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Showing posts from 2025

RASHTRIYA SWATANTRA PARTY NEPAL

राष्ट्रिय स्वतन्त्र पार्टी (RSP) नेपाल की एक तेजी से उभरती केंद्रीय (centrist) राजनीतिक पार्टी है, जिसकी स्थापना 1 जुलाई 2022 को राबी लामिछाने (Rabi Lamichhane) द्वारा की गई थी और इसे चुनाव आयोग में उसी तारीख को पंजीकृत किया गया। यह पार्टी पारंपरिक दलों के विपरीत नयापन, युवा ऊर्जा और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अपनी पहचान बनाना चाहती है।  RSP का मुख्य लक्ष्य सबै नेपालीलाई समान अवसर, उदार आर्थिक नीतियाँ और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है। पार्टी का सिद्धांत “pluralistic democracy” यानी बहुलवादी लोकतंत्र पर आधारित है, जिसमें हर समुदाय और विचार को समान अधिकार मिलें और लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत बनाया जाए।  स्थापना के तुरंत बाद RSP ने 2022 के संसदीय चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया और नेपाल की चौथी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभरी। � इसके बाद पार्टी ने पारंपरिक बड़े दलों के खिलाफ एक वैकल्पिक राजनीतिक विकल्प के रूप में अपनी जगह बनाई है। पार्टी का चुनाव चिह्न “घंटी (bell)” है, जो इसे आम जनता के बीच पहचान देता है और “अब जान्नेलाई छान्ने” (Select the knowledgeable) जैसे न...

BALEN SHAH

🗞️ 1. नेपाल के पीएम उम्मीदवार बने बालेन शाह काठमांडू के मेयर बालेन शाह को मार्च 2026 के आम चुनाव के लिए प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषित किया गया है।  यह नामांकन राष्ट्रिय स्वतन्त्र पार्टी (RSP) के साथ गठबंधन के तहत हुआ है। 🤝 2. RSP के साथ बड़ा गठबंधन बालेन शाह और RSP ने सात‑बिंदु समझौता पर हस्ताक्षर किया है और साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। इसके तहत अगर RSP चुनाव जीतती है, तो बालेन शाह को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। 📈 3. युवा आंदोलन और जन समर्थन बालेन को Gen Z (युवा) आंदोलन का चेहरा माना जा रहा है — खासकर भ्रष्टाचार और पुरानी राजनीतिक व्यवस्थाओं के खिलाफ।  उनके समर्थन में बड़ी संख्या में युवा मतदाता आ रहे हैं, जो पारंपरिक दलों के खिलाफ बदलाव चाहते हैं।  🕌 4. धर्म को लेकर भ्रम मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा रही कि वे किस धर्म के हैं — हिन्दू या मुस्लिम — लेकिन यह बात कई जगह गलत ढंग से प्रचारित हुई।  📌 संक्षेप में ताज़ा स्थिति बालेन शाह अब केवल मेयर नहीं हैं — वे नेपाल में प्रधानमंत्री के संभावित चेहरा बन चुके हैं।  RSP के साथ गठबंधन ने उनकी भू...

WATERMAN RAJENDRA SINGH

 वाटरमैन राजेंद्र सिंह  राजेंद्र सिंह, जिन्हें “वाटरमैन ऑफ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है, भारत के प्रमुख जल संरक्षण कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् हैं। उनका जन्म 6 अगस्त 1959 को राजस्थान के अलवर जिले में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन को पानी और जल संरक्षण के क्षेत्र में समर्पित कर दिया और सूखे तथा जल संकट से जूझ रहे ग्रामीण इलाकों में स्थायी जल समाधानों की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए। राजेंद्र सिंह ने विशेष रूप से राजस्थान और उत्तर भारत के अन्य जिलों में पारंपरिक जल संचयन पद्धतियों को पुनर्जीवित किया। उन्होंने गाँवों में बांध, तालाब, नालियाँ और चश्मों का जीर्णोद्धार कर, भूजल स्तर बढ़ाने और सिंचाई की समस्या को हल करने में मदद की। उनकी इस पहल से हजारों गाँवों में पानी की समस्या कम हुई और खेती योग्य भूमि का विस्तार हुआ। उनकी संगठन, सहज ईको-फ्रेंडली सोसाइटी, ने ग्रामीण क्षेत्रों में जल प्रबंधन और स्वच्छता के लिए कई परियोजनाएँ चलायीं। राजेंद्र सिंह की रणनीति में स्थानीय समुदाय को शामिल करना प्रमुख था, ताकि जल संरक्षण का कार्य स्थायी और प्रभावशाली हो सके। उनके प्रयासों से लोगों में पा...

KHALIDA ZIA

खालिदा जिया का निधन बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की प्रमुख बेगम खालिदा जिया का आज 30 दिसंबर 2025 को 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वे लंबे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं और अस्पताल में इलाज चल रहा था।     उनके पार्टी के बयान के अनुसार, खालिदा जिया ने आज सुबह लगभग 6 बजे अंतिम सांस ली। उनके स्वास्थ्य में लंबे समय से समस्या थी, जिसमें लीवर सिरोसिस, गठिया, मधुमेह व हृदय‑छाती की जटिलताएँ शामिल थीं, और वे नवंबर से अस्पताल में रह रही थीं।  राजनीतिक और क़ानूनी पृष्ठभूमि खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं और BNP की अध्यक्ष भी थीं। उन्होंने देश की राजनीति में दशकों तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने लंबे राजनीतिक करियर के दौरान कई संघर्ष देखे।  पिछले कुछ वर्षों में उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ती चली गई थी। दिसंबर के आरंभ में उनके डॉक्टर ने उन्हें “अत्यंत गंभीर” बताया था और वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था।  राजनीतिक प्रभाव और उत्तराधिकार उनकी मौत बांग्लादेश की राजनीति में एक युग के अंत का प्रतीक मानी ज...

GUPT GODAVARI CHITRAKOOT

 गुप्त गोदावरी, चित्रकूट  गुप्त गोदावरी चित्रकूट का एक अत्यंत प्रसिद्ध, पवित्र और रहस्यमय तीर्थ स्थल है। यह स्थान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा के पास, सतना ज़िले में स्थित है। प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक मान्यताओं के कारण गुप्त गोदावरी श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। गुप्त गोदावरी वास्तव में दो प्राकृतिक गुफाओं से मिलकर बनी है, जिनके भीतर जल की धारा निरंतर प्रवाहित होती रहती है। इन गुफाओं में एक संकीर्ण मार्ग है, जिसमें घुटनों तक पानी भरा रहता है। यह जल अत्यंत स्वच्छ और शीतल माना जाता है। बरसात के मौसम में यहाँ जलस्तर बढ़ जाता है, जिससे गुफाओं का दृश्य और भी रोमांचक हो जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, वनवास काल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने कुछ समय तक इस स्थान पर विश्राम किया था। कहा जाता है कि इसी गुफा में भगवान राम ने गुप्त रूप से दरबार लगाया था, इसलिए इसे “गुप्त गोदावरी” कहा जाता है। गुफा के भीतर चट्टानों पर दो शिलाएँ हैं, जिन्हें राम और लक्ष्मण की चौकी या सिंहासन के रूप में पूजा जाता है। गुप्त गोदावरी ...

LAXMI TEMPLE JHANSI

 लक्ष्मी मंदिर, झांसी  लक्ष्मी मंदिर झांसी शहर का एक प्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह मंदिर झांसी किले के समीप स्थित है और स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यह मंदिर माता लक्ष्मी को समर्पित है, जिन्हें हिंदू धर्म में धन, वैभव और समृद्धि की देवी माना जाता है। लक्ष्मी मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ माना जाता है। यद्यपि इसके निर्माण काल को लेकर अलग-अलग मत हैं, फिर भी यह मंदिर झांसी की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मंदिर की वास्तुकला सरल होने के बावजूद आकर्षक है। इसमें पारंपरिक उत्तर भारतीय शैली की झलक देखने को मिलती है। गर्भगृह में माता लक्ष्मी की सुंदर प्रतिमा स्थापित है, जिसकी श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है। यह मंदिर विशेष रूप से दीपावली के अवसर पर अत्यंत भव्य रूप धारण कर लेता है। इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और मंदिर को दीपों व फूलों से सजाया जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। नवरात्रि और अन्य धार्मिक ...

MANIKARNIKA GHAT

 मणिकर्णिका घाट  मणिकर्णिका घाट वाराणसी का सबसे प्राचीन, प्रसिद्ध और पवित्र घाट माना जाता है। यह घाट गंगा नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख केंद्र है। मान्यता है कि मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार होने से आत्मा को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। इसी कारण इसे मोक्षदायिनी भूमि कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने यहाँ तपस्या के समय अपने चक्र से एक कुंड का निर्माण किया था। इसी स्थान पर भगवान शिव की कान की मणि गिर गई थी, इसलिए इस घाट का नाम “मणिकर्णिका” पड़ा। यह स्थान भगवान शिव और माता पार्वती से भी जुड़ा हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव यहाँ मृत आत्माओं को तारक मंत्र का उपदेश देते हैं। मणिकर्णिका घाट का सबसे प्रमुख दृश्य यहाँ जलती चिताएँ हैं। दिन-रात यहाँ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया चलती रहती है। यह दृश्य जीवन की नश्वरता और मृत्यु की सच्चाई का बोध कराता है। यहाँ अमीर-गरीब, जाति-धर्म का कोई भेद नहीं होता; सभी को समान रूप से अग्नि के हवाले किया जाता है। घाट के पास मणिकर्णिका कुंड स्थित है, जिसका धार्मिक महत्व अत्...

BUNDELI ART

 बुंदेली कला  बुंदेली कला बुंदेलखंड क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बुंदेलखंड क्षेत्र मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में फैला हुआ है। यहाँ की कला में स्थानीय जीवन, प्रकृति, वीरता, भक्ति और लोकपरंपराओं की सजीव झलक देखने को मिलती है। बुंदेली कला सरल होते हुए भी भावनाओं से भरपूर और जनजीवन से गहराई से जुड़ी हुई है। बुंदेली कला का विकास मुख्यतः बुंदेला राजाओं के संरक्षण में हुआ। ओरछा, झांसी, दतिया और पन्ना जैसे क्षेत्रों में बने किले, महल और मंदिर बुंदेली स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ओरछा का रामराजा मंदिर, जहाँ भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है, बुंदेली धार्मिक कला की विशिष्ट पहचान है। किलों और महलों की भित्तियों पर बने भित्तिचित्रों में रामायण, महाभारत और लोक कथाओं के दृश्य चित्रित हैं। बुंदेली चित्रकला में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता था। लाल, पीला, हरा और नीला रंग प्रमुख रूप से उपयोग में लाए जाते थे। चित्रों में मानव आकृतियाँ सरल रेखाओं से बनाई जाती थीं, जिनमें भावों की स्पष्ट अभिव्यक्ति होती थी। लोकजीवन, त्योहार, नृत...

