ARAVALLI RANGE
अरावली पर्वतमाला (Aravalli Range)
अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रंखलाओं में से एक मानी जाती है। यह पर्वतमाला लगभग 800 किलोमीटर लंबी है और गुजरात के पालनपुर से लेकर राजस्थान, हरियाणा होते हुए दिल्ली तक फैली हुई है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार इसकी उत्पत्ति लगभग 150 से 250 करोड़ वर्ष पूर्व हुई थी, जिससे यह विश्व की सबसे पुरानी पर्वत प्रणालियों में गिनी जाती है। समय के साथ अत्यधिक अपरदन के कारण इसकी ऊँचाई कम हो गई है, फिर भी इसका भौगोलिक, पर्यावरणीय और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत बड़ा है।
अरावली पर्वतमाला राजस्थान के भौगोलिक स्वरूप को दो भागों में बाँटती है। इसके पश्चिम में थार मरुस्थल स्थित है, जबकि पूर्वी भाग अपेक्षाकृत उपजाऊ और हरित है। यह पर्वतमाला रेगिस्तान के विस्तार को रोकने में प्राकृतिक दीवार की तरह कार्य करती है। अरावली की ढलानों से कई छोटी नदियाँ निकलती हैं, जिनमें बनास, लूणी, साबरमती और साहिबी प्रमुख हैं। यद्यपि इनमें से कई नदियाँ मौसमी हैं, फिर भी ये क्षेत्र के जल-संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अरावली की सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर है, जो राजस्थान के माउंट आबू क्षेत्र में स्थित है और लगभग 1,722 मीटर ऊँची है। माउंट आबू अरावली पर्वतमाला का एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल है, जो अपने सुहावने मौसम, नक्की झील और दिलवाड़ा जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र पर्यटकों और श्रद्धालुओं दोनों को आकर्षित करता है।
वनस्पति और जीव-जंतुओं की दृष्टि से भी अरावली पर्वतमाला अत्यंत समृद्ध है। यहाँ शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं, जिनमें खेजड़ी, ढोक, बबूल और नीम जैसे वृक्ष प्रमुख हैं। यह क्षेत्र कई वन्य जीवों का आश्रय स्थल है, जैसे तेंदुआ, सियार, लोमड़ी, नीलगाय और विभिन्न पक्षी प्रजातियाँ। सरिस्का और रणथंभौर जैसे प्रसिद्ध अभयारण्य अरावली क्षेत्र से जुड़े हुए हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से अरावली पर्वतमाला का महत्व बहुत अधिक रहा है। प्राचीन काल में इस क्षेत्र में अनेक सभ्यताएँ विकसित हुईं। यहाँ से तांबा, जस्ता, सीसा और संगमरमर जैसे खनिजों का उत्खनन प्राचीन समय से होता आया है। अलवर, उदयपुर, अजमेर और जयपुर जैसे कई ऐतिहासिक नगर अरावली क्षेत्र के आसपास बसे हुए हैं।
वर्तमान समय में अरावली पर्वतमाला पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रही है। अनियंत्रित खनन, वनों की कटाई और शहरीकरण के कारण इसका पारिस्थितिकी संतुलन प्रभावित हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अरावली का संरक्षण नहीं किया गया, तो उत्तर भारत में मरुस्थलीकरण और जल संकट और अधिक बढ़ सकता है। इसलिए अरावली पर्वतमाला का संरक्षण न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश के पर्यावरण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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