव्य ने असाधारण धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त कर ली। जब द्रोणाचार्य ने देखा कि वह उनके शिष्यों से भी श्रेष्ठ धनुर्धर बन चुका है, तो उन्होंने गुरु-दक्षिणा के रूप में एकलव्य से उसका दाहिना अंगूठा माँग लिया। बिना किसी प्रश्न या विरोध के एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर गुरु को अर्पित कर दिया। एकलव्य का यह त्या...

NACHIKETA

  नचिकेता  नचिकेता भारतीय उपनिषदों में वर्णित एक महान बालक और अद्भुत जिज्ञासु के रूप में जाने जाते हैं। उनका उल्लेख कठोपनिषद में मिलता है, जो जीवन, मृत्यु और आत्मा के गूढ़ रहस्यों को उजागर करता है। नचिकेता की कथा हमें ज्ञान, सत्य और आत्म-बल की प्रेरणा देती है। कथा के अनुसार, नचिकेता ऋषि वाजश्रवस के पुत्र थे। एक बार उनके पिता ने यज्ञ किया जिसमें उन्होंने अपनी सारी वस्तुएँ दान में दे दीं। लेकिन जब नचिकेता ने देखा कि वे बूढ़ी और अनुपयोगी गायों का दान कर रहे हैं, तो उन्होंने अपने पिता से पूछा — “पिताजी, मुझे किसे दान करेंगे?” पिता ने क्रोधित होकर कह दिया — “तुझे यमराज को दे दूँगा।” सत्यप्रिय नचिकेता स्वयं यमलोक पहुँच गए। यमराज उस समय वहाँ नहीं थे, इसलिए नचिकेता ने तीन दिन तक बिना भोजन-पानी के उनका इंतजार किया। यमराज उनके धैर्य और निष्ठा से प्रसन्न हुए और तीन वरदान माँगने को कहा। पहले वर में नचिकेता ने अपने पिता की प्रसन्नता, दूसरे वर में अग्नि-विद्या का ज्ञान और तीसरे वर में मृत्यु के रहस्य का उत्तर माँगा। यमराज ने नचिकेता को अमर आत्मा का ज्ञान दिया और बताया कि आत्मा न तो जन...

MAHARSHI PATANJALI

  महर्षि पतंजलि  महर्षि पतंजलि प्राचीन भारत के महान दार्शनिक, योगी और व्याकरणाचार्य थे। उन्होंने भारतीय दर्शन, विशेषकर योगशास्त्र, को व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत किया। पतंजलि को “योगसूत्र” का रचयिता माना जाता है, जो योग के सिद्धांतों और अभ्यासों का आधारभूत ग्रंथ है। महर्षि पतंजलि का जीवनकाल लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के शेषनाग के अवतार थे। उनका उद्देश्य मानव जीवन को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से संतुलित बनाना था। उन्होंने योग को केवल साधना नहीं, बल्कि जीवन जीने की पूर्ण पद्धति के रूप में प्रस्तुत किया। उनका ग्रंथ पतंजलि योगसूत्र चार भागों में विभाजित है — समाधि पाद, साधना पाद, विभूति पाद और कैवल्य पाद। इसमें उन्होंने योग के अष्टांग मार्ग का वर्णन किया है — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यह मार्ग आत्म-संयम, शुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है। महर्षि पतंजलि ने यह सिखाया कि मनुष्य का मन ही उसके सुख और दुख का मूल कारण है। यदि मन को नियंत्रित कर लिया जाए, तो जीवन में शांति और आनंद स्वतः ...

CHARAK

  चरक  आचार्य चरक प्राचीन भारत के महान वैद्य, दार्शनिक और वैज्ञानिक थे। उन्हें आयुर्वेद का जनक माना जाता है। उन्होंने न केवल चिकित्सा विज्ञान को व्यवस्थित रूप दिया, बल्कि मानव शरीर, रोगों और जीवनशैली के गहरे संबंध को भी समझाया। आचार्य चरक का नाम आज भी चिकित्सा जगत में श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। आचार्य चरक का जीवन लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है। वे राजा कनिष्क के राजवैद्य थे और कुशन वंश के समय में रहते थे। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ चरक संहिता है, जो आयुर्वेद का मूल आधार माना जाता है। इस ग्रंथ में शरीर की रचना, रोगों के कारण, निदान, औषधियों के प्रयोग और स्वस्थ जीवन के नियमों का विस्तृत वर्णन मिलता है। चरक ने कहा कि “मनुष्य का स्वास्थ्य केवल औषधि से नहीं, बल्कि आहार, विचार और आचरण से भी जुड़ा होता है।” उन्होंने त्रिदोष सिद्धांत — वात, पित्त और कफ — का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार शरीर का संतुलन इन तीन तत्वों पर निर्भर करता है। आचार्य चरक ने पर्यावरण, जलवायु और मानसिक स्थिति को भी स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण घटक बताया। उनका मानना था कि चिकित्सक को केवल...