CONTINENTAL CUISINE

 कॉन्टिनेंटल व्यंजन  कॉन्टिनेंटल व्यंजन यूरोप और पश्चिमी देशों की पाक परंपराओं का सामूहिक रूप है। इसमें मुख्य रूप से फ्रांस, इटली, स्पेन, जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों की भोजन शैली शामिल मानी जाती है। भारत में “कॉन्टिनेंटल फूड” शब्द का प्रयोग उन व्यंजनों के लिए किया जाता है, जो पारंपरिक भारतीय भोजन से अलग, हल्के मसालों और विशिष्ट पकाने की तकनीकों पर आधारित होते हैं। कॉन्टिनेंटल व्यंजनों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें मसालों का प्रयोग सीमित मात्रा में किया जाता है। स्वाद बढ़ाने के लिए जड़ी-बूटियाँ जैसे थाइम, रोज़मेरी, बेसिल और ऑरेगैनो का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा मक्खन, चीज़, क्रीम, जैतून का तेल और वाइन सॉस का प्रयोग भी आम है। भोजन की प्रस्तुति पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिससे व्यंजन देखने में आकर्षक लगें। इस भोजन शैली में सूप, सलाद, ब्रेड, पास्ता, पिज़्ज़ा, स्टेक और बेक्ड डिशेज़ प्रमुख हैं। टमाटर सूप, क्रीम ऑफ मशरूम सूप, सीज़र सलाद, गार्लिक ब्रेड, पास्ता अल्फ्रेडो और ग्रिल्ड चिकन जैसे व्यंजन कॉन्टिनेंटल खाने के लोकप्रिय उदाहरण हैं। मिठाइयों में केक, पेस्ट्री, पुडिंग...

MUSHROOM SOUP

 मशरूम सूप  मशरूम सूप एक स्वादिष्ट, पौष्टिक और लोकप्रिय व्यंजन है, जो दुनिया भर में पसंद किया जाता है। यह सूप विशेष रूप से ठंड के मौसम में शरीर को गर्म रखने और ऊर्जा प्रदान करने के लिए उपयोगी माना जाता है। मशरूम सूप को कॉन्टिनेंटल व्यंजनों में प्रमुख स्थान प्राप्त है, लेकिन आज यह भारतीय रसोई में भी खूब प्रचलित हो चुका है। मशरूम पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, विटामिन डी, आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए मशरूम सूप स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। यह वजन नियंत्रित करने, पाचन सुधारने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है। मशरूम सूप बनाने के लिए ताज़े मशरूम, प्याज, लहसुन, मक्खन, दूध या क्रीम, नमक और काली मिर्च का प्रयोग किया जाता है। सबसे पहले मशरूम को साफ कर छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। फिर कढ़ाही या पैन में मक्खन गर्म करके प्याज और लहसुन को हल्का भूनते हैं। इसके बाद मशरूम डालकर अच्छी तरह पकाया जाता है। मिश्रण में पानी या वेजिटेबल स्टॉक डालकर उबालते हैं और अंत में दूध या क्रीम मिलाकर सूप क...

KATNI

 कटनी – परिचय  कटनी मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख नगर और जिला मुख्यालय है। यह शहर राज्य के पूर्वी भाग में स्थित है और अपनी भौगोलिक स्थिति, खनिज संपदा तथा रेल जंक्शन के कारण विशेष पहचान रखता है। कटनी को “संगमरमर नगरी” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहाँ उच्च गुणवत्ता का संगमरमर बड़ी मात्रा में पाया जाता है। कटनी का ऐतिहासिक महत्व भी उल्लेखनीय है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र चेदि, कलचुरी और बाद में बुंदेलखंड की सांस्कृतिक धारा से जुड़ा रहा। यहाँ आसपास कई प्राचीन मंदिर, पुरातात्विक स्थल और ऐतिहासिक अवशेष मिलते हैं, जो इसके गौरवशाली अतीत की कहानी कहते हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी कटनी ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। आर्थिक दृष्टि से कटनी मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। यहाँ संगमरमर उद्योग बड़े पैमाने पर विकसित है, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है। इसके अलावा सीमेंट, खनन और लघु उद्योग भी यहाँ की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं। कटनी रेल जंक्शन उत्तर भारत और दक्षिण भारत को जोड़ने वाला एक प्रमुख केंद्र है, जिससे व्यापार और यातायात को बढ़ावा मिलता है। कटनी क...

ALHA

 आल्हा काव्य  आल्हा उत्तर भारत की एक प्रसिद्ध वीरगाथा और लोककाव्य परंपरा है, जो विशेष रूप से बुंदेलखंड क्षेत्र में अत्यंत लोकप्रिय है। यह काव्य महोबा के वीर योद्धा आल्हा और उनके भाई ऊदल के शौर्य, बलिदान और वीरता का वर्णन करता है। आल्हा काव्य केवल साहित्य नहीं, बल्कि बुंदेलखंड की सांस्कृतिक पहचान और वीर परंपरा का प्रतीक है। आल्हा काव्य की रचना का श्रेय लोककवि जगनिक को दिया जाता है। यह काव्य मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता आया है। आल्हा गीतों को विशेष लय और ताल में गाया जाता है, जिसे “आल्हा गायन” कहा जाता है। सावन और भादो के महीनों में गाँवों में आल्हा गायन का विशेष आयोजन होता है, जहाँ लोग रात भर इस वीरगाथा को सुनते हैं। इस काव्य में महोबा के चंदेल शासक परमाल देव के दरबार, दिल्ली के पृथ्वीराज चौहान और अन्य राजाओं के साथ हुए युद्धों का वर्णन मिलता है। आल्हा और ऊदल को अदम्य साहस, निष्ठा और देशभक्ति का प्रतीक माना जाता है। इन कथाओं में युद्ध, मित्रता, विश्वासघात और वीर मृत्यु जैसे प्रसंग अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। आल्हा काव्य की भाषा सरल, ओजपूर्ण और...

CABLE CAR

 केबल कार  केबल कार एक आधुनिक परिवहन साधन है, जिसका उपयोग पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में आवागमन के लिए किया जाता है। इसमें लोहे की मजबूत केबल के सहारे हवा में लटकते केबिन चलते हैं, जिनमें लोग बैठकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचते हैं। यह परिवहन प्रणाली न केवल सुविधाजनक है, बल्कि समय की बचत करने वाली और रोमांचक भी होती है। केबल कार का उपयोग मुख्य रूप से पहाड़ी पर्यटन स्थलों, धार्मिक स्थानों और दुर्गम इलाकों में किया जाता है। जहाँ सड़क या रेल मार्ग बनाना कठिन होता है, वहाँ केबल कार एक प्रभावी समाधान प्रदान करती है। भारत में वैष्णो देवी, गुलमर्ग, मसूरी, मनाली और दार्जिलिंग जैसे पर्यटन स्थलों पर केबल कार सेवा उपलब्ध है, जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन चुकी है। केबल कार प्रणाली में दो स्टेशन होते हैं—एक निचला और एक ऊँचा। इनके बीच मजबूत स्टील केबल लगाई जाती है, जिस पर केबिन निरंतर गति से चलते रहते हैं। आधुनिक केबल कारें पूरी तरह सुरक्षित मानी जाती हैं, क्योंकि इनमें स्वचालित ब्रेक, संतुलन प्रणाली और नियमित तकनीकी जाँच की व्यवस्था होती है। पर्यटन के दृष्टिकोण से केबल कार...

SONAGIRI VILLAGE

 सोनागिरि गाँव  सोनागिरि गाँव मध्य प्रदेश के दतिया ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह स्थान विशेष रूप से जैन धर्म के प्रमुख तीर्थों में गिना जाता है। पहाड़ियों पर बसे इस गाँव की पहचान सैकड़ों सफेद जैन मंदिरों से होती है, जो दूर से देखने पर अत्यंत मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करते हैं। शांत वातावरण और आध्यात्मिक ऊर्जा के कारण सोनागिरि श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है। सोनागिरि का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। मान्यता के अनुसार यहाँ चंद्रप्रभु भगवान सहित अनेक जैन तीर्थंकरों ने तपस्या की थी और कई जैन मुनियों ने इसी भूमि पर मोक्ष प्राप्त किया। इसी कारण सोनागिरि को मोक्षदायिनी भूमि माना जाता है। यहाँ मुख्य मंदिर भगवान चंद्रप्रभु को समर्पित है, जो जैन श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। सोनागिरि की पहाड़ियों पर लगभग सौ से अधिक जैन मंदिर स्थित हैं, जिनमें से कई प्राचीन हैं। ये मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। सफेद पत्थरों से बने मंदिर सूर्य के प्रकाश में चमकते हैं और दूर-दूर से दिखाई देते हैं। मंदिरों की सजावट सरल होने के बावजूद अत्यंत ...

SONAGIRI JAIN HILLS TEMPLE

 सोनागिरि जैन पहाड़ी मंदिर  सोनागिरि जैन पहाड़ी मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया ज़िले में स्थित जैन धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर समूह सोनागिरि गाँव की पहाड़ियों पर स्थित है और अपनी आध्यात्मिक महत्ता, शांत वातावरण तथा सफेद पत्थरों से बने भव्य मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। दूर से देखने पर ये मंदिर पहाड़ी पर बिखरे मोतियों के समान प्रतीत होते हैं, जो श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार सोनागिरि वह पवित्र भूमि है जहाँ अनेक जैन मुनियों ने कठोर तपस्या की और मोक्ष प्राप्त किया। कहा जाता है कि यहाँ भगवान चंद्रप्रभु सहित कई तीर्थंकरों से जुड़ी कथाएँ प्रचलित हैं। इसी कारण सोनागिरि को जैन धर्म में मोक्षस्थल के रूप में विशेष सम्मान प्राप्त है। सोनागिरि पहाड़ी पर लगभग सौ से अधिक जैन मंदिर स्थित हैं, जिनमें मुख्य मंदिर भगवान चंद्रप्रभु को समर्पित है। यह मंदिर अपनी ऊँचाई, सादगी और आध्यात्मिक वातावरण के लिए जाना जाता है। मंदिरों की वास्तुकला अत्यंत सरल होते हुए भी आकर्षक है, जो जैन धर्म के त्याग, संयम और अहिंसा के सिद्धांतों को दर्शाती है। मंदिर परिसर तक पह...

RAJA BIR SINGH BUNDELA

 राजा बीर सिंह बुंदेला  राजा बीर सिंह बुंदेला बुंदेलखंड के एक प्रसिद्ध शासक और वीर योद्धा थे। वे ओरछा राज्य के बुंदेला वंश के प्रमुख शासकों में गिने जाते हैं। उनका शासनकाल मुगलकालीन भारत के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। बीर सिंह बुंदेला अपनी साहसिक नीति, राजनीतिक दूरदर्शिता और स्थापत्य कला के संरक्षण के लिए जाने जाते हैं। राजा बीर सिंह बुंदेला का जन्म बुंदेला राजपरिवार में हुआ था। वे राजा राम शाह के उत्तराधिकारी थे और सोलहवीं शताब्दी के अंत तथा सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में ओरछा के शासक बने। प्रारंभिक काल में उन्होंने मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध संघर्ष किया, लेकिन बाद में परिस्थितियों के अनुसार उन्होंने जहांगीर का समर्थन किया। ऐतिहासिक रूप से राजा बीर सिंह बुंदेला का नाम अबुल फ़ज़ल की हत्या से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि उन्होंने जहांगीर के निर्देश पर अकबर के प्रमुख इतिहासकार अबुल फ़ज़ल की हत्या करवाई थी। इस घटना के बाद जहांगीर के सत्ता में आने पर बीर सिंह बुंदेला को विशेष सम्मान मिला और ओरछा राज्य को और अधिक सुदृढ़ किया गया। राजा बीर सिंह बुंदेला एक कुशल प्रशासक भी थे...

