MATA KAUSHALYA


माता कौशल्या हिन्दू धर्मग्रंथ रामायण की एक अत्यंत सम्मानित और पूज्यनीय पात्रा हैं। वे अयोध्या के राजा दशरथ की प्रमुख रानी तथा भगवान श्रीराम की जननी थीं। उनका नाम भारतीय नारीत्व, ममता, त्याग और आदर्श मातृत्व का प्रतीक है।

कौशल्या का जन्म दक्षिण कोशल (वर्तमान में छत्तीसगढ़ क्षेत्र) के राजा सुकौशल की पुत्री के रूप में हुआ था। उनका विवाह अयोध्या के महाराज दशरथ से हुआ, जो सूर्यवंश के प्रतापी राजा थे। विवाह के पश्चात कई वर्षों तक उन्हें संतान प्राप्त नहीं हुई, जिससे राजा दशरथ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। इस यज्ञ से प्राप्त खीर को उन्होंने अपनी तीनों रानियों — कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा — को वितरित किया। कौशल्या ने खीर का सबसे बड़ा भाग ग्रहण किया और कुछ समय बाद उन्होंने भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम को जन्म दिया।

माता कौशल्या का चरित्र अत्यंत सहनशील, धर्मनिष्ठ और त्यागमयी रहा। जब भगवान राम को 14 वर्षों का वनवास मिला, तो उनका ह्रदय अत्यंत व्यथित हुआ। एक माँ के रूप में उनका पुत्र वियोग असहनीय था, लेकिन उन्होंने नारी धर्म और कुल मर्यादा को ध्यान में रखते हुए अपने आँसू रोक लिए और श्रीराम को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

राम के वनवास के समय उन्होंने न केवल धैर्य रखा, बल्कि अयोध्या में रहकर अपने परिवार को संभाला। उन्होंने अपने हृदय की पीड़ा को छुपाकर राम की प्रतिक्षा में दिन बिताए। उनकी ममता, सहिष्णुता और संयम उन्हें अन्य माताओं से अलग स्थान प्रदान करता है।

राम के लौटने पर माता कौशल्या का ह्रदय प्रसन्नता से भर गया। उन्होंने राम और सीता का राज्याभिषेक होते देखा और अपने पुत्र को अयोध्या की जनता का प्रिय सम्राट बनते हुए गर्व के साथ देखा।

निष्कर्ष:
माता कौशल्या केवल भगवान राम की जननी ही नहीं थीं, बल्कि वे एक ऐसी माँ थीं जिन्होंने अपने जीवन में धैर्य, त्याग, और मर्यादा की उच्चतम मिसालें प्रस्तुत कीं। उनका जीवन आदर्श मातृत्व का प्रतिरूप है। भारतीय संस्कृति में माता कौशल्या को एक पूजनीय और आदर्श स्त्री के रूप में हमेशा स्मरण किया जाता रहेगा।

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