MAHARSHI VASHISHT

  महर्षि वशिष्ठ  महर्षि वशिष्ठ हिंदू धर्म के सप्तऋषियों में से एक हैं और उन्हें अत्यंत विद्वान, शांत और करुणामय ऋषि के रूप में जाना जाता है। वे वेदों, विशेषकर ऋग्वेद , के महान ऋषि और कई मंत्रों के रचयिता हैं। महर्षि वशिष्ठ का जीवन भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान की गहराई को दर्शाता है। कथाओं के अनुसार, महर्षि वशिष्ठ भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। वे राजा दशरथ के राजगुरु और भगवान राम के गुरु थे। उन्होंने राम को धर्म, नीति और जीवन के मूल सिद्धांतों की शिक्षा दी। उनके आश्रम में अनेक शिष्यों ने ज्ञान प्राप्त किया, जिनमें कई प्रसिद्ध ऋषि भी शामिल थे। महर्षि वशिष्ठ के पास कामधेनु नाम की दिव्य गाय थी, जो इच्छा अनुसार कोई भी वस्तु प्रदान कर सकती थी। इसी गाय के कारण उनका राजा विश्वामित्र से संघर्ष हुआ। परंतु वशिष्ठ ने अपनी तपशक्ति और धैर्य से यह सिद्ध किया कि आध्यात्मिक बल, सांसारिक बल से श्रेष्ठ होता है। वशिष्ठ को योग वशिष्ठ ग्रंथ का रचयिता माना जाता है, जिसमें उन्होंने भगवान राम को आत्मज्ञान और जीवन के गूढ़ रहस्यों का उपदेश दिया। इस ग्रंथ में अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों क...

SHANDILYA

  शांडिल्य ऋषि  ऋषि शांडिल्य प्राचीन भारत के प्रसिद्ध और पूजनीय महर्षियों में से एक माने जाते हैं। वे वेद, उपनिषद और धर्मशास्त्र के गहन ज्ञाता थे। “शांडिल्य” नाम उनके गोत्र से भी जुड़ा है, जो आज भी अनेक ब्राह्मण कुलों में प्रचलित है। महर्षि शांडिल्य का योगदान भारतीय दर्शन, भक्ति और आचारशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि ऋषि शांडिल्य भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उन्होंने भक्ति को केवल पूजा-पाठ का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग बताया। शांडिल्य भक्ति सूत्र उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसमें उन्होंने भक्ति के स्वरूप, गुण और महत्व का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति वह है जिसमें मनुष्य बिना किसी स्वार्थ के ईश्वर में पूर्ण प्रेम और समर्पण करे। महर्षि शांडिल्य ने समाज को नैतिकता, सत्य, संयम और कर्तव्य का संदेश दिया। उन्होंने जीवन में धर्म के पालन और आत्म-शुद्धि पर बल दिया। उनके विचारों में आध्यात्मिकता और व्यवहारिक जीवन का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। कथाओं के अनुसार, वे कई यज्ञों और वैदिक शिक्षाओं के आयोजक रहे।...

VISHWAMITRA

  विश्वामित्र  ऋषि विश्वामित्र भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में अत्यंत प्रसिद्ध और पूजनीय ऋषियों में से एक हैं। वे न केवल एक महान तपस्वी थे, बल्कि वेदों के ज्ञाता, नीति-निर्माता और ब्रह्मर्षि के रूप में भी जाने जाते हैं। उनका नाम “विश्वामित्र” का अर्थ है — “विश्व का मित्र” , अर्थात् वह जो संपूर्ण जगत के कल्याण की भावना रखता हो। विश्वामित्र का मूल नाम कौशिक था, और वे प्रारंभ में एक शक्तिशाली राजा थे। एक बार उन्होंने महर्षि वशिष्ठ के आश्रम का दौरा किया, जहाँ उन्होंने वशिष्ठ की कामधेनु गाय की शक्ति देखी। इस गाय से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे प्राप्त करने की इच्छा की, परंतु वशिष्ठ ने मना कर दिया। इस घटना से विश्वामित्र को गहरा आघात पहुँचा और उन्होंने संकल्प लिया कि वे स्वयं तपस्या करके वशिष्ठ के समान, बल्कि उनसे भी महान ब्रह्मर्षि बनेंगे। कई वर्षों की कठिन तपस्या, त्याग और आत्मसंयम के बाद वे देवताओं द्वारा ब्रह्मर्षि की उपाधि से सम्मानित हुए। उनके जीवन में अनेक परीक्षाएँ आईं — जिनमें अप्सरा मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग होना भी शामिल है — परंतु हर बार उन्होंने अपने ...

MENKA

  मेन्‍का  मेन्‍का हिंदू पौराणिक कथाओं में स्वर्ग की सबसे प्रसिद्ध और सुंदर अप्सराओं में से एक हैं। उनका नाम सौंदर्य, कला और आकर्षण का पर्याय माना जाता है। मेनका का उल्लेख रामायण , महाभारत और पुराणों में मिलता है। वे अपने अद्वितीय नृत्य, संगीत और सौंदर्य के लिए जानी जाती थीं। कथाओं के अनुसार, मेनका को भगवान इंद्र ने ऋषि विश्वामित्र की कठोर तपस्या भंग करने के लिए पृथ्वी पर भेजा था। इंद्र को भय था कि यदि विश्वामित्र की तपस्या पूरी हो गई, तो वे देवताओं के समान शक्तिशाली बन जाएंगे। मेनका ने अपने सौंदर्य और नृत्य से ऋषि का मन मोहित कर दिया। दोनों ने कई वर्षों तक साथ जीवन व्यतीत किया और उनके यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम शकुंतला रखा गया। बाद में मेनका उसे वन में छोड़कर स्वर्ग लौट गईं, जहाँ उसे ऋषि कण्व ने पाल-पोसकर बड़ा किया। मेनका की यह कथा प्रेम, मोह और त्याग का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने एक ओर तो अपनी दिव्य मोहकता से देवताओं की आज्ञा का पालन किया, वहीं दूसरी ओर वे मातृत्व और संवेदना की प्रतीक भी बनीं। उनका जीवन यह सिखाता है कि सौंदर्य केवल बाहरी नहीं होता, बल्कि उस...