HAR BOLA

 हरबोला  हरबोला उत्तर भारत की एक प्राचीन और लोकप्रिय लोककला परंपरा है, जो मुख्य रूप से बुंदेलखंड, अवध और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित रही है। हरबोला शब्द का अर्थ है—“हर बात बोलने वाला” या “समाचार सुनाने वाला व्यक्ति”। यह परंपरा उस समय विकसित हुई जब संचार के आधुनिक साधन उपलब्ध नहीं थे और गाँव-गाँव समाचार पहुँचाने का कार्य लोककलाकारों के माध्यम से किया जाता था। हरबोला कलाकार ढोलक या नगाड़े के साथ गाँवों में जाकर गीतात्मक शैली में संदेश सुनाते थे। इन गीतों में जन्म, विवाह, मृत्यु, त्योहारों की सूचना, राजा या ज़मींदार के आदेश, सामाजिक घटनाएँ और नैतिक उपदेश शामिल होते थे। हरबोला केवल सूचना देने का माध्यम नहीं था, बल्कि यह लोकसंगीत और काव्य का सुंदर संगम भी था। हरबोला गायन की भाषा सरल, ओजपूर्ण और स्थानीय बोली से जुड़ी होती थी। इसमें हास्य, व्यंग्य, करुणा और वीरता—सभी भावों की अभिव्यक्ति मिलती है। कलाकार अपनी गायकी और अभिनय से श्रोताओं को आकर्षित करते थे। ग्रामीण समाज में हरबोला का विशेष सम्मान होता था, क्योंकि वही समाज को जोड़ने और जागरूक करने का कार्य करता था। समय के साथ ...

PODCAST AND INTERVIEW

 पॉडकास्ट और इंटरव्यू में अंतर (Difference between Podcast and Interview) 1. परिभाषा: पॉडकास्ट (Podcast): पॉडकास्ट एक ऑडियो (कभी-कभी वीडियो) कार्यक्रम होता है जिसे इंटरनेट पर रिलीज़ किया जाता है। यह एक श्रृंखला (series) की तरह हो सकता है जिसमें किसी विषय पर नियमित रूप से एपिसोड आते हैं। इंटरव्यू (Interview): इंटरव्यू एक बातचीत होती है जिसमें एक व्यक्ति (इंटरव्यूअर) किसी दूसरे व्यक्ति (इंटरव्यूee) से प्रश्न पूछता है ताकि उसके विचार, अनुभव या जानकारी प्राप्त की जा सके। 2. स्वरूप (Format): पॉडकास्ट: इसमें बातचीत, कहानी, चर्चा, संगीत या विविध विषयों की सामग्री शामिल हो सकती है। यह अकेले होस्ट द्वारा भी हो सकता है या कई लोगों के बीच चर्चा भी हो सकती है। इंटरव्यू: इसमें केवल प्रश्न-उत्तर का सत्र होता है। यह किसी भी प्लेटफॉर्म पर हो सकता है — टीवी, रेडियो, ब्लॉग, पॉडकास्ट आदि। 3. उद्देश्य: पॉडकास्ट: किसी विषय पर विस्तृत जानकारी देना, विचार साझा करना, मनोरंजन या शिक्षा प्रदान करना। इंटरव्यू: विशेष व्यक्ति की राय, अनुभव, विशेषज्ञता या जानकारी प्राप्त करना और दूसरों तक पहुँचाना। 4. समय और शै...

SANJEEV SANYAL

 संजीव सान्याल – परिचय  संजिव सान्याल भारत के जाने-माने अर्थशास्त्री, इतिहासकार, लेखक और नीति-विश्लेषक हैं। वे अपनी मौलिक सोच, तार्किक विश्लेषण और भारतीय इतिहास व अर्थव्यवस्था पर नवीन दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध हैं। वर्तमान समय में वे भारत सरकार से जुड़े विभिन्न नीति मंचों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं और देश के बौद्धिक विमर्श में सक्रिय योगदान देते हैं। संजिव सान्याल का जन्म कोलकाता में हुआ। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा भारत में प्राप्त की और आगे की पढ़ाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की। अर्थशास्त्र में गहरी समझ के कारण उन्होंने वैश्विक वित्तीय संस्थानों में कार्य किया। वे सिटीग्रुप जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में वरिष्ठ अर्थशास्त्री रहे, जहाँ उन्होंने उभरती अर्थव्यवस्थाओं, वैश्विक वित्त और भारत की आर्थिक संभावनाओं पर कार्य किया। नीति क्षेत्र में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। वे प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रह चुके हैं। इस भूमिका में उन्होंने आर्थिक सुधारों, शहरीकरण, बुनियादी ढांचे और दीर्घकालिक विकास रणनीतियों पर विचार प्रस्तुत किए। उनकी सलाह व्यावहारिक, आंकड़...

MUNDGOD MATH

 मुंडगोड मठ (दक्षिण भारत का तिब्बती बौद्ध केंद्र) मुंडगोड मठ कर्नाटक राज्य के उत्तर कन्नड़ ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध तिब्बती बौद्ध धार्मिक एवं शैक्षणिक केंद्र है। यह मठ भारत में बसे तिब्बती शरणार्थियों के प्रमुख आध्यात्मिक केंद्रों में से एक माना जाता है। वर्ष 1960 के दशक में तिब्बत से आए शरणार्थी भिक्षुओं द्वारा इसकी स्थापना की गई थी। दलाई लामा के मार्गदर्शन में यह क्षेत्र तिब्बती बौद्ध संस्कृति के संरक्षण और प्रचार का महत्वपूर्ण केंद्र बना। मुंडगोड क्षेत्र में मुख्यतः दो बड़े मठ हैं—ड्रेपुंग मठ और सेरा मठ। ये दोनों मठ बौद्ध दर्शन, तर्कशास्त्र, ध्यान और नैतिक शिक्षा के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां हजारों भिक्षु अध्ययन करते हैं और कठोर अनुशासन के साथ बौद्ध ग्रंथों का गहन अध्ययन करते हैं। मठों में दी जाने वाली शिक्षा परंपरागत गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित है। मुंडगोड मठ की वास्तुकला तिब्बती शैली की उत्कृष्ट मिसाल है। रंगीन प्रार्थना ध्वज, विशाल बुद्ध प्रतिमाएं, सुंदर भित्ति चित्र और शांत वातावरण यहां आने वाले श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं। यहां नियमित रूप से पूजा-प...

SHANKAR SHARMA

 शंकर शर्मा भारत के प्रसिद्ध शेयर बाज़ार विशेषज्ञ, निवेश रणनीतिकार और उद्यमी के रूप में जाने जाते हैं। वे भारतीय पूंजी बाज़ार में अपने बेबाक विश्लेषण, दीर्घकालिक निवेश दृष्टिकोण और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरी पकड़ के लिए पहचाने जाते हैं। शंकर शर्मा ने वित्तीय जगत में कई दशकों का अनुभव अर्जित किया है और निवेशकों के बीच उनकी राय को गंभीरता से सुना जाता है। शंकर शर्मा फर्स्ट ग्लोबल (First Global) नामक निवेश सलाह और ब्रोकिंग संस्था के संस्थापक हैं। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय शेयर बाज़ारों पर शोध, निवेश सलाह और रणनीतिक मार्गदर्शन उपलब्ध कराया। वे मानते हैं कि शेयर बाज़ार में सफलता के लिए धैर्य, अनुशासन और सही समय पर निर्णय लेना अत्यंत आवश्यक है। उनका जोर शॉर्ट-टर्म सट्टेबाज़ी की बजाय लॉन्ग-टर्म वैल्यू इन्वेस्टिंग पर रहता है। मीडिया में भी शंकर शर्मा की सक्रिय भूमिका रही है। वे कई समाचार चैनलों और आर्थिक मंचों पर शेयर बाज़ार, अर्थव्यवस्था, नीतिगत फैसलों और वैश्विक रुझानों पर अपनी स्पष्ट राय रखते रहे हैं। उनकी विश्लेषण शैली सरल, तार्किक और तथ्यपरक मानी जाती ह...

BHAGAMUNDA ORISSA

 भगमुण्डा (Bhagamunda) भगमुण्डा ओडिशा राज्य का एक प्रमुख ग्रामीण क्षेत्र/विकासखंड है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, कृषि परंपरा और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण परिवेश वाला है, जहाँ लोगों का जीवन सरल, परिश्रमी और प्रकृति से जुड़ा हुआ है। यहाँ की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है और अधिकांश जनसंख्या खेती तथा उससे जुड़े कार्यों पर निर्भर करती है। भगमुण्डा क्षेत्र में धान की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। इसके अलावा सब्ज़ियाँ, दालें और तिलहन फसलें भी उगाई जाती हैं। मानसून के समय खेत हरियाली से भर जाते हैं, जिससे पूरा क्षेत्र अत्यंत सुंदर दिखाई देता है। सिंचाई के लिए पारंपरिक तालाबों, नहरों और वर्षा जल पर निर्भरता देखी जाती है। पशुपालन भी यहाँ के ग्रामीण जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। सांस्कृतिक दृष्टि से भगमुण्डा समृद्ध माना जाता है। यहाँ ओडिशा की लोक परंपराएँ, त्योहार और रीति-रिवाज आज भी जीवंत हैं। रथयात्रा, दुर्गा पूजा, मकर संक्रांति और नुआखाई जैसे पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। लोकनृत्य, लोकगीत और पारंपरिक वेशभूषा इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पह...

TASAR

 तसर (Tasar)  तसर, जिसे तुस्सर रेशम (Tasar Silk) भी कहा जाता है, भारत में पाए जाने वाले प्रमुख प्राकृतिक रेशमों में से एक है। यह रेशम विशेष रूप से वन क्षेत्रों में पाले जाने वाले रेशम के कीड़ों से प्राप्त होता है। तसर रेशम का उत्पादन मुख्यतः झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में किया जाता है। यह रेशम अपनी प्राकृतिक सुनहरी आभा और मजबूत बनावट के लिए प्रसिद्ध है। तसर रेशम का कीड़ा (Antheraea mylitta) मुख्य रूप से अर्जुन, असन और साल जैसे वन वृक्षों की पत्तियाँ खाता है। इन वृक्षों पर खुले वातावरण में कीट पालन किया जाता है, जिसे “वन्य या अर्ध-वन्य रेशम उत्पादन” कहा जाता है। यही कारण है कि तसर रेशम का रंग और बनावट प्राकृतिक और थोड़ा खुरदुरा होता है, जो इसे अन्य रेशमों से अलग पहचान देता है। तसर रेशम से बने वस्त्र हल्के, टिकाऊ और आकर्षक होते हैं। इससे साड़ियाँ, दुपट्टे, स्टोल, कुर्ते और सजावटी कपड़े तैयार किए जाते हैं। आदिवासी और ग्रामीण समुदायों में तसर रेशम से बने परिधान पारंपरिक अवसरों और त्योहारों में विशेष रूप से पहने जाते हैं। इसकी प्राकृ...

MULBERRY

 शहतूत (Mulberry)  शहतूत, जिसे अंग्रेज़ी में Mulberry कहा जाता है, एक उपयोगी फलदार वृक्ष है जो भारत सहित कई देशों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Morus है। शहतूत का पेड़ मध्यम आकार का होता है और इसके पत्ते, फल तथा लकड़ी सभी किसी न किसी रूप में उपयोगी माने जाते हैं। भारत में यह विशेष रूप से रेशम उद्योग से जुड़ा हुआ है, क्योंकि रेशम के कीड़े शहतूत के पत्तों पर ही पलते हैं। शहतूत के पत्ते पोषण से भरपूर होते हैं और रेशम के कीड़ों के लिए मुख्य भोजन हैं। अच्छी गुणवत्ता का रेशम प्राप्त करने के लिए स्वस्थ शहतूत के पौधों का होना आवश्यक होता है। इसी कारण कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में शहतूत की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। शहतूत के पौधे कम समय में बढ़ जाते हैं और इनसे बार-बार पत्तियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। शहतूत का फल मीठा और रसीला होता है। यह सफेद, लाल और काले रंग का पाया जाता है। फल में विटामिन C, विटामिन K, आयरन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में होते हैं। शहतूत का सेवन पाचन को बेहतर बनाता है, रक्त की कमी दूर करने में ...

