BHAGWAN SUMATI NATH

 

भगवान सुमतिनाथ 

भगवान सुमतिनाथ जैन धर्म के पाँचवें तीर्थंकर हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या नगरी में राजा मेघराज और रानी मंगलादेवी के यहाँ हुआ था। उनका जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ, जो एक प्रसिद्ध और पवित्र वंश माना जाता है। सुमतिनाथ जी का जन्मकाल जैन मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में हुआ था।

बाल्यकाल से ही सुमतिनाथ बहुत शांत, बुद्धिमान और करुणाशील स्वभाव के थे। उन्होंने सांसारिक सुखों और भौतिक इच्छाओं से अलग रहकर आत्मकल्याण की ओर ध्यान केंद्रित किया। जब उन्होंने देखा कि संसार में दुख, मोह, और मृत्यु का चक्र अनवरत चलता रहता है, तो उन्होंने राज-पाट त्यागकर दीक्षा ली और तपस्या करने लगे।

गहन तप और साधना के बाद भगवान सुमतिनाथ को कैवल्य ज्ञान (सर्वज्ञान) की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात उन्होंने जीवों के कल्याण हेतु धर्म का प्रचार किया और लोगों को अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय जैसे सिद्धांतों का पालन करने की प्रेरणा दी। वे जन-जन के लिए मोक्ष का मार्ग दिखाने वाले महान उपदेशक बने।

भगवान सुमतिनाथ का प्रतीक चिन्ह “चक्र” (धर्म चक्र) है, जो धर्म के चक्र को दर्शाता है। जैन मंदिरों में इनकी प्रतिमा को इसी चिन्ह के साथ स्थापित किया जाता है। इनका निर्वाण सम्मेद शिखर (झारखंड) में हुआ, जो जैन धर्म का एक प्रमुख तीर्थस्थल है।

भगवान सुमतिनाथ का जीवन हमें सच्चाई, संयम, और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। उनका आदर्श जीवन आज भी करोड़ों लोगों के लिए मार्गदर्शक है।

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