RAMBHA

  रंभा  रंभा हिंदू पौराणिक कथाओं में स्वर्ग की प्रमुख अप्सराओं में से एक हैं। उन्हें सौंदर्य, कला और मोहकता की प्रतीक माना जाता है। रंभा का उल्लेख रामायण , महाभारत और अनेक पुराणों में मिलता है। उनका नाम “रंभा” का अर्थ है — वह जो सभी को आकर्षित करने वाली या प्रसन्न करने वाली हो। कथाओं के अनुसार, रंभा की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी, जब अमृत, लक्ष्मी और अन्य दिव्य वस्तुएँ निकली थीं। स्वर्गलोक में उन्हें देवताओं की नर्तकी के रूप में विशेष स्थान प्राप्त हुआ। उनके नृत्य और संगीत से स्वर्ग का वातावरण आनंद और सौंदर्य से भर उठता था। रंभा को नृत्यकला में अद्वितीय निपुणता प्राप्त थी, और वे सभी अप्सराओं में सबसे कोमल और मनोहर मानी जाती थीं। रंभा की कथा मेघनाथ और विश्वामित्र से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि इंद्र ने उन्हें ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा था। लेकिन जब ऋषि ने उन्हें शाप दे दिया कि वे पत्थर की मूर्ति बन जाएँ, तो रंभा ने अपनी गलती का पश्चाताप किया। बाद में शाप से मुक्ति मिलने पर उन्होंने फिर से देवलोक में अपना स्थान प्राप्त किया। रंभा केवल सुंदरता क...

URVASHI

  उर्वशी उर्वशी हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अत्यंत प्रसिद्ध और सुंदर अप्सरा हैं। उनका नाम “उर्वशी” का अर्थ है — “जो विस्तृत रूप से व्याप्त हो” या “जिसका सौंदर्य चारों ओर फैला हो।” उर्वशी का उल्लेख ऋग्वेद , महाभारत और कई पुराणों में मिलता है। वे स्वर्गलोक की सर्वश्रेष्ठ अप्सराओं में से एक मानी जाती हैं। कथाओं के अनुसार, उर्वशी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण की तपस्या के दौरान हुई थी। जब इंद्र ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा, तब ऋषियों ने अपनी तपस्या से एक अद्भुत सुंदर नारी की सृष्टि की, जिसका नाम उर्वशी रखा गया। उसकी सुंदरता देखकर स्वयं देवता भी चकित रह गए। उर्वशी स्वर्गलोक में नृत्य और संगीत की अद्वितीय विदुषी मानी जाती थीं। उनके नृत्य से देवताओं का मन प्रसन्न हो जाता था। उन्होंने कई प्रसिद्ध ऋषियों और राजाओं की कथाओं में भूमिका निभाई, जिनमें राजा पुरुरवा की कथा विशेष रूप से प्रसिद्ध है। उर्वशी और पुरुरवा का प्रेम भारतीय साहित्य में अमर प्रेमकथाओं में गिना जाता है। यह कथा दर्शाती है कि उर्वशी केवल सौंदर्य और कला की मूर्ति नहीं थीं, बल्कि भावनाओं,...

TILOTTAMA

  तिलोत्तमा  तिलोत्तमा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अत्यंत सुंदर अप्सरा के रूप में वर्णित हैं। उनका नाम “तिलोत्तमा” दो शब्दों से मिलकर बना है — ‘तिल’ अर्थात् अणु या कण और ‘उत्तमा’ अर्थात् श्रेष्ठ। अर्थात् तिलोत्तमा का अर्थ है — वह जो प्रत्येक कण में उत्तमता या सुंदरता से भरी हो। तिलोत्तमा का उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि जब असुर भाई सुंड और उपसुंड ने अपने बल और घमंड से देवताओं, मनुष्यों तथा ऋषियों को अत्याचारों से पीड़ित कर दिया, तब देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से उनकी मुक्ति का उपाय पूछा। तब ब्रह्मा ने दिव्य शक्तियों से एक अनुपम सुंदर नारी की सृष्टि की, जिसका नाम तिलोत्तमा रखा गया। तिलोत्तमा की सुंदरता अद्वितीय थी। उन्हें देखकर स्वयं देवता भी मोहित हो उठे। ब्रह्मा ने उन्हें सुंड और उपसुंड के पास भेजा। दोनों असुर तिलोत्तमा पर मोहित होकर एक-दूसरे से झगड़ पड़े और आपस में ही युद्ध करते हुए मारे गए। इस प्रकार तिलोत्तमा ने अपनी मोहकता और बुद्धिमत्ता से देवताओं को असुरों से मुक्ति दिलाई। तिलोत्तमा केवल सौंदर्य की प्रतीक नहीं थीं, बल्कि नीति, बुद्धि और योजन...