COCOON

 कोकून (Cocoon) कोकून (Cocoon) एक प्राकृतिक संरचना है, जिसे कुछ कीट अपने जीवन चक्र के दौरान स्वयं बनाते हैं। यह मुख्य रूप से रेशम के कीड़ों, पतंगों और तितलियों के जीवन में दिखाई देता है। कोकून का निर्माण लार्वा अवस्था के बाद होता है, जब कीट प्यूपा अवस्था में प्रवेश करता है। इस अवस्था में कीट अपने चारों ओर रेशमी धागों से एक सुरक्षात्मक आवरण बना लेता है, जिसे कोकून कहा जाता है। कोकून का मुख्य उद्देश्य कीट को बाहरी खतरों से सुरक्षा प्रदान करना है। यह आवरण कीट को ठंड, गर्मी, वर्षा, परजीवी और शत्रुओं से बचाता है। कोकून के अंदर कीट शांत अवस्था में रहता है और उसके शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। इसी प्रक्रिया को कायांतरण या मेटामॉर्फोसिस कहते हैं, जिसके दौरान लार्वा धीरे-धीरे पूर्ण विकसित तितली या पतंगा बन जाता है। रेशम उद्योग में कोकून का विशेष महत्व है। रेशम का कीड़ा अपने कोकून को बहुत महीन और मजबूत रेशमी धागे से बनाता है। एक कोकून से सैकड़ों मीटर लंबा रेशमी धागा प्राप्त किया जा सकता है। इन्हीं धागों से रेशम का निर्माण किया जाता है, जो वस्त्र उद्योग में अत्यंत मूल्यवान माना जाता ...

BUNDELI ART

 बुंदेली कला  बुंदेली कला भारत के मध्य भाग में स्थित बुंदेलखंड क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण अंग है। बुंदेलखंड क्षेत्र मुख्यतः मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है। यहाँ की कला पर राजपूत बुंदेला शासकों, लोक परंपराओं और प्राकृतिक परिवेश का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। बुंदेली कला में स्थापत्य, चित्रकला, मूर्तिकला, लोकचित्र, हस्तशिल्प और लोकनृत्य सभी शामिल हैं। बुंदेली स्थापत्य कला अपनी भव्यता और सादगी के लिए प्रसिद्ध है। ओरछा, झांसी, दतिया और कालिंजर जैसे स्थानों पर स्थित किले, महल और मंदिर इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ओरछा का राम राजा मंदिर, जहाँ भगवान राम की राजा के रूप में पूजा होती है, बुंदेली स्थापत्य की अनूठी पहचान है। ऊँचे शिखर, मजबूत दीवारें और संतुलित संरचना इस शैली की विशेषता हैं। बुंदेली चित्रकला में धार्मिक, ऐतिहासिक और लोक कथाओं का चित्रण मिलता है। इसमें रामायण, महाभारत, कृष्ण लीला और वीर गाथाओं को प्रमुखता से दर्शाया जाता है। चित्रों में गहरे लाल, पीले, नीले और हरे रंगों का प्रयोग होता है, जो भावनाओं को सजीव बनाते हैं। सरल रेखा...

MUSHROOM SOUP

 मशरूम सूप  मशरूम सूप एक स्वादिष्ट, पौष्टिक और हल्का व्यंजन है, जिसे दुनिया भर में पसंद किया जाता है। यह सूप विशेष रूप से ठंड के मौसम में या स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। मशरूम सूप न केवल स्वाद में बेहतरीन होता है, बल्कि इसमें मौजूद पोषक तत्व शरीर को ऊर्जा और रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करते हैं। मशरूम सूप बनाने के लिए सामान्यतः बटन मशरूम या किसी अन्य खाद्य मशरूम का उपयोग किया जाता है। सबसे पहले मशरूम को अच्छी तरह साफ कर पतले टुकड़ों में काट लिया जाता है। इसके बाद कढ़ाही या पैन में थोड़ा सा मक्खन या तेल गर्म कर उसमें बारीक कटा प्याज और लहसुन भूनते हैं। जब प्याज हल्का सुनहरा हो जाए, तब उसमें कटे हुए मशरूम डालकर धीमी आंच पर पकाया जाता है। मशरूम पकने पर अपना पानी छोड़ता है, जिससे सूप का प्राकृतिक स्वाद और गहराई बढ़ जाती है। इसके बाद इसमें नमक, काली मिर्च और आवश्यकता अनुसार सब्ज़ी या चिकन स्टॉक मिलाया जाता है। कुछ लोग सूप को गाढ़ा बनाने के लिए इसमें दूध या क्रीम भी मिलाते हैं, जिससे इसका स्वाद और भी समृद्ध हो जाता है। सभी सामग्री को अच्छी तरह ...

Mushroom patropada

 मशरूम पत्रपोडा (Mushroom Patropada)  मशरूम पत्रपोडा ओडिशा का एक पारंपरिक और स्वादिष्ट व्यंजन है, जो विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में लोकप्रिय है। “पत्रपोडा” शब्द का अर्थ होता है—पत्तों में लपेटकर आग या कोयले पर पकाया गया भोजन। इस विधि में भोजन को साल, केला या हल्दी के पत्तों में लपेटकर धीमी आंच पर भुना जाता है, जिससे उसका प्राकृतिक स्वाद और सुगंध बनी रहती है। मशरूम पत्रपोडा इसी पारंपरिक पाक शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस व्यंजन को बनाने के लिए ताजे मशरूम का उपयोग किया जाता है, जिन्हें अच्छी तरह साफ करके छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। इसके बाद इसमें सरसों का पेस्ट, लहसुन, हरी मिर्च, नमक, हल्दी और कभी-कभी प्याज मिलाया जाता है। ओडिशा में सरसों का प्रयोग अधिक होता है, जो इस व्यंजन को विशिष्ट तीखापन और सुगंध प्रदान करता है। तैयार मसाले में मशरूम को अच्छी तरह मिलाकर पत्तों पर रखा जाता है और फिर पत्तों को मोड़कर धागे से बांध दिया जाता है। इसके बाद इन बंधे हुए पत्तों को अंगारों या तवे पर रखा जाता है। धीमी आंच पर पकने से मशरूम अपने रस में ही पकता है और पत्तों की खु...

AGMARK

 एगमार्क (AGMARK)  एगमार्क (AGMARK) भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला एक आधिकारिक गुणवत्ता प्रमाणन चिह्न है, जिसका उपयोग कृषि एवं खाद्य उत्पादों की शुद्धता और मानक गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। “AGMARK” शब्द “Agricultural Marketing” से बना है। इसकी शुरुआत वर्ष 1937 में “कृषि उत्पाद (ग्रेडिंग एवं मार्किंग) अधिनियम, 1937” के अंतर्गत की गई थी। वर्तमान में इसका संचालन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन “विपणन एवं निरीक्षण निदेशालय (DMI)” द्वारा किया जाता है। एगमार्क का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को मिलावट-रहित, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण कृषि उत्पाद उपलब्ध कराना है। आज के समय में खाद्य पदार्थों में मिलावट एक गंभीर समस्या है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। एगमार्क चिह्न यह विश्वास दिलाता है कि संबंधित उत्पाद सरकारी मानकों के अनुसार जांचा-परखा गया है और वह निर्धारित गुणवत्ता पर खरा उतरता है। एगमार्क प्रमाणन के अंतर्गत गेहूं, चावल, दालें, खाद्य तेल, घी, मसाले, शहद, फल-सब्ज़ियाँ आदि अनेक कृषि उत्पाद शामिल हैं। किसी भी उत्पाद को एगमार्क चिह्न देने से ...

MAIHAR

 मैहर भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर है। यह सतना जिले में स्थित है और अपनी प्राचीन शिव और देवी दुर्गा मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। मैहर का नाम धार्मिक किंवदंतियों और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। इसे बुंदेलखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का केंद्र माना जाता है। मैहर का सबसे प्रमुख स्थल मैहर देवी मंदिर है, जो मां शाकंभरी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है और यहाँ पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 1,063 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में मां दुर्गा की पूजा करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। प्रत्येक वर्ष नवरात्रि में यहाँ भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है। इतिहास के दृष्टिकोण से मैहर का उल्लेख विभिन्न कालों में मिलता है। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही शासकों और राजाओं का केंद्र रहा है। यहाँ के किले और ऐतिहासिक इमारतें प्राचीन वास्तुकला की उत्कृष्टता का परिचायक हैं। इसके अलावा मैहर का संबंध संगीत और संस्कृति से भी जुड़ा हुआ है। यहाँ के पंडित सितार वादक...

MAHOBA

 महोबा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है। यह जिला मुख्यालय बुंदेलखंड के प्राचीन और गौरवशाली इतिहास का केंद्र माना जाता है। महोबा का इतिहास चंदेल वंश से जुड़ा हुआ है, जो कला, संस्कृति और स्थापत्य के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ गए। महोबा को कभी “चंदेलों की नगरी” भी कहा जाता था। महोबा का ऐतिहासिक महत्व इसके प्राचीन किलों, मंदिरों और अन्य स्मारकों के कारण है। यहाँ का सबसे प्रसिद्ध स्थल कली मंदिर और जटाशंकर मंदिर हैं, जो स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा महोबा में गुप्त गोदावरी और धोरा खाई जैसी प्राकृतिक और धार्मिक स्थल भी स्थित हैं। चंदेल राजाओं ने महोबा को एक मजबूत किला-राजधानी के रूप में विकसित किया था। उनका मकसद इस क्षेत्र की सुरक्षा और प्रशासनिक नियंत्रण सुनिश्चित करना था। महोबा की सांस्कृतिक विरासत भी अद्वितीय है। यहाँ के लोकगीत, लोकनृत्य और परंपराएं बुंदेलखंड की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती हैं। “महाकवि कुमारनास” जैसे कवि भी महोबा के इतिहास और संस्कृति से जुड़े हुए थे। महोबा में कला, संग...

GULAM GAUS KHAN CHAURAHA

 रानी महल, झांसी उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में स्थित एक प्रमुख ऐतिहासिक स्मारक है। यह महल झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की शाही निवासस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। रानी महल न केवल बुंदेलखंड के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणादायी स्मृतियों से भी जुड़ा हुआ है। रानी महल का निर्माण 18वीं शताब्दी में झांसी के नेवालकर (मराठा) शासकों द्वारा कराया गया था। बाद में यह महल रानी लक्ष्मीबाई का निवास बना। यहीं से रानी ने झांसी के प्रशासन और राजकीय कार्यों का संचालन किया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह महल ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा, जब रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध वीरतापूर्वक संघर्ष किया। वास्तुकला की दृष्टि से रानी महल अत्यंत आकर्षक है। यह बहुमंजिला भवन बुंदेली और मराठा शैली का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है। महल की दीवारों और छतों पर रंगीन चित्रकारी और पुष्प आकृतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें धार्मिक, पौराणिक और प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण है। महल के भीतर बने कक्ष, गलियारों और झरोखों से उस समय की शाही जीवनशैली की झलक मिलती है। वर...

RANI MAHAL JHANSI

 रानी महल, झांसी उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में स्थित एक प्रमुख ऐतिहासिक स्मारक है। यह महल झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की शाही निवासस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। रानी महल न केवल बुंदेलखंड के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणादायी स्मृतियों से भी जुड़ा हुआ है। रानी महल का निर्माण 18वीं शताब्दी में झांसी के नेवालकर (मराठा) शासकों द्वारा कराया गया था। बाद में यह महल रानी लक्ष्मीबाई का निवास बना। यहीं से रानी ने झांसी के प्रशासन और राजकीय कार्यों का संचालन किया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह महल ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा, जब रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध वीरतापूर्वक संघर्ष किया। वास्तुकला की दृष्टि से रानी महल अत्यंत आकर्षक है। यह बहुमंजिला भवन बुंदेली और मराठा शैली का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है। महल की दीवारों और छतों पर रंगीन चित्रकारी और पुष्प आकृतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें धार्मिक, पौराणिक और प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण है। महल के भीतर बने कक्ष, गलियारों और झरोखों से उस समय की शाही जीवनशैली की झलक मिलती है। वर...

