BLUE TURMERIC
ब्लू हल्दी (Blue Turmeric)
ब्लू हल्दी, जिसे वैज्ञानिक रूप से Curcuma caesia कहा जाता है, हल्दी की एक दुर्लभ और औषधीय प्रजाति है। इसे हिंदी में “काली हल्दी” भी कहा जाता है, हालांकि इसका गूदा नीले-काले रंग का होता है, इसलिए इसे ब्लू हल्दी नाम से जाना जाता है। यह मुख्य रूप से भारत के मध्य और पूर्वी हिस्सों—जैसे ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम—में पाई जाती है।
ब्लू हल्दी का पौधा अदरक परिवार (Zingiberaceae) से संबंधित है। इसकी पत्तियाँ हरे रंग की होती हैं और बीच में हल्की बैंगनी रेखा दिखाई देती है। इसके कंद का रंग अंदर से नीला या गहरा स्लेटी होता है, जो इसे सामान्य पीली हल्दी से अलग बनाता है। इसकी खुशबू तीखी और कपूर जैसी होती है।
औषधीय गुणों की दृष्टि से ब्लू हल्दी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। आयुर्वेद और लोक चिकित्सा में इसका उपयोग सूजन, दर्द, त्वचा रोग, सांस संबंधी समस्याओं, चोट-मोच और गठिया के इलाज में किया जाता है। माना जाता है कि इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में इसे जहर के प्रभाव को कम करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
ब्लू हल्दी का उपयोग तंत्र-मंत्र और धार्मिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है। कई आदिवासी समुदाय इसे शुभ और शक्तिवर्धक मानते हैं। हालांकि, इसका उपयोग सीमित मात्रा में और विशेषज्ञ सलाह से ही करना चाहिए, क्योंकि अधिक मात्रा में सेवन हानिकारक हो सकता है।
वर्तमान समय में ब्लू हल्दी की मांग औषधीय और कॉस्मेटिक उद्योगों में बढ़ रही है, लेकिन अत्यधिक दोहन के कारण यह कुछ क्षेत्रों में दुर्लभ होती जा रही है। इसलिए इसके संरक्षण और वैज्ञानिक खेती पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इस प्रकार, ब्लू हल्दी न केवल औषधीय दृष्टि से बल्कि जैव विविधता के संरक्षण के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण पौधा है।
Comments
Post a Comment