RUSKIN BOND

  रसकिन बॉन्ड  रसकिन बॉन्ड भारत के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी कहानियों, उपन्यासों और निबंधों के माध्यम से पाठकों के हृदय में विशेष स्थान बनाया है। उनका जन्म 19 मई 1934 को कसौली, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम ऑब्रे बॉन्ड और माता का नाम एडिथ क्लार्क था। रसकिन बॉन्ड ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शिमला में प्राप्त की। बचपन से ही उन्हें प्रकृति और किताबों से गहरा लगाव था। उनका लेखन शैली सरल, संवेदनशील और हृदयस्पर्शी है। वे सामान्य जीवन की घटनाओं को इतनी सुंदरता से लिखते हैं कि पाठक उनसे जुड़ जाता है। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में “द ब्लू अम्ब्रेला” , “रूम ऑन द रूफ” , “द नाइट ट्रेन ऐट देओली” , और “टाइम स्टॉप्स ऐट शामली” प्रमुख हैं। उनकी कई कहानियाँ पहाड़ी जीवन, बचपन की मासूमियत, और मानव संवेदनाओं पर आधारित हैं। रसकिन बॉन्ड अधिकतर समय मसूरी के लैंडौर में रहते हैं, जहाँ की प्राकृतिक सुंदरता उनके लेखन की प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने बच्चों के लिए भी अनेक मनमोहक कहानियाँ लिखी हैं जो मनोरंजक होने के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की सीख देती हैं। उनकी रचनाएँ पाठकों ...

CARLSBERG

  कार्ल्सबर्ग (Carlsberg)  कार्ल्सबर्ग एक प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय बीयर (Beer) कंपनी है, जिसकी स्थापना 1847 में डेनमार्क (Denmark) के कोपेनहेगन शहर में जे.सी. जैकबसेन (J.C. Jacobsen) द्वारा की गई थी। यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी बीयर उत्पादक कंपनियों में से एक मानी जाती है। कार्ल्सबर्ग का नाम जैकबसेन के बेटे “कार्ल” और पहाड़ी “बर्ग” (Berg) के संयोजन से बना है, जहाँ इसकी पहली ब्रेवरी (brewery) स्थापित की गई थी। कार्ल्सबर्ग समूह (Carlsberg Group) आज लगभग 150 से अधिक देशों में अपनी बीयर का निर्यात करता है। इसके प्रमुख उत्पादों में Carlsberg , Tuborg , Holsten , Baltika , और Kronenbourg 1664 जैसे लोकप्रिय ब्रांड शामिल हैं। कंपनी का लोगो — “Carlsberg” शब्द के साथ एक छोटी हरी पत्ती — इसके पर्यावरण और गुणवत्ता के प्रति समर्पण को दर्शाता है। भारत में भी कार्ल्सबर्ग ने अपनी पहचान बनाई है। 2007 में भारतीय बाजार में प्रवेश करने के बाद, इस कंपनी ने अपने विभिन्न उत्पाद जैसे Carlsberg Smooth , Carlsberg Elephant , और Tuborg Strong के माध्यम से युवा पीढ़ी में खास लोकप्रियता हासिल की। इसका...

MORNI HILLS PANCHKULA

  मोरनी हिल्स  मोरनी हिल्स हरियाणा राज्य के पंचकूला जिले में स्थित एक प्रसिद्ध पहाड़ी पर्यटन स्थल है। यह स्थान समुद्र तल से लगभग 1,220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण तथा हरे-भरे जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। मोरनी हिल्स का नाम “मोरनी” गाँव से पड़ा है, जो यहाँ के पास ही स्थित है। यह स्थान शिवालिक पर्वतमाला का हिस्सा है और यहाँ से हिमालय की तलहटी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। मोरनी हिल्स हरियाणा का एकमात्र हिल स्टेशन माना जाता है, इसलिए यह सर्दियों और गर्मियों दोनों मौसमों में पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ की ठंडी हवाएँ, घने पेड़-पौधे और पक्षियों की मधुर चहचहाहट मन को शांति प्रदान करती हैं। मोरनी हिल्स में ट्रैकिंग, बोटिंग और कैंपिंग जैसी रोमांचक गतिविधियाँ भी की जा सकती हैं। यहाँ स्थित झील, जिसे “टीकरी ताल” कहा जाता है, इस जगह की सुंदरता को और भी बढ़ा देती है। झील के आसपास का क्षेत्र पिकनिक और फोटोग्राफी के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा, यहाँ एक पुराना किला भी है जिसे “मोरनी फोर्ट” कहा जाता है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह स्थान प...

PANCHKULA

  पंचकूला  पंचकूला हरियाणा राज्य का एक सुंदर और सुव्यवस्थित शहर है, जो चंडीगढ़ के पास स्थित है। यह शहर शांति, स्वच्छता और हरियाली के लिए प्रसिद्ध है। पंचकूला की स्थापना 1995 में की गई थी और यह हरियाणा के 17वें जिले के रूप में जाना जाता है। इसका नाम “पंचकूला” इसलिए रखा गया क्योंकि यहाँ पाँच नहरों (कूलों) का संगम होता है, जो इस क्षेत्र की सिंचाई और हरियाली का मुख्य स्रोत हैं। पंचकूला की भौगोलिक स्थिति इसे विशेष बनाती है। यह शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसा हुआ है, जिसके कारण यहाँ का वातावरण बहुत मनमोहक और सुखद है। शहर का डिज़ाइन योजनाबद्ध तरीके से किया गया है, जिसमें चौड़ी सड़कें, पार्क, और आधुनिक आवासीय क्षेत्र शामिल हैं। यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में पिंजौर गार्डन, मोरनी हिल्स, ताकरावाली झील और माता मनसा देवी मंदिर शामिल हैं। माता मनसा देवी मंदिर पंचकूला का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। वहीं, मोरनी हिल्स ट्रैकिंग और पिकनिक के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ से हिमालय की पहाड़ियों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। पिंजौर गार्डन अपनी ऐ...