SURYA TEMPLE MAHOBA

 सूर्य मंदिर, महोबा बुंदेलखंड क्षेत्र का एक प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है, जो उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में स्थित है। यह मंदिर चंदेल वंश के शासनकाल में निर्मित माना जाता है और अपनी अद्वितीय स्थापत्य कला तथा धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। सूर्य उपासना को समर्पित यह मंदिर भारतीय प्राचीन संस्कृति और आस्था का प्रतीक है। सूर्य मंदिर का निर्माण लगभग 9वीं–10वीं शताब्दी में चंदेल शासकों द्वारा कराया गया था। चंदेल शासक कला, स्थापत्य और धर्म के बड़े संरक्षक थे। इस मंदिर का निर्माण सूर्य देव को प्रसन्न करने और राज्य की समृद्धि व कल्याण की कामना के उद्देश्य से किया गया। प्राचीन काल में सूर्य पूजा का विशेष महत्व था और यह मंदिर उसी परंपरा का सजीव उदाहरण है। मंदिर की वास्तुकला अत्यंत आकर्षक है। यह मंदिर पत्थरों से निर्मित है और इसकी दीवारों पर सुंदर नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर के गर्भगृह में सूर्य देव की प्रतिमा स्थापित थी, हालाँकि समय के साथ वह क्षतिग्रस्त हो गई। मंदिर की संरचना इस प्रकार बनाई गई है कि प्रातःकालीन सूर्य किरणें सीधे गर्भगृह में प्रवेश करती थीं, जो सूर्य उपासना की व...

DOCTRINE OF LAPSE

 डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स (Doctrine of Lapse) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की एक महत्वपूर्ण राजनीतिक नीति थी, जिसे भारत में 19वीं शताब्दी के मध्य लागू किया गया। इस नीति को लागू करने का श्रेय तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी को दिया जाता है। इसका उद्देश्य भारतीय रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाकर उसका विस्तार करना था। डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के अनुसार यदि किसी भारतीय राजा की मृत्यु बिना जैविक पुरुष उत्तराधिकारी के हो जाती थी, तो उसकी रियासत ब्रिटिश शासन में मिला ली जाती थी। इस नीति के अंतर्गत दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता नहीं दी जाती थी, जबकि भारतीय परंपरा में दत्तक पुत्र को पूरा अधिकार प्राप्त होता था। इस प्रकार यह नीति भारतीय सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के विरुद्ध थी। इस नीति के माध्यम से अंग्रेजों ने कई प्रमुख रियासतों पर अधिकार कर लिया। सतारा (1848), संभलपुर, जैतपुर, बघाट, उदयपुर (छत्तीसगढ़), झांसी (1854) और नागपुर (1854) जैसी रियासतें इसी नीति के तहत अंग्रेजी शासन में मिला ली गईं। विशेष रूप से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को इस नीति से अत्यंत पीड़ा हुई, क्योंकि उनके दत्त...

KALINJAR FORT

 कालिंजर किला भारत के मध्य भाग में स्थित एक प्राचीन और ऐतिहासिक दुर्ग है। यह किला उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बाँदा जिले के अंतर्गत विन्ध्याचल पर्वतमाला की एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण कालिंजर किला सदियों तक अभेद्य माना जाता रहा है। यह किला न केवल सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है। कालिंजर किले का इतिहास अत्यंत गौरवशाली है। माना जाता है कि इसका निर्माण चंदेल शासकों के काल में हुआ था। यह किला कई राजवंशों के उत्थान और पतन का साक्षी रहा है। चंदेलों के बाद इस पर दिल्ली सल्तनत, मुग़ल और अंततः मराठों का अधिकार रहा। प्रसिद्ध इतिहासकारों के अनुसार, महमूद ग़ज़नवी ने भी इस किले पर आक्रमण किया था, हालाँकि वह इसे पूर्ण रूप से जीत नहीं सका। बाद में शेरशाह सूरी के आक्रमण के दौरान यहाँ गंभीर युद्ध हुआ, जिसमें शेरशाह सूरी घायल हुआ था। कालिंजर किले की वास्तुकला अद्भुत है। किले के भीतर कई भव्य द्वार, जलाशय, महल और मंदिर स्थित हैं। यहाँ स्थित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जहाँ शिवलिंग प...

GODI MEDIA

 गोदी मीडिया शब्द का प्रयोग भारत में उन मीडिया संस्थानों या पत्रकारिता के उस हिस्से के लिए किया जाता है, जिस पर यह आरोप लगाया जाता है कि वह सत्ता के बहुत अधिक निकट होकर काम करता है। इस शब्द का आशय यह है कि ऐसा मीडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के बजाय सरकार या सत्तारूढ़ दल के पक्ष में खबरें प्रस्तुत करता है। “गोदी” शब्द प्रतीकात्मक रूप से यह दर्शाता है कि मीडिया सत्ता की गोद में बैठा हुआ है और उससे जुड़े सवालों को उठाने के बजाय उसकी नीतियों का समर्थन करता है। गोदी मीडिया की सबसे बड़ी विशेषता यह मानी जाती है कि वह महत्वपूर्ण जनसमस्याओं जैसे बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और किसानों की स्थिति पर गंभीर चर्चा कम करता है। इसके स्थान पर वह राजनीतिक बयानबाज़ी, भावनात्मक मुद्दों, राष्ट्रवाद, धर्म या सनसनीखेज खबरों को अधिक महत्व देता है। इससे जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटक जाता है और लोकतांत्रिक विमर्श कमजोर पड़ता है। आलोचकों का मानना है कि गोदी मीडिया सत्ता से जुड़े विज्ञापनों, आर्थिक दबावों और राजनीतिक समीकरणों के कारण निष्पक्षता खो बैठता है। परिणामस्वरूप पत्रकारिता का मूल ...

HAVELI RESTAURANT JHANSI

 Haveli Restaurant, Jhansi हवेली रेस्टॉरेंट, झांसी झांसी के सिविल लाइन्स / जीवनशाह तिराहा क्षेत्र में स्थित एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय भोजन स्थल है। यह एक भारतीय शाकाहारी (Vegetarian) रेस्टॉरेंट है जहाँ मुख्य रूप से उत्तर भारतीय व्यंजन परोसे जाते हैं, और यह परिवार, दोस्तों या सामान्य डाइनिंग के लिए उपयुक्त माना जाता है।  यह रेस्टॉरेंट सुबह 11 बजे से रात 11 बजे तक खुला रहता है, और यहाँ खाने की कीमतें अपेक्षाकृत किफायती हैं (लगभग ₹200–₹400 प्रति व्यक्ति)। � हवेली में शुद्ध शाकाहारी भोजन मिलता है, जिसे स्थानीय ग्राहकों और पर्यटकों दोनों द्वारा पसंद किया जाता है।  हवेली रेस्टॉरेंट खासतौर पर अपनी थाली (Thali) के लिए जाना जाता है। यहाँ का “हवेली स्पेशल थाली” और “हवेली मिनी थाली” ग्राहकों में लोकप्रिय विकल्प हैं, जिनमें दाल, सब्जी, रोटी, चावल, रायता आदि शामिल होते हैं। � इसके अलावा, आप यहाँ कढ़ी-चावल, चोले-चावल, दाल-चावल, पुलाव, रायता, और ठंडा पेय जैसी चीज़ें भी ले सकते हैं ग्राहकों के अनुभव विविध रहे हैं। कई लोगों ने यहाँ के भोजन का स्वाद अच्छा और गुणवत्ता को बेहतर बताया है और सेव...

VISHNU BHATT GODSE

 विष्णु भट्ट गोडसे  विष्णु भट्ट गोडसे उन्नीसवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध मराठी लेखक, यात्री और इतिहासकार थे। वे विशेष रूप से अपनी पुस्तक “माझा प्रवास” के लिए जाने जाते हैं, जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष विवरण प्रस्तुत करती है। उनका जन्म महाराष्ट्र में एक परंपरागत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। संस्कृत, मराठी और धार्मिक ग्रंथों का उन्हें अच्छा ज्ञान था, जिसके कारण उनकी भाषा में विद्वत्ता और स्पष्टता दिखाई देती है। विष्णु भट्ट गोडसे 1857 में एक धार्मिक यात्रा के उद्देश्य से उत्तर भारत आए थे। इसी दौरान वे कानपुर, झांसी, दिल्ली और अन्य क्षेत्रों में पहुँचे, जहाँ उन्होंने 1857 के विद्रोह की घटनाओं को बहुत निकट से देखा। उस समय भारत में अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध व्यापक असंतोष फैल चुका था। गोडसे ने न केवल युद्ध और हिंसा की घटनाओं का वर्णन किया, बल्कि आम जनता की पीड़ा, भय और आशाओं को भी अपनी रचनाओं में स्थान दिया। उनकी प्रसिद्ध कृति “माझा प्रवास” में रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब और अन्य क्रांतिकारियों का उल्लेख मिलता है। यह पुस्तक इसलिए विशेष मान...

DAMODAR RAO CHAPEKAR

 दामोदर राव चापेकर – लगभग 300 शब्द दामोदर राव चापेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आरंभिक क्रांतिकारियों में से एक थे। उनका जन्म 24 जून 1869 को महाराष्ट्र के पुणे जिले में हुआ था। वे चापेकर बंधुओं—दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव—में सबसे बड़े थे। देशभक्ति, आत्मसम्मान और विदेशी शासन के प्रति विरोध की भावना उनके जीवन का मूल आधार थी। दामोदर राव का पालन-पोषण धार्मिक और देशप्रेमी वातावरण में हुआ। उन्होंने कम उम्र में ही भारत पर अंग्रेज़ी शासन की दमनकारी नीतियों को समझ लिया था। उस समय पुणे में प्लेग महामारी फैली हुई थी और अंग्रेज़ अधिकारी रैंड (W.C. Rand) द्वारा अपनाए गए कठोर और अपमानजनक उपायों से जनता में भारी आक्रोश था। भारतीयों के घरों की तलाशी, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया जा रहा था। इन अत्याचारों से व्यथित होकर दामोदर राव चापेकर ने अपने भाइयों के साथ मिलकर अंग्रेज़ी अत्याचार के विरुद्ध सशस्त्र प्रतिरोध का मार्ग चुना। 22 जून 1897 को पुणे में क्वीन विक्टोरिया की हीरक जयंती के अवसर पर दामोदर राव और उनके भाई बालकृष्ण ने प्लेग कमिश्नर रैंड और लेफ्टिनेंट आयर्...

JOHN LANG

 जॉन लैंग (John Lang)  जॉन लैंग उन्नीसवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ पत्रकार, लेखक और नाटककार थे, जिन्होंने भारत में रहते हुए ब्रिटिश शासन की नीतियों की खुलकर आलोचना की। उनका जन्म 1816 में इंग्लैंड में हुआ था। वे उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति थे और साहित्य तथा पत्रकारिता में गहरी रुचि रखते थे। बाद में वे भारत आए और यहीं से उन्होंने अपने विचारों को निर्भीक रूप से अभिव्यक्त किया। भारत में रहते हुए जॉन लैंग ने देखा कि ब्रिटिश नीलहे किसानों और भारतीय कृषकों का किस प्रकार शोषण कर रहे थे। नील की खेती के लिए किसानों पर जबरन दबाव डाला जाता था, जिससे उन्हें आर्थिक और सामाजिक नुकसान उठाना पड़ता था। जॉन लैंग ने इस अन्याय के विरुद्ध अपनी कलम उठाई और अंग्रेज़ी भाषा के अख़बारों में लेख लिखकर नील प्रथा की कड़ी आलोचना की। वे उन शुरुआती यूरोपीय पत्रकारों में से थे, जिन्होंने भारतीय किसानों के पक्ष में आवाज़ उठाई। जॉन लैंग का मानना था कि शासन का उद्देश्य जनता का कल्याण होना चाहिए, न कि उसका शोषण। उनके लेखों में ब्रिटिश अधिकारियों की नीतियों पर तीखा व्यंग्य और तार्किक आलोचना देखने को मिलती है...