PINJORE GARDEN CHANDIGARH

  पिंजौर गार्डन  पिंजौर गार्डन, जिसे यदविंद्रा गार्डन के नाम से भी जाना जाता है, हरियाणा राज्य के पंचकूला जिले में स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक बाग है। यह सुंदर मुगल शैली में बनाया गया उद्यान चंडीगढ़ से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसकी स्थापना 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान की गई थी। इस गार्डन को फ़िदाई खान ने बनवाया था, जो उस समय के प्रसिद्ध वास्तुकार थे। पिंजौर गार्डन अपनी आकर्षक बनावट, झरनों, फव्वारों और हरे-भरे लॉन के लिए प्रसिद्ध है। बाग में सात स्तरों (टेरस) पर उद्यान बने हुए हैं, जिनमें हर स्तर पर अलग-अलग प्रकार के पौधे, पेड़ और फूल लगाए गए हैं। रात के समय जब फव्वारे रंगीन रोशनी में चमकते हैं, तो यह दृश्य अत्यंत मनमोहक लगता है। इस गार्डन के भीतर एक छोटा सा महल भी स्थित है, जिसे “शील मंदिर” कहा जाता है। इसके अलावा यहां एक मिनी जू (चिड़ियाघर), ऐतिहासिक संरचनाएँ, और बच्चों के मनोरंजन के लिए खेल क्षेत्र भी मौजूद हैं। हर वर्ष यहाँ “पिंजौर हेरिटेज फेस्टिवल” का आयोजन किया जाता है, जिसमें पारंपरिक संगीत, नृत्य और हस्तशिल्प प्रदर्शन होते है...

GRAND CENTRAL TERMINAL

  ग्रैंड सेंट्रल टर्मिनल (Grand Central Terminal)  ग्रैंड सेंट्रल टर्मिनल अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में स्थित एक विश्व प्रसिद्ध रेलवे स्टेशन है, जो अपनी भव्यता, ऐतिहासिक महत्व और वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यह टर्मिनल न्यूयॉर्क के मैनहैटन क्षेत्र के मिडटाउन में स्थित है और इसे दुनिया के सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों में गिना जाता है। यह केवल एक यातायात केंद्र नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटन स्थल भी है। ग्रैंड सेंट्रल टर्मिनल का उद्घाटन वर्ष 1913 में हुआ था। इसका निर्माण न्यूयॉर्क सेंट्रल रेलरोड कंपनी द्वारा करवाया गया था। यह स्टेशन पुराने “ग्रैंड सेंट्रल डिपो” की जगह बनाया गया था, जिसे अधिक आधुनिक और विशाल रूप देने के लिए तोड़ा गया था। इस भवन का डिजाइन “रेड, स्टोन एंड वेब” नामक आर्किटेक्चर फर्म ने तैयार किया था। इसमें ब्यू-आर्ट्स (Beaux-Arts) शैली की वास्तुकला का उपयोग किया गया, जो 20वीं सदी की शुरुआत में बेहद लोकप्रिय थी। इस टर्मिनल में 44 प्लेटफॉर्म और 67 ट्रैक हैं, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन बनता है। यहां से रोज़ाना लाखों लोग सफर करते हैं। यह स्टेशन...

INDRAPRASTHA

  इंद्रप्रस्थ  इंद्रप्रस्थ प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण नगर था, जिसे महाभारत के अनुसार पांडवों की राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था। यह नगर आज के दिल्ली क्षेत्र में स्थित माना जाता है। इंद्रप्रस्थ का अर्थ है “इंद्र का स्थान” या “इंद्र का नगर”। इसे पांडवों ने हस्तिनापुर से निष्कासित होने के बाद बसाया था और इसे अत्यंत भव्य और मजबूत नगर बनाया गया। महाभारत के अनुसार, इंद्रप्रस्थ का निर्माण महान वास्तुकार और विद्वान श्रेष्ठकारी विदुर और अर्जुन के सहयोग से हुआ। नगर की योजना ऐसी बनाई गई थी कि यह सुरक्षा, सुव्यवस्था और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बने। पांडवों ने यहां अपने राज्य की राजधानी बसाई और धर्म, न्याय और समृद्धि का शासन स्थापित किया। इंद्रप्रस्थ का सबसे प्रसिद्ध स्थल महल और राजसभा थी, जहाँ युधिष्ठिर ने राज्य संचालन और न्यायिक कार्य किया। इस नगर में अनेक उद्यान, सरोवर, बाजार और धार्मिक स्थल थे। महाभारत के अनुसार, द्रौपदी का स्वयंवर भी इंद्रप्रस्थ में ही आयोजित हुआ था। यहाँ की भव्यता और सौंदर्य का वर्णन ग्रंथों में विस्तार से किया गया है। इंद्रप्रस्थ का धार्मिक और सांस...

HASTINAPUR

  हस्तिनापुर  हस्तिनापुर भारत के प्राचीन इतिहास और महाभारत काल का अत्यंत प्रसिद्ध नगर है। यह नगर कुरु वंश की राजधानी था और इसे भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। वर्तमान में हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित है। इसका नाम “हस्ती” शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है — “हाथियों का नगर”। कहा जाता है कि इसे राजा हस्तिन ने बसाया था, इसलिए इसका नाम हस्तिनापुर पड़ा। महाभारत के अनुसार, हस्तिनापुर में राजा शांतनु, भीष्म पितामह, धृतराष्ट्र, पांडु और दुर्योधन जैसे महान पात्रों ने शासन किया। यही वह भूमि थी जहाँ से कुरु वंश की गौरवशाली परंपरा की शुरुआत हुई। पांडव और कौरव दोनों का पालन-पोषण यहीं हुआ, और यहीं से महाभारत युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हुई। हस्तिनापुर केवल एक राजनीतिक राजधानी नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और शिक्षा का भी प्रमुख केंद्र था। यहाँ अनेक महर्षियों के आश्रम थे जहाँ वेद, उपनिषद और धर्मशास्त्रों की शिक्षा दी जाती थी। कहा जाता है कि युधिष्ठिर के शासनकाल में हस्तिनापुर स्वर्ग के समान समृद्ध था। आज भी हस्तिनापुर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना...

GOTRA

  गोत्र  गोत्र हिंदू समाज की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण सामाजिक-धार्मिक परंपरा है। संस्कृत में “गोत्र” शब्द का अर्थ होता है – “गायों का समूह” या “वंश परंपरा”। व्यवहारिक रूप में, गोत्र व्यक्ति के कुल, वंश या पूर्वज ऋषि से संबंध को दर्शाता है। हर व्यक्ति का गोत्र उसके पूर्वज ऋषि से जुड़ा होता है, जो उस वंश का मूल प्रवर्तक माना जाता है। हिंदू धर्म में माना जाता है कि मानव जाति की उत्पत्ति सप्त ऋषियों – गौतम, कश्यप, भारद्वाज, वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र और जमदग्नि – से हुई। इन्हीं ऋषियों के वंशजों ने अलग-अलग गोत्रों का निर्माण किया। इसलिए हर गोत्र किसी न किसी ऋषि के नाम से जुड़ा हुआ है, जैसे — कश्यप गोत्र, वशिष्ठ गोत्र, भारद्वाज गोत्र, गौतम गोत्र आदि। गोत्र का सबसे प्रमुख उद्देश्य यह था कि समाज में रक्त-संबंधों की पवित्रता बनी रहे। इसी कारण हिंदू धर्म में समान गोत्र में विवाह करना वर्जित माना गया है, क्योंकि समान गोत्र के लोग एक ही पूर्वज के वंशज माने जाते हैं। इसे “सगोत्र विवाह” कहा जाता है, जो धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से अनुचित माना गया है। गोत्र केवल व्यक्ति की पहचान ही नहीं,...

MAHARSHI DURVASA

  महर्षि दुर्वासा  महर्षि दुर्वासा हिंदू धर्म के प्रसिद्ध और तेजस्वी ऋषि थे, जो अपने कठोर स्वभाव और क्रोध के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। वे महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र थे। दुर्वासा का नाम संस्कृत के शब्द “दुर्वास” से बना है, जिसका अर्थ होता है — “जिसके साथ रहना कठिन हो,” और यह उनके तीव्र स्वभाव का प्रतीक है। महर्षि दुर्वासा का व्यक्तित्व अत्यंत अद्भुत था। वे गहन तपस्वी और शक्तिशाली ऋषि थे, जिनके श्राप और वरदान दोनों का प्रभाव असीम माना जाता था। कहा जाता है कि वे छोटे से अपमान पर भी क्रोधित हो जाते थे, किंतु उनका क्रोध सदैव धर्म की स्थापना और दूसरों को सबक सिखाने के लिए होता था। महर्षि दुर्वासा से जुड़ी कई प्रसिद्ध कथाएँ पुराणों में मिलती हैं। एक कथा के अनुसार, उनके श्राप के कारण भगवान इंद्र का वैभव नष्ट हुआ और समुद्र मंथन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। एक अन्य कथा में, उन्होंने द्रौपदी को आशीर्वाद दिया था कि उनके बर्तन में जब तक अन्न रहेगा, कोई अतिथि भूखा नहीं जाएगा। इसी वरदान ने पांडवों को कठिन परिस्थितियों में बचाया। दुर्वासा ऋषि केवल क्रोधी ही नहीं, बल्कि अत्य...

MAHARSHI PARASHAR

  महर्षि पराशर  महर्षि पराशर हिंदू धर्म के महान ऋषियों में से एक थे। वे प्राचीन वैदिक काल के विख्यात तपस्वी, विद्वान और वेदों के ज्ञाता थे। महर्षि पराशर को विशेष रूप से वेदव्यास के पिता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने आगे चलकर महाभारत की रचना की। पराशर ऋषि का जीवन ज्ञान, तपस्या और करुणा का प्रतीक माना जाता है। महर्षि पराशर का जन्म महर्षि शक्ता के पुत्र के रूप में हुआ था। कहा जाता है कि उनके पिता की मृत्यु दानवों के हाथों हुई थी, जिसके कारण उन्होंने प्रतिशोध की भावना से यज्ञ द्वारा सभी राक्षसों का संहार करने का निश्चय किया। तब महर्षि पुलस्त्य ने उन्हें समझाया कि क्रोध से धर्म की हानि होती है। इसके बाद उन्होंने क्षमा और दया को अपनाया और अपना जीवन ज्ञान के प्रसार में समर्पित कर दिया। महर्षि पराशर ने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें पराशर स्मृति और विष्णु पुराण अत्यंत प्रसिद्ध हैं। विष्णु पुराण में उन्होंने सृष्टि, धर्म, कर्म और भगवान विष्णु की महिमा का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। उनकी शिक्षाएँ वेदांत और आचार दर्शन पर आधारित थीं। महर्षि पराशर ने सत्यवती से विवाह किया, और...