BHIMKUND

 भीमकुंड  भीमकुंड मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध प्राकृतिक और पौराणिक स्थल है। यह स्थान विशेष रूप से अपनी गहरी जलराशि, अद्भुत रंग परिवर्तन और धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है। भीमकुंड विंध्य पर्वत श्रेणी के घने जंगलों के बीच स्थित है और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहाँ का शांत वातावरण पर्यटकों और श्रद्धालुओं दोनों को आकर्षित करता है। भीमकुंड के बारे में प्रचलित मान्यता है कि इसका संबंध महाभारत के वीर पात्र भीम से है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान पांडव इस क्षेत्र में आए थे। उस समय द्रौपदी को प्यास लगने पर भीम ने अपनी गदा से धरती पर प्रहार किया, जिससे यह जलकुंड प्रकट हुआ। तभी से इसका नाम भीमकुंड पड़ा। स्थानीय लोग इस कुंड को पवित्र मानते हैं और विशेष अवसरों पर यहाँ पूजा-अर्चना करते हैं। भीमकुंड की एक अनोखी विशेषता इसका पानी है, जो मौसम और प्रकाश के अनुसार नीले, हरे और कभी-कभी गहरे काले रंग का दिखाई देता है। इसकी गहराई आज तक पूरी तरह मापी नहीं जा सकी है, जिससे इसे रहस्यमय माना जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह कुंड प्राकृतिक चट्टानों के बीच बना एक जलस्र...

JAHANGIR PALACE ORCHHA

 जहाँगीर महल, ओरछा  जहाँगीर महल मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक नगर ओरछा में स्थित एक भव्य स्मारक है। यह महल बुंदेलखंड की समृद्ध स्थापत्य परंपरा और मुगल–राजपूत शैली के सुंदर समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। इसका निर्माण सन् 1605 ई. में बुंदेला राजा वीर सिंह देव ने मुगल सम्राट जहाँगीर के स्वागत के लिए करवाया था। कहा जाता है कि जहाँगीर जब आगरा से बंगाल जाते समय ओरछा आए थे, तब उनके सम्मान में यह महल बनवाया गया। जहाँगीर महल तीन मंज़िला विशाल संरचना है, जो चारों ओर से मजबूत प्राचीरों से घिरी हुई है। महल के प्रवेश द्वार पर भव्य तोरण और ऊँचे बुर्ज इसकी शान बढ़ाते हैं। इसके भीतर चौड़े आँगन, सुंदर गलियारें, झरोखे और छत पर बने गुम्बद दर्शकों को आकर्षित करते हैं। महल की छत से बेतवा नदी, ओरछा का किला परिसर और आसपास का प्राकृतिक दृश्य अत्यंत मनमोहक दिखाई देता है। इस महल की वास्तुकला में मुगल प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जैसे मेहराबदार द्वार, सुसज्जित बालकनियाँ और संतुलित अनुपात। साथ ही, इसमें राजपूत शैली के तत्व भी मौजूद हैं, जिनमें मजबूत निर्माण, सजावटी छतरियाँ और ऊँचे बुर्ज प्रमुख ...

RAHUL SANSKRITYAYAN

 राहुल संस्कृतियायन – भारतीय संस्कृति और साहित्य के महान विद्वान राहुल संस्कृतियायन (1893–1988) भारतीय इतिहास, भाषा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र के एक महान विद्वान, लेखक और इतिहासकार थे। उनका असली नाम ज्ञानचंद्र श्रीवास्तव था, लेकिन वे अपने साहित्यिक और विद्वान योगदान के कारण ‘राहुल संस्कृतियायन’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्हें भारत में हिंदी और संस्कृत साहित्य के प्रचारक, इतिहासकार और संस्कृति संरक्षक के रूप में याद किया जाता है। राहुल संस्कृतियायन ने अपनी शिक्षा और जीवन के दौरान देश-विदेश की यात्रा की। उन्होंने बौद्ध साहित्य, प्राचीन भारतीय ग्रंथ और मध्यकालीन इतिहास का गहन अध्ययन किया। उनके शोध और अनुवाद कार्यों ने भारतीय संस्कृति और इतिहास को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। संस्कृत, प्राकृत, पाली और हिंदी में उनकी पकड़ अद्वितीय थी। वे यात्रा व्रत के लेखक भी माने जाते हैं। उन्होंने भारत, नेपाल, तिब्बत और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों की यात्राएँ की और वहां की संस्कृति, कला और जीवनशैली का विश्लेषण किया। उनके यात्रा संस्मरण न केवल ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत करते हैं, बल्कि सामाजिक और सां...

ADAM GONDAVI

 अदम गोंडवी – हिंदी साहित्य के जनकवि अदम गोंडवी भारतीय हिंदी/अवधी के प्रसिद्ध कवि और शायर थे, जिनका असली नाम रामनाथ सिंह था। वे 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के अट्टा परसपुर गाँव में जन्मे थे और उन्होंने अपनी रचनात्मक लेखनी से समाज के पिछड़े, दलित तथा गरीब वर्गों की पीड़ा को अभिव्यक्त किया। गोंडवी का जीवन सरल था, लेकिन उनकी कविता में गहराई, सामाजिक चेतना और कटु सत्य का संयोजन मिलता है।  अदम गोंडवी की कविताएँ और ग़ज़लें समाज की सच्चाई को बिना किसी मोह-माया के सामने लाती हैं। उनके शब्दों में गरीबों की भूख, शोषण, भ्रष्टाचार, जातिगत भेदभाव और राजनीतिक बेईमानी की तीखी आलोचना मिली है। उन्होंने शायरी में प्रेम, चांद-तारे या सौंदर्य की बजाय समाज के असहाय लोगों के दर्द और संघर्ष को प्रमुखता दी। इसी वजह से उन्हें जनजन के कवि के रूप में याद किया जाता है।  उनकी प्रमुख काव्यकृतियों में धरती की सतह पर और समय से मुठभेड़ शामिल हैं, जिनमें गाँव, खेत-खलिहान, मजदूर, भूमिहीनों और सामान्य जनता की जिंदगियों का सच्चा चित्र मिला है। उनकी कुछ मशहूर रचनाओं में सौ में सत्तर आदमी फिल...

GONU JHA

 गोनू झा – मिथिला के बुद्धिमान लोकनायक  गोनू झा मिथिला की लोककथाओं में एक अत्यंत प्रसिद्ध और चतुर पात्र हैं, जिन्हें अक्सर “बिहार के बीरबल” कहा जाता है। यह उपाधि इसलिए दी जाती है क्योंकि गोनू झा अपनी तेज बुद्धि, हाज़िरजवाबी और व्यंग्यात्मक जवाबों के लिए जाने जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे बादशाह अकबर के दरबार में बीरबल की प्रसिद्धि थी।  इतिहास और लोककथाओं के अनुसार गोनू झा 13वीं–14वीं सदी में मिथिला (आधुनिक बिहार के दरभंगा जिले) के भरवाड़ा गाँव से थे। वे राजा के दरबार में एक विदूषक, सलाहकार और बुद्धिमान पात्र के रूप में कार्यरत थे। गोनू झा की कहानियाँ मुख्यतः उनकी चतुराई और बुद्धि से सम्बन्धित हैं, जिनमें वे कठिन समस्याओं को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से हल करते हैं।  उनकी कहानियाँ सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनमें सामाजिक न्याय, लोकनीति और जीवन के गहरे अर्थ भी छुपे हैं। उदाहरण के लिए एक प्रसिद्ध किस्सा है जिसमें वे न्यायिक समस्या को अपनी चालाकी से हल करते हैं और सच्चाई सामने लाते हैं। इस तरह की कथाएँ आज भी मिथिला में गाँव-गाँव, घर-घर सुनाई जाती हैं।  गोन...

BHIKHARI THAKUR

 भिखारी ठाकुर – भोजपुरी साहित्य के संत कवि भिखारी ठाकुर (1887–1971) भोजपुरी भाषा के महान साहित्यकार, गीतकार, नाटककार और समाज सुधारक थे। उन्हें "भोजपुरी के शेक्सपीयर" और "भिखारी ठाकुर की लोकधारा" के नाम से जाना जाता है। भिखारी ठाकुर का जन्म बिहार के बिहार शेरगंज, सासाराम के पास हुआ था। उनका जीवन सरल था, लेकिन उनके विचार और साहित्य समाज और संस्कृति के लिए अत्यंत मूल्यवान हैं। भिखारी ठाकुर ने मुख्य रूप से भोजपुरी भाषा में नाटक, कविता और गीत रचे। उनके साहित्य का मुख्य उद्देश्य समाज की व्यथा और आम जनता के संघर्षों को प्रस्तुत करना था। उन्होंने अपने रचनाओं के माध्यम से जाति, गरीबी, महिला सशक्तिकरण और प्रवासन जैसी सामाजिक समस्याओं पर प्रकाश डाला। भिखारी ठाकुर के नाटक अत्यंत लोकप्रिय हुए। उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक विदेशी नारी था, जिसमें प्रवासी मजदूरों की कठिनाइयों को प्रभावशाली रूप में दिखाया गया। इसके अलावा भिखारी ठाकुर के गीत, बिदेसिया, गंगा सरस्वती, और किसान समर जैसी कृतियों ने भोजपुरी साहित्य को नई पहचान दी। उनके गीत और नाटक जीवन्तता, हास्य, व्यंग्य और गहन सामाजिक संदेशो...

RAJASTHANI

 राजस्थानी भाषा – परिचय राजस्थानी भारत की एक प्राचीन और समृद्ध भाषाई परंपरा वाली भाषा है, जो मुख्य रूप से राजस्थान राज्य में बोली जाती है। इसके अलावा गुजरात, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी राजस्थानी भाषा प्रचलित है। राजस्थानी भाषा को अनेक बोलियाँ और उपभाषाएँ हैं, जिनमें मारवाड़ी, मेवाड़ी, मांडवी, ढूंढाड़ी, हाड़ौती और थारी प्रमुख हैं। राजस्थानी भाषा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। यह प्राचीन अपभ्रंश और संस्कृत से विकसित हुई है। मध्यकाल में राजस्थान के राजाओं और शासकों के दरबारों में राजस्थानी साहित्य और काव्य का विशेष महत्व था। इस भाषा ने वीरता, प्रेम, भक्ति और लोककथाओं का समृद्ध साहित्य उत्पन्न किया। प्राचीन काल से ही राजस्थानी भाषा का प्रयोग लोकजीवन, गीत-संगीत, महाकाव्य और प्रशासनिक दस्तावेज़ों में होता रहा है। भाषिक दृष्टि से राजस्थानी भाषा में संस्कृत और प्राकृत का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसकी शब्दावली सरल, मधुर और भावपूर्ण है। राजस्थानी में उच्चारण विशिष्ट और स्पष्ट है, जो इसे अन्य हिंदी उपभाषाओं से अलग पहचान देता है। व्याकरण की दृष्टि से य...