MAHARSHI VYAS

  महर्षि व्यास  महर्षि व्यास हिंदू धर्म के महान ऋषि, ग्रंथकार और वेदों के विभाजक माने जाते हैं। उनका पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन व्यास था, क्योंकि उनका जन्म यमुना नदी के द्वीप पर हुआ था और उनका वर्ण श्याम था। वे महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। महर्षि व्यास को वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि व्यास का भारतीय संस्कृति और साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने चारों वेदों—ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद—को अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया, ताकि उनका अध्ययन और संरक्षण सरल हो सके। इसी कारण उन्हें “वेदव्यास” कहा गया। उन्होंने महाभारत जैसे विशाल ग्रंथ की रचना की, जो विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है। महाभारत केवल युद्ध की कथा नहीं, बल्कि जीवन, धर्म, नीति और कर्म के गहन सिद्धांतों का संग्रह है। इसी ग्रंथ के भीतर भगवद गीता का उपदेश भी आता है, जो मानव जीवन का मार्गदर्शन करने वाला अद्भुत ग्रंथ है। महर्षि व्यास ने पुराणों की रचना का कार्य भी प्रारंभ किया। कहा जाता है कि उन्होंने 18 प्रमुख पुराणों की रचना की, जिनमें भागवत पुराण विशेष रूप से प्रसिद्ध...

GANDHARI

  महाभारत की गांधारी  गांधारी महाभारत की एक प्रमुख और आदर्श महिला पात्र थीं। वे गांधार देश के राजा सुबल की पुत्री और हस्तिनापुर के अंधे राजा धृतराष्ट्र की पत्नी थीं। गांधारी को उनकी महान त्याग, पतिव्रता और धर्मनिष्ठा के लिए जाना जाता है। जब गांधारी को यह पता चला कि उनके होने वाले पति धृतराष्ट्र अंधे हैं, तो उन्होंने स्वयं अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली और जीवनभर अंधकार में रहने का संकल्प लिया। उनका यह निर्णय त्याग और सहानुभूति का प्रतीक था। उन्होंने यह दिखाया कि सच्चा प्रेम केवल सुख-सुविधा में नहीं, बल्कि जीवन के हर कठिन क्षण में साथ निभाने में है। गांधारी ने सौ पुत्रों और एक पुत्री का जन्म दिया, जिनमें ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन था। वे अपने पुत्रों से अत्यधिक स्नेह करती थीं, लेकिन जब वे अधर्म के मार्ग पर चले, तब उन्होंने उन्हें रोकने की भरपूर कोशिश की। उन्होंने कई बार धृतराष्ट्र और दुर्योधन को धर्म का पालन करने की सलाह दी, किंतु किसी ने उनकी बात नहीं मानी। महाभारत के युद्ध में जब उनके सभी पुत्र मारे गए, तो गांधारी अत्यंत दुखी हुईं। उन्होंने श्रीकृष्ण को युद्ध रोकने में असफल रहने...

SHISHUPAL

  महाभारत के शिशुपाल शिशुपाल महाभारत का एक प्रसिद्ध पात्र था, जो चेदि राज्य का राजा था। वह श्रीकृष्ण का मामा का पुत्र था, क्योंकि उसकी माता श्रीकृष्ण की बुआ थीं। शिशुपाल बचपन से ही अहंकारी और क्रोधी स्वभाव का था। उसके जन्म के समय उसकी माता को यह भविष्यवाणी मिली थी कि उसका वध उसी व्यक्ति के हाथों होगा जिसके सामने उसके शरीर के तीन नेत्र और चार भुजाएँ दिखाई देंगी। बाद में जब श्रीकृष्ण उसके दर्शन करने आए, तो वही चिह्न उनके शरीर पर दिखे। तब माता ने विनती की कि श्रीकृष्ण उसे सौ अपराधों तक क्षमा कर दें, और श्रीकृष्ण ने यह वचन स्वीकार कर लिया। शिशुपाल को श्रीकृष्ण से अत्यधिक द्वेष था। वह उन्हें अपना शत्रु मानता था और हर अवसर पर उनका अपमान करता था। जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया, तब सभी राजाओं ने श्रीकृष्ण को “अग्रपूजा” के लिए सर्वोत्तम मानते हुए उनका सम्मान किया। परंतु शिशुपाल ने इसका विरोध किया और सभा में श्रीकृष्ण का अपमान करने लगा। उसने अनेक कटु और अपमानजनक बातें कहीं, पर श्रीकृष्ण धैर्यपूर्वक सुनते रहे। जब शिशुपाल ने अपने सौ अपराध पूरे कर लिए, तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका...