HARIYANVI

 हरियाणवी भाषा – परिचय हरियाणवी हिंदी की एक प्रमुख उपभाषा है, जो मुख्य रूप से हरियाणा राज्य तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है। इसे बांगड़ू भी कहा जाता है। हरियाणवी भाषा की पहचान उसकी स्पष्ट, तेज़ और सशक्त अभिव्यक्ति शैली से होती है, जो इस क्षेत्र के लोगों के स्वभाव और संस्कृति को प्रतिबिंबित करती है। हरियाणवी भाषा का इतिहास प्राचीन है और इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से माना जाता है। यह भाषा लंबे समय तक ग्रामीण और लोकजीवन की भाषा रही है। आधुनिक काल में भी हरियाणवी का प्रयोग दैनिक बोलचाल में व्यापक रूप से होता है, यद्यपि औपचारिक कार्यों में मानक हिंदी का प्रयोग अधिक देखा जाता है। भाषिक दृष्टि से हरियाणवी की शब्दावली सरल और प्रभावशाली है। इसमें संस्कृत, प्राकृत, फ़ारसी और अरबी शब्दों का मिश्रण मिलता है। हरियाणवी के उच्चारण में कठोरता और स्पष्टता दिखाई देती है, जिससे यह भाषा सीधी और सटीक प्रतीत होती है। व्याकरणिक संरचना हिंदी से मिलती-जुलती होते हुए भी इसमें कई स्थानीय रूप और मुहावरे पाए जाते हैं। साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में हरियाणवी ...

KURMALI

 कुर्माली भाषा – परिचय कुर्माली भारत की एक प्रमुख लोकभाषा है, जो मुख्य रूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। यह भाषा विशेष रूप से कुर्मी समुदाय से जुड़ी मानी जाती है, हालांकि इसे अन्य समुदायों के लोग भी बोलते हैं। कुर्माली भाषा छोटानागपुर पठार क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कुर्माली भाषा का इतिहास प्राचीन माना जाता है। विद्वानों के अनुसार इसका विकास प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं से हुआ है। यह हिंदी की पूर्वी उपभाषाओं और बंगाली, ओड़िया जैसी भाषाओं से भी प्रभावित रही है। लंबे समय तक कुर्माली एक मौखिक भाषा के रूप में प्रचलित रही, जिसमें लोकगीत, कथाएँ और परंपराएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आती रहीं। भाषिक दृष्टि से कुर्माली सरल, सहज और लयात्मक भाषा है। इसकी शब्दावली में स्थानीय प्रकृति, कृषि, वन और जनजीवन से जुड़े शब्दों की भरमार है। कुर्माली में क्रियाओं और वाक्य संरचना की बनावट हिंदी से कुछ अलग है, जिससे इसका अपना अलग स्वरूप बनता है। भावनाओं की अभिव्यक्ति इसमें सीधी और प्रभावशाली होती है। कुर्माली साहित्य का मुख्य आधार लोकसाहित्य ...

VAJJIKA

 वज्जिका भाषा – परिचय वज्जिका हिंदी की एक प्रमुख पूर्वी लोकभाषा है, जो मुख्य रूप से बिहार के उत्तरी भाग में बोली जाती है। यह भाषा विशेष रूप से वैशाली, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर और आसपास के जिलों में प्रचलित है। नेपाल के तराई क्षेत्र में भी वज्जिका बोलने वालों की संख्या पाई जाती है। वज्जिका भाषा का नाम प्राचीन वज्जि संघ से जुड़ा हुआ है, जिसकी राजधानी वैशाली थी। वज्जिका का इतिहास अत्यंत प्राचीन माना जाता है। इसे मागधी प्राकृत की एक विकसित शाखा समझा जाता है। बौद्ध काल में वैशाली एक महत्वपूर्ण धार्मिक और राजनीतिक केंद्र था, जहाँ लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में वज्जि संघ प्रसिद्ध था। इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण वज्जिका भाषा और संस्कृति का विकास हुआ। भाषिक दृष्टि से वज्जिका की संरचना भोजपुरी और मैथिली से मिलती-जुलती है, लेकिन इसकी अपनी अलग पहचान है। इसके उच्चारण, शब्दावली और क्रिया-रूप इसे विशिष्ट बनाते हैं। वज्जिका सरल और सहज भाषा है, जो ग्रामीण और कस्बाई जीवन की भावनाओं को प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करती है। इसमें सम्मान सूचक शब्दों और संबोधन के विभिन्न रूप पाए जाते हैं। साहित्य...

ANGIKA

अंगिका भाषा – परिचय अंगिका भारत की एक प्राचीन और समृद्ध लोकभाषा है, जो मुख्य रूप से बिहार के अंग क्षेत्र में बोली जाती है। यह क्षेत्र आज के भागलपुर, बांका, मुंगेर, जमुई, खगड़िया और आसपास के जिलों में फैला हुआ है। इसके अतिरिक्त झारखंड के कुछ भागों और नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी अंगिका बोली जाती है। अंगिका भाषा का नाम प्राचीन अंग महाजनपद से जुड़ा हुआ है, जिसका उल्लेख भारतीय इतिहास और महाकाव्यों में मिलता है। अंगिका भाषा का इतिहास अत्यंत प्राचीन माना जाता है। इसे मागधी प्राकृत की एक विकसित शाखा माना जाता है। बौद्ध और जैन काल में अंग क्षेत्र सांस्कृतिक और शैक्षिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, जिसका प्रभाव अंगिका भाषा पर भी पड़ा। समय के साथ यह भाषा लोकजीवन की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनी। भाषिक दृष्टि से अंगिका सरल, मधुर और सहज भाषा है। इसकी वाक्य संरचना और शब्दावली हिंदी से मिलती-जुलती है, लेकिन इसका उच्चारण और लहजा इसे अलग पहचान देते हैं। अंगिका में स्थानीय संस्कृति, प्रकृति और सामाजिक जीवन से जुड़े अनेक शब्द प्रचलित हैं, जो इसे जीवंत बनाते हैं। साहित्य के क्षेत्र में अंगिका का विकास...

BRAJ

 ब्रज भाषा – परिचय ब्रज भाषा हिंदी की एक प्रमुख उपभाषा है, जो उत्तर भारत के ब्रज क्षेत्र में बोली जाती है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन, आगरा, अलीगढ़, हाथरस तथा राजस्थान के भरतपुर और धौलपुर तक फैला हुआ है। ब्रज भाषा का नाम भगवान श्रीकृष्ण की लीलाभूमि ब्रज से जुड़ा होने के कारण इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत अधिक है। ब्रज भाषा का इतिहास मध्यकाल से जुड़ा हुआ है। भक्तिकाल के सगुण भक्ति आंदोलन में ब्रज भाषा का विशेष स्थान रहा। इस भाषा में रचित काव्य ने कृष्ण भक्ति को जन-जन तक पहुँचाया। सूरदास, नंददास, रसखान, मीराबाई और केशवदास जैसे महान कवियों ने ब्रज भाषा को साहित्यिक ऊँचाइयों तक पहुँचाया। सूरदास की सूरसागर ब्रज साहित्य की अमर कृति मानी जाती है। भाषिक दृष्टि से ब्रज भाषा मधुर, सरस और भावनात्मक मानी जाती है। इसमें श्रृंगार और भक्ति रस की प्रधानता है। इसकी शब्दावली में संस्कृत और लोकभाषा का सुंदर मिश्रण मिलता है। ब्रज भाषा में संवाद और काव्यात्मकता स्वाभाविक रूप से झलकती है, जिससे यह गीतों और पदों के लिए अत्यंत उपयुक्त है। सांस्कृतिक रूप से ब्रज क्षेत्...

MAGAHI

 मगही भाषा – परिचय मगही हिंदी की एक प्रमुख उपभाषा है, जिसे मागधी भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से बिहार के दक्षिणी भागों—पटना, गया, नालंदा, जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा—तथा झारखंड के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। मगही का नाम प्राचीन मगध क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, जो भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र रहा है। मगही भाषा का इतिहास अत्यंत प्राचीन माना जाता है। इसे मागधी प्राकृत की उत्तराधिकारी भाषा कहा जाता है, जो बुद्ध और महावीर के समय प्रचलित थी। इसी कारण मगही का संबंध बौद्ध और जैन परंपराओं से भी जोड़ा जाता है। समय के साथ यह लोकभाषा के रूप में विकसित हुई और जनसामान्य की अभिव्यक्ति का माध्यम बनी। भाषिक दृष्टि से मगही सरल, सहज और प्रभावशाली भाषा है। इसमें क्रियाओं और वाक्य संरचना की बनावट हिंदी से कुछ भिन्न है। मगही में सम्मान और संबोधन के लिए अलग-अलग रूप प्रयुक्त होते हैं। इसकी शब्दावली में संस्कृत, प्राकृत और स्थानीय बोलियों का मिश्रण मिलता है, जिससे भाषा में स्वाभाविकता आती है। साहित्य के क्षेत्र में मगही का योगदान धीरे-धीरे बढ़ा है। लोकगीत, लोककथाएँ, कहावतें ...

AWADHI

 अवधी भाषा – परिचय अवधी हिंदी की एक प्रमुख उपभाषा है, जो उत्तर भारत में व्यापक रूप से बोली जाती है। यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वी भागों—अयोध्या, लखनऊ, फैज़ाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली, उन्नाव और आसपास के क्षेत्रों—में प्रचलित है। अवधी का नाम प्राचीन अयोध्या (अवध) क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। अवधी भाषा का इतिहास अत्यंत समृद्ध है। यह मध्यकाल में विकसित हुई और भक्तिकाल के साहित्य में इसका विशेष योगदान रहा। अवधी ने हिंदी साहित्य को अमर कृतियाँ दीं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस अवधी भाषा की सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली कृति है। इसके अतिरिक्त कवितावली, गीतावली और विनय पत्रिका जैसी रचनाओं में भी अवधी के तत्व मिलते हैं। सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत भी अवधी साहित्य की महत्वपूर्ण कृति है। भाषिक दृष्टि से अवधी सरल, मधुर और भावपूर्ण मानी जाती है। इसकी शब्दावली में संस्कृत, प्राकृत, अरबी और फ़ारसी शब्दों का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है। अवधी में लोकजीवन, भक्ति, प्रेम और नैतिक मूल्यों का सजीव चित्रण मिलता है। इसका व्याकरण बोलचाल के अनुकूल है, जिससे यह जनस...

PALI LANGUAGE

 पाली भाषा – परिचय पाली एक प्राचीन भारतीय भाषा है, जिसका विशेष महत्व बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। इसे थेरवाद बौद्ध परंपरा की पवित्र भाषा माना जाता है। भगवान गौतम बुद्ध के उपदेशों को पाली भाषा में संकलित किया गया, जो आगे चलकर त्रिपिटक के रूप में प्रसिद्ध हुए। पाली भाषा का प्रयोग मुख्य रूप से धार्मिक, दार्शनिक और नैतिक ग्रंथों में हुआ है। पाली भाषा की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। सामान्यतः इसे मध्य इंडो-आर्य भाषा माना जाता है, जो संस्कृत और प्राकृत के बीच की कड़ी है। पाली संस्कृत की अपेक्षा सरल और जनसामान्य के अधिक निकट मानी जाती है। इसी कारण बुद्ध ने अपने उपदेश पाली जैसी लोकभाषा में दिए, ताकि आम लोग उन्हें समझ सकें। व्याकरण की दृष्टि से पाली भाषा में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, लिंग और वचन की स्पष्ट व्यवस्था है। इसका शब्द भंडार संस्कृत से मिलता-जुलता है, लेकिन उच्चारण और रूप सरल हैं। पाली भाषा मूलतः बोली जाने वाली भाषा थी, जिसे बाद में लिखित रूप दिया गया। समय के साथ इसे विभिन्न लिपियों में लिखा गया, जैसे ब्राह्मी, सिंहली, देवनागरी, थाई और बर्मी लिपि। पाली साहित्य अत्यंत समृ...