SHAKUNI

  महाभारत के शकुनि  शकुनि महाभारत का एक प्रमुख और विवादास्पद पात्र था। वह गांधार देश का राजकुमार और हस्तिनापुर की रानी गांधारी का भाई था। शकुनि को उसकी चालाकी, राजनीति और षड्यंत्रों के लिए जाना जाता है। उसने महाभारत के युद्ध को भड़काने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। कहा जाता है कि शकुनि अपने परिवार के साथ हस्तिनापुर आया था, जब उसकी बहन गांधारी का विवाह अंधे राजा धृतराष्ट्र से हुआ। इस विवाह से वह अत्यंत अपमानित महसूस करता था और उसने कौरवों के माध्यम से कुरु वंश से बदला लेने का निश्चय किया। शकुनि ने अपनी बुद्धि और चालबाजी से धीरे-धीरे दुर्योधन को प्रभावित किया और उसे पांडवों के प्रति ईर्ष्या और द्वेष से भर दिया। शकुनि जुए का माहिर खिलाड़ी था। उसने ही दुर्योधन को पांडवों को जुए के खेल में फँसाने की सलाह दी थी। उस खेल में शकुनि ने अपने धूर्त चालों से पांडवों को सब कुछ—राज्य, धन, और यहाँ तक कि द्रौपदी—हारने पर मजबूर कर दिया। यह घटना महाभारत युद्ध का मुख्य कारण बनी। शकुनि को अत्यंत बुद्धिमान लेकिन स्वार्थी और प्रतिशोधी व्यक्ति माना गया है। उसने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए धर्म औ...

VIDUR

  महाभारत के विदुर  विदुर महाभारत के एक प्रमुख और बुद्धिमान पात्र थे। वे हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र और पांडु के भाई थे। विदुर का जन्म एक दासी से हुआ था, लेकिन अपनी बुद्धि, नीति और धर्मपरायणता के कारण वे सबके आदर के पात्र बने। उन्हें न्यायप्रिय, सत्यनिष्ठ और धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति माना जाता है। विदुर को महर्षि व्यास का पुत्र कहा गया है। वे हस्तिनापुर दरबार में मंत्री के रूप में कार्य करते थे और राज्य के महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी भूमिका प्रमुख रहती थी। वे हमेशा सत्य और न्याय का पक्ष लेते थे, चाहे वह किसी के भी विरुद्ध क्यों न हो। उन्होंने पांडवों और कौरवों दोनों को समान दृष्टि से देखा, परंतु जब अन्याय हुआ, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से धर्म का साथ दिया। महाभारत में विदुर अपनी विदुर नीति के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसमें उन्होंने जीवन के गहरे सत्य, नैतिकता और राजनीति के सिद्धांत बताए हैं। यह नीति आज भी एक आदर्श ग्रंथ मानी जाती है, जो जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करती है। विदुर ने धृतराष्ट्र को कई बार दुर्योधन की गलत नीतियों से सावधान किया और पांडवों के सा...

SANJAY OF MAHABHARAT

  महाभारत के संजय  संजय महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र थे, जो हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के सारथी और विश्वसनीय सलाहकार थे। वे अपनी बुद्धिमत्ता, सत्यनिष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें “दिव्य दृष्टि” का वरदान दिया था, जिसके माध्यम से वे युद्ध के मैदान में घटित हर घटना को बिना उपस्थित हुए भी देख और सुन सकते थे। महाभारत युद्ध के समय जब धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों और पांडवों के बीच युद्ध होने की सूचना सुनी, तब उन्होंने संजय से युद्ध का पूरा वर्णन करने को कहा। संजय ने दिव्य दृष्टि के माध्यम से कुरुक्षेत्र में चल रहे युद्ध का प्रत्येक दृश्य प्रत्यक्ष देखा और राजा को विस्तार से बताया। उनके द्वारा ही हमें भगवद गीता के उपदेशों की जानकारी मिली, जो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिए थे। संजय का चरित्र सत्य और निष्पक्षता का प्रतीक है। वे जानते थे कि दुर्योधन और उसके भाई अन्याय के मार्ग पर हैं, फिर भी उन्होंने अपने कर्तव्य के अनुसार राजा धृतराष्ट्र की सेवा की और उन्हें सत्य सुनाया। उन्होंने बार-बार राजा को धर्म का पालन करने और युद्ध से बचने की सलाह दी, परंत...

DEVARSHI NARAD

  देवर्षि नारद  देवर्षि नारद हिंदू धर्म के एक प्रसिद्ध ऋषि और देवताओं के दूत माने जाते हैं। उन्हें त्रिलोकी — स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल — का भ्रमण करने वाला एकमात्र ऋषि कहा गया है। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और हमेशा “नारायण-नारायण” का जाप करते रहते थे। नारद मुनि को ज्ञान, संगीत, भक्ति और संवाद का प्रतीक माना जाता है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में नारद मुनि का वर्णन एक ऐसे ऋषि के रूप में मिलता है जो सदैव लोक-कल्याण के लिए कार्य करते थे। वे ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे और उन्हें “देवताओं के संदेशवाहक” कहा गया है। वे देवताओं, असुरों और मनुष्यों के बीच जाकर संवाद स्थापित करते थे और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते थे। नारद मुनि के पास दिव्य वीणा थी, जिससे वे भक्ति संगीत गाते थे। कहा जाता है कि उनके संगीत से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते थे। उन्हें कभी-कभी “कलहप्रिय” भी कहा जाता है, क्योंकि वे अपनी चतुराई और वार्तालाप से घटनाओं को इस प्रकार मोड़ देते थे कि अंततः धर्म की विजय हो और अधर्म का नाश हो। नारद मुनि ने अनेक ग्रंथों की रचना भी की, जिनमें नारद भक्ति सूत्र विशे...