TIRHUTA

 तिरहुता लिपि (मिथिलाक्षर) – परिचय तिरहुता लिपि, जिसे मिथिलाक्षर भी कहा जाता है, मैथिली भाषा की पारंपरिक और ऐतिहासिक लिपि है। इसका विकास बिहार के मिथिला क्षेत्र में हुआ और यह कई शताब्दियों तक मैथिली लेखन का प्रमुख माध्यम रही। तिरहुता लिपि का उपयोग विशेष रूप से धार्मिक ग्रंथों, प्रशासनिक दस्तावेज़ों, ताम्रपत्रों और साहित्यिक रचनाओं में किया जाता था। तिरहुता लिपि का इतिहास प्राचीन है। विद्वानों के अनुसार इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ, और यह बंगाली तथा ओड़िया लिपियों से भी संबंधित मानी जाती है। मध्यकाल में तिरहुत क्षेत्र के राजाओं और विद्वानों ने इस लिपि को संरक्षण दिया। मैथिली साहित्य के महान कवि विद्यापति के काल में तिरहुता लिपि का व्यापक प्रयोग हुआ, जिससे इसे साहित्यिक प्रतिष्ठा मिली। लिपिगत संरचना की दृष्टि से तिरहुता एक पूर्ण वर्णमाला वाली लिपि है। इसमें स्वर, व्यंजन, मात्राएँ और संयुक्त अक्षरों की स्पष्ट व्यवस्था है। इसके अक्षर गोलाकार और कलात्मक रूप लिए होते हैं, जो इसे अन्य भारतीय लिपियों से अलग पहचान देते हैं। लेखन शैली दाएँ से बाएँ नहीं, बल्कि बाएँ से दाएँ होती है, जैसे दे...

TIRHUT

 तिरहुत (तिरुत/तिरभुक्ति) – एक ऐतिहासिक क्षेत्र तिरहुत, जिसे प्राचीन ग्रंथों में तिरभुक्ति कहा गया है, बिहार का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है। यह मुख्य रूप से आज के उत्तरी बिहार में स्थित मिथिला क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। तिरहुत शब्द का प्रयोग मध्यकाल में प्रशासनिक और भौगोलिक इकाई के रूप में किया जाता था। मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, दरभंगा, समस्तीपुर और मधुबनी जैसे जिले ऐतिहासिक रूप से तिरहुत क्षेत्र में शामिल रहे हैं। तिरहुत का उल्लेख प्राचीन और मध्यकालीन अभिलेखों तथा साहित्य में मिलता है। गुप्त काल और उसके बाद यह क्षेत्र शिक्षा, संस्कृति और व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र रहा। मध्यकाल में तिरहुत पर कर्नाट वंश और बाद में ओइनवार वंश का शासन रहा, जिन्होंने मिथिला की सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षण दिया। इसी काल में मैथिली भाषा और साहित्य का विकास तेज़ी से हुआ। सांस्कृतिक दृष्टि से तिरहुत का अत्यंत समृद्ध महत्व है। यह क्षेत्र मैथिली भाषा, लोकगीत, लोकनृत्य और परंपरागत रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। मधुबनी (मिथिला) पेंटिंग, पंजी प्रथा, पारंपरिक विवाह संस्कार और धार्मिक अनु...

VIDYAPATI

 विद्यापति: मैथिली साहित्य के अमर कवि विद्यापति भारतीय साहित्य के महान कवि और विद्वान माने जाते हैं। उन्हें मैथिली भाषा का सर्वश्रेष्ठ और सबसे प्रतिष्ठित कवि कहा जाता है। उनका जन्म लगभग 14वीं शताब्दी में मिथिला क्षेत्र (वर्तमान बिहार) में माना जाता है। विद्यापति ने न केवल मैथिली, बल्कि संस्कृत और अवहट्ट भाषा में भी रचनाएँ कीं। उनके काव्य में भक्ति, प्रेम और श्रृंगार का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। विद्यापति मुख्य रूप से भक्तिकाल के कवि माने जाते हैं। उनकी रचनाओं में भगवान शिव और राधा-कृष्ण की भक्ति का विशेष स्थान है। विशेष रूप से राधा-कृष्ण के प्रेम पर आधारित उनके पदों ने उन्हें अपार लोकप्रियता दिलाई। इन पदों में मानवीय भावनाओं, प्रेम की कोमलता, विरह और मिलन का अत्यंत सजीव चित्रण मिलता है। उनके काव्य में श्रृंगार रस की प्रधानता है, लेकिन वह आध्यात्मिक भाव से जुड़ा हुआ है। विद्यापति की भाषा सरल, मधुर और भावपूर्ण है। उन्होंने लोकभाषा मैथिली को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। उनके गीत आज भी मिथिला ही नहीं, बल्कि बंगाल और ओडिशा तक गाए जाते हैं। बंगाल में चैतन्य महाप्रभु और वैष्णव संतों ...

DIFFERENCE BHOJPURI AND MAITHILI

 भोजपुरी और मैथिली भाषा में अंतर भोजपुरी और मैथिली भारत की प्रमुख पूर्वी इंडो-आर्य भाषाएँ हैं। दोनों का क्षेत्र, संस्कृति और परंपराएँ कुछ हद तक मिलती-जुलती हैं, फिर भी इनके बीच कई महत्वपूर्ण अंतर पाए जाते हैं। 1. भौगोलिक क्षेत्र भोजपुरी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों (बलिया, गोरखपुर, बनारस), बिहार के पश्चिमी भाग (सारण, चंपारण) और झारखंड के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। वहीं मैथिली मुख्यतः बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग, जिसे मिथिला क्षेत्र कहा जाता है, तथा नेपाल के तराई क्षेत्र में प्रचलित है। 2. भाषिक उत्पत्ति मैथिली एक प्राचीन भाषा मानी जाती है, जिसका समृद्ध साहित्यिक इतिहास है। विद्यापति जैसे कवियों ने मैथिली को प्रतिष्ठा दिलाई। भोजपुरी अपेक्षाकृत लोकभाषा के रूप में विकसित हुई, जिसमें लोकगीत और लोककथाओं की परंपरा अधिक मजबूत है। 3. लिपि मैथिली की अपनी पारंपरिक लिपि ‘तिरहुता’ (मिथिलाक्षर) रही है, हालांकि आजकल देवनागरी का अधिक उपयोग होता है। भोजपुरी सामान्यतः देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और इसकी अलग लिपि नहीं मानी जाती। 4. व्याकरण और शब्दावली दोनों भाषाओं के व्याकरण में अ...

FEFNA

 फेफना (बलिया, उत्तर प्रदेश) – परिचय फेफना उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में स्थित बलिया जिले का एक प्रमुख नगर और विधानसभा क्षेत्र है। यह स्थान गंगा नदी के तटवर्ती क्षेत्र में स्थित होने के कारण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। फेफना बलिया मुख्यालय से लगभग 10–12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और सड़क तथा रेल मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। फेफना का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा माना जाता है। यहां की भूमि गंगा के उपजाऊ मैदान में होने के कारण कृषि प्रधान रही है। गेहूं, धान, मक्का, दालें और सब्जियों की खेती यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य आधार है। ग्रामीण परिवेश के बावजूद फेफना में शिक्षा और व्यापार का भी धीरे-धीरे विकास हुआ है। आसपास के गांवों के लिए यह एक स्थानीय बाजार और संपर्क केंद्र के रूप में कार्य करता है। सांस्कृतिक दृष्टि से फेफना भोजपुरी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां होली, दीपावली, छठ पूजा, दुर्गा पूजा और सावन के मेले बड़े उत्साह से मनाए जाते हैं। छठ पूजा के समय गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जाती है, जो इस क्षेत्र की धार्मि...

MAGH MELA

 माघ मेला भारत के प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक मेलों में से एक है। यह मेला हर वर्ष माघ महीने में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम तट पर आयोजित किया जाता है। माघ मेला हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे आस्था, तप और दान का महापर्व कहा जाता है। पौष पूर्णिमा से लेकर माघ पूर्णिमा तक चलने वाले इस मेले में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। माघ मेले का सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण संगम में स्नान करना है। मान्यता है कि माघ मास में संगम में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान कल्पवासी विशेष रूप से संगम तट पर निवास करते हैं। कल्पवासी पूरे एक माह तक नियम, संयम और तपस्या के साथ जीवन बिताते हैं। वे प्रतिदिन स्नान, दान, जप-तप और सत्संग करते हैं। इस मेले में साधु-संतों, अखाड़ों और विभिन्न धार्मिक संस्थाओं की उपस्थिति देखने को मिलती है। प्रवचन, भजन-कीर्तन, कथा और यज्ञ जैसे धार्मिक आयोजन माघ मेले की शोभा बढ़ाते हैं। साथ ही दान-पुण्य का भी विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु अन्न, वस्त्र, धन और अन्य आवश्यक व...

NETFLIX

 नेटफ्लिक्स (Netflix) – परिचय नेटफ्लिक्स (Netflix) दुनिया की सबसे लोकप्रिय ओटीटी (OTT) स्ट्रीमिंग सेवाओं में से एक है, जिसने मनोरंजन देखने के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। इसकी स्थापना वर्ष 1997 में अमेरिका में रीड हेस्टिंग्स और मार्क रैंडॉल्फ द्वारा की गई थी। शुरुआत में यह डीवीडी किराये पर देने वाली कंपनी थी, लेकिन बाद में यह ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के रूप में विकसित हुई। नेटफ्लिक्स का मुख्य आकर्षण इसकी विशाल फिल्मों, वेब सीरीज़, डॉक्यूमेंट्री और टीवी शोज़ की लाइब्रेरी है। यह प्लेटफॉर्म हॉलीवुड के साथ-साथ विभिन्न देशों की क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सामग्री भी प्रदान करता है। भारत में नेटफ्लिक्स हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगु और अन्य भाषाओं में भी कंटेंट उपलब्ध कराता है, जिससे यह विविध दर्शकों के बीच लोकप्रिय हुआ है। नेटफ्लिक्स की एक बड़ी खासियत इसका ओरिजिनल कंटेंट है। “स्ट्रेंजर थिंग्स”, “मनी हाइस्ट”, “द क्राउन” जैसी अंतरराष्ट्रीय सीरीज़ और “सेक्रेड गेम्स”, “दिल्ली क्राइम”, “कोटा फैक्ट्री” जैसी भारतीय वेब सीरीज़ ने इसे वैश्विक पहचान दिलाई है। यह प्लेटफॉर्म उन्नत एल्गोरिद्म का उ...

LALIT KESHRE

 ललित केशरे – परिचय ललित केशरे भारत के प्रसिद्ध उद्यमियों में से एक हैं और वे लोकप्रिय ऑनलाइन निवेश मंच ग्रो (Groww) के सह-संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) हैं। उन्होंने भारतीय युवाओं और नए निवेशकों के बीच निवेश को सरल, सुलभ और पारदर्शी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी सोच और नेतृत्व ने ग्रो को भारत के सबसे तेजी से बढ़ते फिनटेक स्टार्टअप्स में शामिल किया है। ललित केशरे की प्रारंभिक शिक्षा भारत में ही हुई। उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, जहाँ से उन्हें तकनीकी सोच और नवाचार की मजबूत नींव मिली। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम किया, जहाँ उन्हें कॉर्पोरेट जगत और वित्तीय प्रणालियों को करीब से समझने का अवसर मिला। इसी अनुभव से उन्हें यह अहसास हुआ कि भारत में निवेश की प्रक्रिया आम लोगों के लिए जटिल और डराने वाली है। इसी समस्या के समाधान के उद्देश्य से ललित केशरे ने अपने साथियों के साथ मिलकर वर्ष 2016 में Groww की शुरुआत की। ग्रो का मुख्य लक्ष्य था कि म्यूचुअल फंड, शेयर, ईटीएफ और अन्य निवेश उत्पादों को मोबाइल ऐप ...